Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

पाती पिया की

पाती पिया की

3 mins
425


दो दिन से मौसम में बहुत उमस थी। बाहर की बैचेनी अब नारायणी के मन में भी उतरने लगी थी। अंदर बाहर सब जगह एक सा बोझिल माहौल था...

हफ्ते भर पहले नारायणी एक बार फिर अपने पति सुयश से नाराज होकर अपने पीहर चली आयी थी। इसी उम्मीद के साथ कि हर बार की तरह सुयश जल्दी ही उसे मना कर वापस ले जायेंगा। लेकिन इस बार सुयश की कोई खबर ही नहीं थी।


अरे, छोड़ उस मतलबी के बारे में सोचना... चल मूवी चलते है, भाभी आप भी तैयार हो जाओ.." रीमा ने झुंझलाते हुए कहा। नारायणी ने अपने बचपन की सहेली रीमा से दो एक बार सुयश को फोन लगवाया था पर सुयश ने नहीं उठाया। नारायणी की भाभी भी वस्तुस्थिति सुधारना चाह रही थी। आखिर ननद का इस तरह बात बात पर रुठकर आना उन्हें भी नागवार गुजरता था। उमस की वजह से नारायणी को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। आकुल व्याकुल नारायणी सुयश की प्रतिक्षा कर रही थी।

तभी सुयश का ड्राइवर आया।

"आओ रामपाल, तुम अकेले आये हो...साहब ठीक तो है?" सुयश के बारे में जानने के लिए नारायणी उतावली हो रही थी।

"क्या बताऊँ भाभी....आजकल साहब अपना सारा समय ऑफिस में ही गुजारने लगे। सुबह जल्दी चले जाते है, देर रात घर आते है...खाने पीने की सुध ही नहीं है। यह आपके लिए भेजा है...."

वह एक बंद लिफाफा नारायणी को देते हुए बोला। नारायणी सुयश के बारे में और पूछना चाहती थी पर रामपाल जल्दी में था। मौसम की घुटन बढ़ती जा रही थी। हवा का नामोनिशान नहीं था...नारायणी पसीने से सारोबार हुई जा रही थी।


"उफ्फ....यहाँ कितनी उमस हो रही है...चलो आँगन में बैठते है.." पर वहाँ भी मौसम के मिजाज में कोई खास फर्क नहीं पड़ा। 

नारायणी ने लिफाफा खोला। लपक कर रीमा और भाभी भी पत्र पढ़ने आ गयीं....

"क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ,

कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ...हमारे बीच में तो अनकही भी समझने का नाता था...जिसे तुम बार बार तोड़ कर चल देती हो...माना मैं तुम्हें ज्यादा वक्त नहीं दे पाता, पर सिर्फ रोमांस से तो जिंदगी नहीं चलती ना। महंगे उपहार और तफरीह के लिये पैसे भी चाहिए होते हैं। यह सीधी सी बात तुम समझना नहीं चाहती। मेरी बातों से तुम अनमनी हो जाती हो, सोचना समझना बंद कर देती हो..."

तभी बादलों की गड़गड़ाहट के साथ, जोर से बिजली कौंधी....तेज हवाएं चलने लगी..

आगे लिखा था...

"तुम जब हमारे नितांत निजी क्षणों को सार्वजनिक कर देती हो, तुम्हारी भाभी, बहन और सखियाँ उस पर टिप्पणी करती है, उस वक्त तुम्हें असहज क्यों नहीं लगता? एक बार सोच कर देखो...मेरे भाई या मित्र हमारे रिश्ते पर कुछ बोले तो तुम्हें कैसा महसूस होगा? उतनी ही सहजता से ले सकोगी? ग़लती शायद मेरी ही है की मैं इसे तुम्हारा बचपना समझता रहा। अभी भी मेरे मन की गहराई की बातें तुम सब के साथ बाँट रही होगी...."


मौसम खुलने लगा था...आँगन में तेज बौछार गिरने लगी। नारायणी भागकर पत्र लेकर कमरे में आ गयी...

"वाह... मौसम कितना अच्छा हो गया है.... चलो रीमा चाय पकौड़ों का इंतजाम करते है ..." भाभी ने कहा। वह और रीमा निगाहें चुराते हुए नारायणी को अकेला छोड़ कर रसोई घर में चली गयी।

धुँधली निगाहों से नारायणी आगे पढ़ने लगी...

"मैंने सुना था विवाह साझेदारी का रिश्ता होता हैं पर मैं तुमसे और तुम दुनिया से...पूरी शिद्दत से यह साझेदारी निभा रही हो....अब बस....बहुत हुआ। जब भी तुम्हें लगे यह हमारा जीवन है, कोई टीवी का धारावाहिक नहीं, मुझे खबर कर देना। अगले ही क्षण तुम मुझे अपने पास पाओगी, अपने साथ पाओगी।


बाहर मूसलाधार बारिश शुरू हो चुकी थी। जम कर पानी बरस रहा था, उधर आसमान से इधर नारायणी की आँखों से। सहसा नारायणी ने अपना फोन उठाया और सुयश का नम्बर लगा दिया...बादल अब बरस चुके थे, आसमान साफ हो गया था। सब ओर ताज़गी भरी ठण्डी ठण्डी हवा बहने लगी थी !!



Rate this content
Log in