फर्क क्यूँ?
फर्क क्यूँ?
फर्क क्यूं??
शादी की रस्में चल रही थी तीज, त्यौहार भी थे। कभी घर में राधा ने काम नहीं किया था पर ससुराल कभी मना भी नहीं किया। सासु मां से पूछ पूछ कर करती। थक जाती पर उफ़ नहीं करती| कभी रो लेती अकेली कि क्यों बनाया लड़की को दूसरे का घर संभालना होता है।पूरी जिम्मेदारी सासु मां ने राधा पर डाल दी थी घर के काम की ।
कभी बता देती की थक गयी हूं तो सास कह दे कि पहले काम ख़त्म कर लो फिर आराम करना ।हम तुम्हारे उम्र मे सयुक्त बडे परिवार के साथ काम करते थे ।कभी नही थके। राधा कहती काम हो गया मम्मी जी आराम कर लूं। तो कहती आराम कर बस आधा घंटा ही सोना बहुत काम होता है घर का। आदत बिगड़ जाती है सोने से, रोज नींद आयेगी नहीं तो। राधा को मायके के घर ,मम्मी की याद आती, वो होती तो मना करती थी, ।
कि मां आज थक गई हूँ, नहीं हो रहा काम, पैर जवाब दे रहे हैं। पर आंखें भर आती ।
ससुर जी को लगता काम ही क्या होता है औरतों को करने को घर में ? सारा दिन थकान होती होगी ये भावनाएं नहीं थी । कभी मायके नन्द भी रहती तो वो कुछ काम नहीं करती । उसे बहुत लाड़ से पाला था उसे कुछ नहीं कहा जाता । रोली ननंद उनके लिए बच्ची ही थी ।वो मायके आती तो भी काम नहीं करती ।
उसे सासु मां और ससुर जी ने आराम को नहीं कहा । सकारात्मक सोचा जाये तो शायद सासु मां भी काम करते करते भूल गयी कि हर औरत को आराम भी चाहिए। पर बेटी के लिए विचार अलग क्यूं? या कभी सोचती ससुराल में सास ,ससुर को ये नहीं लगा कि मैं अभी नयी नयी इस घर में आई हुं थोडा समय लगेगा । जिम्मेदारी लेने में ।
अभी तो अपने घर चुलबुली लड़की थी । और अब बहु बनी कुछ समय लगेगा जब आदत होगी काम करने की । पर काम में लगी रहती थी।पति को बताया पति ने कहा छोड़ो ये सब हमारे घर में ऐसा ही है तुम बस बड़े समझकर भूल जाओ ,बात खत्म हो गयी ।त्योहार आने वाला था जो ससुराल में ही होता था तब सबके लिए सामान खरिदा ।साड़ी ,सासु मां के लिए ,ससुर जी के लिए कपड़े ,नन्द के परिवार के लिए भी ।
सारा दिन भाग दौड़ त्यौहार का दिन था ।धूमधाम से पूजा पाठ हुआ ।शाम को राधा घर का काम निपटा रही थी, गर्मियों के दिन और रसोई में जाने की हिम्मत नहीं तभी ससुर जी की आवाज आई "सुनो राधा, कुछ घंटे में कुछ मेहमान आ रहे हैं। मैं उन्हें अभी बोला आने को आते ही होगें। पहले ही बता देते हम जल्दी जल्दी काम निपटा लेते अभी सारा काम फैला पड़ा है, उन लोगों के नाश्ते और खाने का प्रबंध भी करना पड़ेगा।बाजार का नहीं खर्च करना चाहते। सब घर में बनाओ समोसे, कचौड़ी। राधा की सास ने कहा बहुत काम है मेहमान एक घंटे मे आते होगें कैसे होगा?ससुर जी तेरी आवाज से बोले और "तुम्हें काम ही क्या है?"
बाद में निमटाती रहना घर में ही तो रहती हो। ना चाहते हुए राधा की नजरें नीचे झुकी थी क्योंकि सुबह से काम करते करते थकान से उसका शरीर जवाब दे रहा था। सासु मां ने राधा को देखा और बोली जल्दी हो जाएगा, पहले रसोई का कर लो ।हमेशा ससुर जी ऐसे ही करते थे एक या दो बार की बात हो तो ठीक ही था। राधा भी थकती होगी किसी ने नही सोचा ।
कुछ दिन बाद राधा ने सासु मां से वाशिंग मशीन खरीदने के लिए कहने लगी। मम्मी जी कहिए ना पापा जी से। अभी तो मिल कर कर लेते हैं।
जाड़ों में बहुत आराम होगा। राधा की मम्मी ने जैसे ही कहा कि मशीन ले लिजिये राधा कह रही थी बहुत आराम है। तभी राधा के ससुर ने तेज आवाज में कहा "क्या जरूरत है ? दोनों मिल कर कर तो लेती हो और सारे दिन काम ही क्या है? थोड़े ही तो कपड़े होते हैं। पहले महिलाएं पूरा संयुक्त परिवार के धोती थी।
अपने पति से बात कहती वह हमेशा कहते कि पापा जी ऐसे ही हैं। वह किसी की नहीं सुनते। वो औरत को समझते हैं काम करना ही चाहिए और घर में काम ही क्या? तुम मत सोचो, मैं जल्दी ही घर के लिए दिवाली पर वॉशिंग मशीन ला दूंगा।
कुछ दिन के बाद नंद का तबादला, उसकी ससुराल के शहर में हो गया। राधा की नंद बैंक में नौकरी करती थी।
राधा बोली की चलो नंद जी का भी समय अच्छे से निकल जाएगा। नंद को भी आराम था कि मायके में रह कर भी दो-तीन साल आराम से काट लेगी फिर उसके बाद उसका तबादला दूसरे शहर में हो जाएगा। सास ससुर हमेशा रोली पर तरह खाते कि रोली सुबह चली जाती है और शाम को 5:00 बजे घर आती है पूरा दिन थक जाती है।
नंद बिल्कुल भी घर में सहयोग नहीं करती थी। काम में ,रोली कहती थी कि मैं सारा दिन थक जाती हूं ।अब काम करने की हिम्मत नहीं रहती आदत छूट गई है। घर का काम करने की । राधा के सास ससुर नंद को काम नहीं करने देते । दिवाली से एक दिन पहले राधा के ससुर जी ने कहा कि पड़ोस से कुछ लोग आने वाले हैं।
मेहमान भी रोली ने कहा पापा जी आप आज मत बुला लीजिएगा क्योंकि मैं पूरे दिन थक कर शाम को तो आऊंगी । उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं है किसी मेहमान के पास बैठने की। ससुर जी ने एकदम से कहा ठीक है बेटा कल कह देता हूं ।कल आ जाएंगे तू आराम कर। कल तेरी छुट्टी भी है। शब्द उनके कभी भी राधा और सासू मां के लिए कभी नहीं निकले। ना तो उन्होंने कभी राधा को और सासू मां को घर के बाहर नौकरी की इजाजत दी और वही चीज बेटी के लिए अलग सोच थी।
उनका मानना था रोली बाहर काम करके थक जाती है और जो महिलाएं घर में रहती है उन्हें काम ही क्या है? झाड़ू पोछा बर्तन कपड़ों के अलावा वह काम उनकी गिनाई में कभी नहीं था। सासु मां भी रोली को बिल्कुल काम नहीं कराती थी । उन्हें भी रोली छोटी सी लगती ।जबकी राधा और रोली में केवल एक साल का अंतर था। ये बात राधा को चुभती पर वो कुछ नहीं कह पाती थी। राधा सोचती की जहाॅ॓ मायके में कुछ काम को नहीं कहते ।उसके सौ नखरे उठाते फिर ससुराल में क्यों उससे सुशील बहु की तरह सोच रहे हैं।
वो अंजाने घर में सारा घर संभाल ले। आज वो उसे रोली की तरह क्यों छोटा नहीं समझ रहे हैं । सारा दिन काम की थकान क्यों नहीं दिखती ?बाहर काम और घर के काम में थकान सिर्फ बाहर वालों की ही क्यों दिखती है??
घर का काम क्या चुटकी बजाते हो जाता है? बस कितने आराम से बोल जाते हैं कि "तुम्हें काम ही क्या है?" और सासु मां भी बेटी के लिए वो बात रोली के लिए अलग क्यों? कि शादी के बाद तक रोली में बचपना दिखता था और राधा में सुशील बहु, जिससे पूरा घर संभालने की उम्मीद रहती। एक इस घर की लड़की थी, एक दूसरे घर से आई, फिर फर्क क्यों?
मौलिक रचना
अंशु शर्मा