दुश्वारियां
दुश्वारियां
दीप्ति ने उदास मन से खाना बनाया आलोक और सास ससुर क़ो खाना लगा दिया। ....ईशा अपने कमरे में पढ़ रही थी इस बार हाई स्कूल है उसका , कई बार खाने क़ो बुलाने के बाद भी वह खाने के लिए नीचे नहीं आई। दीप्ती की बात तो न मानने की जैसे उसने कसम ही खा ली है। सुनती ही नही बड़ी चिढ्चिढी सी हो गई है।
"ईशा खाना खा लो। ...l"इस बार आलोक ने आवाज दी मगर कोई उत्तर नहीं आया।
"तू क्यों चिल्ला रहा है। ...आ जाएगी ?"ईशा के दादा जी ने धीरे से कहा और खुद ही ऊपर बुलाने चले गए।
थोड़ी देर बाढ़ ईशा नीचे आई और बिना अपने मम्मी पापा से बोले खाना खाने बैठ गई l
"रायता लोगी बेटा ?"दीप्ती ने प्यार से पूछा।
"मैं जो खाऊंगी ले लुंगी। ...आप तो रहने ही दीजिए l"ईशा ने रूखेपन से कहा तो दीप्ति सहम गई , आलोक सब देख रहे थे।
"ईशा यह कौन सा तरीका है मम्मी से बात करने का ?"सुनकर ईशा आलोक की तरफ भी घूरने लगी यह देखकर दादी बोलीं। ..."हाँ हाँ जो खाना होगा खा लेगी तुम दोनों क्यों परेशान हो रहे हो ?"
"लेकिन मम्मी। ...l"
"जाओ तुम आराम करो l"दादू ने आलोक की बात क़ो बीच में ही काटते हुए कहा।
दीप्ति की आँखों से नींद कोसों दूर थी , अभी पिछले साल तक जो बेटी उसके बिना पलक तक नहीं झपकाती थी अब बात बात पर काटने क़ो दौड़ती है।
"क्या हुआ ?"आलोक ने उसके पास बैठते हुए कहा।
"कुछ नहीं। ...मुझे लगता है हम लोगों ने ठीक नहीं किया शादी करके l"दीप्ति ने बेचैनी से कहा।
"देखो दीप्ति हमने किन हालातों में शादी की है यह तुम भी अच्छी तरह से जानती हो। ...ईशा के अच्छे भविष्य और उसकी सुरक्षा के लिए न। ...तुम चिंता मत करो धीरे धीरे वह सब समझ जाएगी। ...मुझ पर विश्वास रखो l"सुनकर दीप्ति की आँखें भर आई।
अचानक दरवाजा खटखटाने पर जब दीप्ति ने खोला तो सामने ईशा खड़ी थी। ...देखकर दीप्ति उससे लिपट गई।
"मुझे आपके पास सोना है l"उसने मासूमियत से कहा सुनकर आलोक क़ो हँसी आ गई और दीप्ति भी मुस्करा दी।
"हाँ बेटा क्यों नहीं। ...तुम जहाँ सोना चाहो सो सकती हो। ..मुझ पर और इन पर पूरा हक है तुम्हारा l"दीप्ति ने प्यार से ईशा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"हाँ। ...और तुम जैसे कहोगी वैसे ही होगा
प्रॉमिस l"आलोक ने भी प्यार से कहा।
"सच। ..?"
"हाँ l"
"मुझे डर लगता है कहीं आप भी मुझसे दूर न हो जाओ जैसे भगवान ने पापा क़ो मुझसे दूर कर दिया l"ईशा ने सुबकते हुए कहा।
"नहीं बेटा। ....हमारी और इस घर की तुम दुनियाँ हो। ..सच्ची l"आलोक ने फिर प्यार से कहा।
ईशा क़ो कमरे में अंदर करके आलोक जाने लगे तो ईशा ने उनका हाथ पकड़कर रोक लिया।
"आप मेरी मम्मी क़ो कभी परेशान तो नहीं करोगे ?"
"ईशा। .....यह क्या ?"
"बोलने दो इसको। ...l"आलोक ने दीप्ति की बात क़ो बीच में ही काटते हुए कहा।
ईशा बहुत देर तक बात करती रही और जब वह संतुष्ट हो गई तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई।
"अब खुश ?"
"जी l"
"चलो जाओ सो जाओ दोनों माँ बेटी। ...मुझे सुबह जाना भी है। ...तैयारी कर लूँ l"आलोक ने मुस्कराते हुए कहा।
"हम तीनों करते हैं न आपकी तैयारी l"ईशा ने खुशी से कहा और तीनों जोर से हँस पड़े।
दरसल आलोक ईशा के चाचु थे जोकि उसके पापा से कई वर्ष छोटे भी थे और आर्मी में कर्नल थे। ईशा के पापा का देहांत तीन साल पहले एक कार एक्सीडेंट में हो गया था। पोती और बहु की सुरक्षा के लिए उसके दादी दादू ने ही एक साल पहले दोनों क़ो बड़ी मुश्किल से विवाह के लिए राजी किया था। ...दोनों का बेहद सादे समारोह में विवाह कर दिया गया जिससे मासूम ईशा के मन क़ो बड़ा धक्का लगा उसको लगा कि उसकी माँ भी उससे दूर हो जाएगी।
"आज बहुत दिनों बाद घर में यह तीनों हँसे है l"दादी ने आँसू पौंछते हुए कहा।
"चिंता न करो दया सब ठीक हो जाएगा l"दादू ने आराम की गहरी साँस लेते हुए कहा।