मन न भये दस बीस
मन न भये दस बीस
लाल सिंह एकदम परेशान हो जाता ज्यों ही उसे लच्छी की याद आती।
ऐसी क्या कमी थी मुझ मैं , जो लच्छी ने कभी भाव नहींं दिया..अच्छी खासी ठेकेदारी है ,शक्ल अक्ल भी ठीक है ..पर ?
शादी करना चाहता था मैं उससे, ठुल बोज्यू के हाथ रिश्ता भी भिजवाया ,जवाब में "आवारा" का तमगा लग कर रिश्ता लौट आया और लालसिंह के ही दीवान मामा के फौजी बेटे बिस्ना से लच्छी की चट मंगनी पट ब्याह हो गया। लाल सिंह का मन अब भी वही अटका है , सीने में हौंल सी उठती है, सोचता है "बोर्डर में कितने जवान ड्यूटी के दौरान दुश्मन की गोली से मर जाते है, कभी बिस्ना भी..."
फिर इस बुरी सोच के लिये अपने सर में धोल जमाता ..छि इतना गिर गया मैं ..,अकेले उसे बुदबुदाते देख उसकी बूड़ी ईजा कहती .."च्येला ब्याह करले..मेरा क्या, आज हूं कल नहीं .. ।
हां ईजा कहता हुआ, गौर से उस करूणामयी को देखता, जिसकी चेहरे की एक एक लकीर से बेटे के अब तक अकेले रहने की टीस टपकती दिखती , लाल सिंह सहन नहीं कर पाता तो चुपचाप बाहर आकर बाईक स्टार्ट कर गुनगुनाता "मन ना भये दस बीत एक हुतो सो गयो" और सरपट निकल जा।