Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

इण्डियन फ़िल्म्स 3.2

इण्डियन फ़िल्म्स 3.2

5 mins
500


आन्या आण्टी की तरफ़ हम बाद में ज़रूर लौटेंगे, क्योंकि वो हमारी सबसे घनिष्ठ पड़ोसन है,ऐसा कह सकते हैं, और इसके अलावा वो इस कहानी की प्रमुख हीरोइन है। मगर मैं कुछ और हीरोज़ से आपको मिलवाना चाहता हूँ।

तीसरी मंज़िल का यारोस्लाव। , ये आजकल की हाउसिंग-सोसाइटियों के नौजवानों का ज्वलंत प्रतिनिधि है रोमा ज़्वेर ने शायद अपना गीत “ गलियाँ-मुहल्ले”,ज़ाहिर हैै, रूसी गलियों और मुहल्लों के ऐसे ही निवासियों के लिए लिखा है।।।

यारोस्लाव – ईडियट है। निकम्मा नौजवान, ढेर सारी ख़तरनाक और,मैं तो कहूँगा, बेहद ख़तरनाक आदतें हैं उसकी, हमेशा ख़ुश रहता है, झगडालू और अपने कभी छोटे, तो कभी लम्बे बालों को इंद्रधनुष के अलग-अलग रंगों में रंगता है। वह उसी तरह के नौजवानों और लड़कियों के ग्रुप का सदस्य है , जिनमें से कुछ हमारी, और कुछ अगल-बगल की बिल्डिंग्स में रहते हैं, और ये ग्रुप, हमेशा रात के दस बजे के बाद हमारी मंज़िल की कचरे की पाइप के पास जमा होता है। ऐसा लगता है कि यारोस्लाव और उसके दोस्तों का किन्हीं ख़ास तबकों में अच्छा ख़ासा दबदबा हक्योंकि मॉस्को के अलग अलग हिस्सों के निवासी अक्सर शाम को, हम सबके लिए मुसीबत बनकर हमारी बिल्डिंग में आ धमकते हैं, जिससे अच्छी तरह वक्त बिता सकें।

रात के करीब दो बजे तक बिल्डिंग में शोर-गुल होता रहता है, हँसी और चीखें सुनाई देती हैं। नौजवान और लड़कियाँ जीवन के प्रवाह में बहते रहते हैं। बिल्डिंग में रहने वाले, जिनमें मैं भी शामिल था, पहले तो सुकून और ख़ामोशी के लिए लड़ने की कोशिश करते, मगर फिर रुक गए। पहली बात, इसलिए कि ये बिल्कुल फ़िज़ूल थाऔर दूसरे, इसलिए, कि यारोस्लाव और उसके दोस्त सिर्फ चिल्लाने वाले और खिड़कियाँ तोड़ने वाले डाकू बदमाश ही नहीं थे। मतलब , खिड़कियाँ वो बेशक तोड़ते थेऔर हमारी दूसरी मंज़िल का काँच बेतहाशा मार खाकर कई बार चटक कर उड़ चुका है, मगर अचरज की बात ये है, कि बाद में यारोस्लाव और उसका पक्का दोस्त वाल्या च्योर्नी बिना भूले उसे फिट कर देते थे। ऊपर से, अपनी बैठक के बाद सुबह यारोस्लाव कचरे के पाइप के पास झाडू लेकर आता और सब कुछ अच्छी तरह साफ़ कर देता।और कुछ दिन पहले तो इसका उलटा ही हुआ: रात भर धमाचौकड़ी मचाने के बाद, उन लोगों से हुए हंगामे के बाद, जो रात में इन खुशी और बदहवासी से मचल रहे नौजवानों को शांत करने आये थे, यारोस्लाव ने सुबह-सुबह बाहर निकल कर बिल्डिंग के प्रवेश द्वार के पास वाली खिड़की पे बियर का डिब्बा,या ऐसी कोई चीज़ नही, बल्कि गमले में लगा हुआ सचमुच का फूल रख दिया ये वाकई में “धूल का फूल” था

फूल तो, कहना पड़ेगा ,कि काफ़ी अजीब था और यारोस्लाव ने उसे कहाँ से ढूँढ़ा था – पता नहीं। वो, कुछ भद्दा सा था, या तो मुरझाया हुआ था, या फिर उसे चबाया गया था, किसी पुराने गमले में लगा था, मगर पूरी तरह ताज़ा था और खिल रहा था, बगैर किसी ओर ध्यान दिए। खिल रहा था जब मैंने एक बार देखा कि यारोस्लाव फूल को पानी भी दे रहा है, तो मुझे ज़रा भी गुस्सा नहीं आया। बात एकदम सही है,न जाने कैसे-कैसे कूड़े-करकट के ढेर में सुंदरता अपना बसेरा ढूँढ़ लेती है

मैं और यारोस्लाव एक दूसरे को सिर्फ हैलो कहते हैं , इससे हमारा संवाद सीमित हो जाता है। उस समय मैंने उससे फूल के बारे में कहा था, कि, ज़ाहिर है , सिर्फ वही बिल्डिंग को ऐसा बना देता है, कि घुसने में डर लगे, और फिर वहाँ फूल लगा देता है, मगर यारोस्लाव ने मुस्कुराकर चिल्लाते हुए, काफ़ी गहरे अंदाज़ में कहा: “बिज़ पालेवा” – बस ऐसा हो था वो। (एक लोकप्रिय गीत के , इन शब्दों का अर्थ है, “बिना ढोल बजाए, निरर्थक”)। इन शब्दों का क्या मतलब है, मैं समझ नहीं पाया, हालाँकि, ईमानदारी से स्वीकार करता हूँ, कि कुछ देर तक उनके असली मतलब के बारे में सोचता रहा।।।

कभी-कभी ऐसा भी होता है, कि बिल्डिंग में शांति है, और शेपिलोवा भी न कुछ ला रही है, न कोई सुझाव दे रही है। तब हो सकता है, कि अचानक फोन बजने लगता है। और रिसीवर में, जब आप उसे उठाते हो, तो उत्तेजित, ज़ोरकी, जैसे कम से कम कहीं आग लगी है, एक औरत की, भर्राई हुई आवाज़ कहती है:

“तो (विराम) तो तो”

ये प्रकट हो रही है मेरी अगली हीरोइन, जिसका नाम आपको जल्दी ही पता चल जाएगा।

“हैलो,” आप कहते हैं, “कौन बोल रहा है ?”

कोई प्रतिक्रिया नहीं, उल्टे – मेरे सवाल का सवालिया जवाब मिलता है।

“मैं किससे बात कर रही हूँ ? कौन हैं आप ? मैं किस नंबर पे आ गई ?”

“आपको कौन चाहिए ?” मैं पूछता हूँ।

फिर कोई प्रतिक्रिया नहीं। रिसीवर रख देने को जी चाहता है, मगर उसमें फिर से और ऊँची, परेशान आवाज़ में पूछा जाता है:

“क्या ये तान्या का बेटा है ? सिर्गेइ ?”

“हाँ, मैं,” मैं कहता हूँ।

“सेब” रिसीवर में ज़ोर से चिल्लाते हैं।

मालूम नही, कि क्या प्रतिक्रिया देना चाहिए, मगर फिर कहता हूँ, कि अच्छा है, कि सेब हैं।

“खूब सारे सेब हैं”

“बहुत अच्छा,” मैं कहता हूँ।

“ये,” पहले ही की तरह उत्तेजित-परेशानी से रिसीवर जानकारी देता है, “ल्येना विदूनोवा है, तीसरी मंज़िल वाली,ऊपर वाली पडोसन किसी ने मेरे शौहर को दो बैग्स भर के सेब दिए हैं। उन्हें खा नहीं सकते। टूटे-टूटे हैं मुरब्बे के लिए आधे ले लो”

कह ऐसे रही है, कि साफ़ पता चल रहा है: अगर नहीं लूँगा , तो कोई भयानक बात हो जाएगी, क्रांति जैसी। उससे पूछने का खूब मन हो रहा था, कि इतनी बदहवास क्यों है। मगर पूछना बेकार है: ल्येना विदूनोवा – दुबली-पतली, लम्बी, अधेड़ उम्र की औरत है,और वो हमेशा बदहवास ही रहती है। चाहे कहीं भी जा रही हो, किसी से भी बात कर रही हो – वो हर काम इस तरह करती है, मानो युद्ध चल रहा हो, और हम सबके चारों ओर दुश्मन का मज़बूत घेरा पड़ा हो।

मैं , बेशक, थैन्क्यू कहता हूँ, मगर ये ज़रूरी नहीं है।

“बढ़िया अभी सिर्गेइ लेकर आयेगा”

और उसका शौहर सिर्गेइ, मेरा हमनाम, टूटे हुए सेबों की थैली लाता है, और साथ ही तीन सौ रूबल्स भी देता है, जो ल्येना ने करीब सात महीने पहले मुझसे तीन दिनों के लिए उधार लिए थे।

“थैन्क्यू” मैं कहता हूँ और चुपचाप सेबों को किचन में ले जाता हूँ।

अब मैं और मम्मा हमेशा ओवन में सेब पकाते हैं और उन्हें शक्कर के साथ खाते हैं।      


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract