मानवता
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"ऋषभ, कई दिनों तक कोशिश करने के बाद तुम्हें ये अच्छी नौकरी मिली हैं और तुम कह रहे हो कि मैं ये नौकरी ज्वाइन नहीं करूँगा।" ऋषभ की माँ ने उसकी बात सुनकर हैरानी व्यक्त की।
"मम्मा, दरअसल बात ये हैं कि इस पोस्ट के लिए मेरे अलावा जिन लोगों ने एप्लाई किया था, उनमे एक ऐसा लड़का भी शामिल था जिसका परिवार काफी मुश्किल परिस्थितियों में फँसा हुआ हैं। नीरज नाम के उस लड़के के पिता का काफी दिनों पहले देहांत हो चुका हैं। घर में उसके अलावा उसकी माँ और एक छोटी बहन हैं जो पढ़ाई कर रही हैं। उसके पिता के देहांत के बाद उसकी माँ एक प्रायवेट स्कूल में टीचरशीप करके और ट्यूशन पढ़ा कर जैसे-तैसे घर चला रही थी लेकिन कुछ समय से बीमार रहने की वजह से उन्हें नौकरी और ट्यूशन पढाना छोड़ना पड़ा। फिलहाल नीरज के परिवार के पास इन्कम के कोई सोर्सेस नहीं है। उसका परिवार जिस किराए के मकान में रहता हैं उसका किराया भी चुकाने के लिए उन लोगों के पास पैसे नहीं है। अपने परिवार को सड़क पर आने से बचाने के लिए नीरज काफी दिनों से नौकरी के लिए हाथ-पैर मार रहा है, पर हर बार सफलता से कुछ कदम दूर रह जाता है। इस बार तो सफलता उससे मात्र एक कदम दूर रह गईं।
वो फाइनल सलेक्शन लिस्ट में आठवें नम्बर पर हैं और पोस्ट सात हैं। कंडीशन ऐसी बन गईं है कि उसे ये नौकरी तभी मिल सकती हैं जब हम सात सलेक्टेड लोगों में से कम से कम एक बंदा नौकरी ज्वाइन न करें। अपने आप कोई नौकरी ज्वाइन न करें, इसकी सम्भावना न के बराबर हैं, इसलिए नीरज ने बारी-बारी से हम सात में से छह लोगों के पास जाकर अपनी परिस्थितियाँ बताई और नौकरी ज्वाइन न करने का अनुरोध किया लेकिन कोई भी नहीं माना, तब लास्ट मेरे पास आया। मैंने उसके हालातों के बारे में सुनने के बाद उसे अपना जवाब देने के लिए थोड़ा वक्त माँगा और इस बीच उसके बताए एड्रेस पर जाकर हक़ीकत का जायजा लिया तो नीरज की बातें बिलकुल सही निकली। चूँकि नीरज को इस नौकरी की मुझसे ज्यादा जरूरत हैं, इसलिए मैंने ये नौकरी ज्वाइन न करने का डिसिजन ले लिया और नीरज को भी बता दिया। मम्मा, मेरा डिसिजन गलत तो नहीं हैं न ?" ऋषभ ने पूरी बात बता कर सवाल किया।
"नहीं बेटा, तुम्हारा फैसला बिलकुल सही हैं। तुम्हारे पापा अभी कमा रहे हैं, इसलिए तुम कुछ दिन बेरोजगार रह लोगे तो हमें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा, पर उस लड़के कुछ इस वक्त रोजगार नहीं मिलता तो उसका परिवार सड़क पर आ जाता। मुझे तुम पर गर्व हैं बेटा।" कहकर ऋषभ की माँ ने प्यार उसकी पीठ थपथपाकर उसे शाबाशी दी।