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विद्या

विद्या

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खानपुर नाम के गाँव में पंडित रहते थे।

बच्चे विद्या लेकर अपने पैरों पर खड़े हो सके इसलिए वे एक आश्रम खोलना चाहते थे। और वह अपना सपना पूरा कर लेते हैं।

उस आश्रम में बहुत बच्चे पढ़ने आते हैं। उस आश्रम में लक्ष्मण नाम का एक शिष्य पढ़ता था। वह बहुत घमंडी था। उसे लगता था की वह सबसे बुद्धिमान है। वह अपने बाकी साथियों को कम समझता था। यह बात उनके गुरु को समझ में आती है। गुरूजी लक्ष्मण को सुधारने की ठान लेते हैं।

दूसरे दिन गुरुजी ने लक्ष्मण को चुनौती दे दी। उसने घमंड में आकर वह चुनौती स्वीकार ली। लक्ष्मण उस शास्रार्थ की चुनौती में हार जाता है।

गुरु उसे कहते हैं कि किसी को भी कम नहीं समझना चाहिए। यह सब सुनकर लक्ष्मण का घमंड चूर-चूर हो जाता है। उसे अपनी गलती समझ में आती है। वह अपने गुरु से और अपने सभी साथियों से माफ़ी माँगता है।और सब अच्छे से पढ़ने और खेलने लगते हैं।


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