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वातावरण और यादें

वातावरण और यादें

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लाल ईंटों वाला बड़ा सा आँगन हुआ करता था, अनुशासन प्रिय पापा कानून की पोस्ट पर थे , सुबह ९ बजे घर से जाते और शाम को छह बजे आजाते उनके आते ही घर का वातावरण बदल जाता, कोई ऊँचे स्वर में बात न करता , सब भाई - बहन अपनी किताबें खोल कर पढ़ने लगते या बहाना ही करने लगते पढ़ने का , माँ अंगीठी जलाकर शाम का खाना बनाती और जो बेटी फ्री नजर आती उसको फुल्के बनाने होते थे | अक्सर मेरी बड़ी बहन ही पकड़ में आती और सारा काम संभाल लेती और मैं तब पुस्तक खोलकर बीस बार पढ़ी हुयी कहानी एक बार फिर से पढ़ती की मुझसे अंगीठी पर खाना नही बनता | एक बार माँ ने पापा से शिकायत की "यह नीली जब देखो किताबो में सर दिए रहती हैं कभी घर के कामो में दिलचस्पी नही लेती" तब पापा मेरे कमरे में आये मेरी किताबों वाली अलमारी की तरफ सरसरी नजर डाली और उनको वहां नजर आइ मनोहर कहानियां और पलक झपकते ही एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे सर पर लगा और पापा बोले "अभी १३ साल की उम्र है तेरी और किताबें देखो अलमारी में ...क्या इसलिय किताबों में घुसी रहती हो कल से माँ के साथ घर के काम में हेल्प करोगी , और हाँ इस बार एग्जाम में अगर नंबर कम आये तो पढ़ाई छुड़ाकर घर बैठा दूंगा . मेरे लिय यह धमकी काफी थी और उसके बाद जो पढ़ने में मन लगाया आज तक पढ़ना पसंद है और मुझे नही याद कि उस दिन के बाद कभी मैंने मनोहर कहानिया पढ़ी होगी |

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