वड़वानल - 31
वड़वानल - 31
‘‘हमें शेरसिंह के कथनानुसार काम करना चाहिए, सैनिकों का मनोबल बढ़ाना होगा। किंग का घमण्ड चूर करना होगा।’’ मदन ने कहा।
‘‘फ़िलहाल किंग जीत के नशे में घूम रहा है और इसी नशे में उसने बैरेक्स के सामने वाले तीव्र प्रकाश वाले बल्बों की संख्या कम कर दी है। पहरेदारों की संख्या भी घटा दी है। गोरे अधिकारी थोड़े निश्चिन्त हो गए हैं, उनकी नींद उड़ानी ही होगी।’’ गुरु ने कहा।
‘‘हमें गोरों को छेड़ते रहना होगा जिससे वे चिढ़ जाएँगे। क्रोध में आदमी का सन्तुलन बिगड़ जाता है और उसके हाथ से गलतियाँ होने लगती हैं। इन्ही गलतियों का फ़ायदा हमें उठाना है।’’ मदन ने सुझाव दिया।
‘‘करना क्या होगा?’’ दास ने पूछा।
‘‘यही निश्चित करना है’’, मदन कहता रहा, ‘‘क्या करना चाहिए यह तय करने के लिए हमें ‘बेस’ की स्थिति का जायजा लेना होगा। यह देखना है कि किस स्थान पर पहरा कमजोर है और वहीं हम नारे लिखेंगे, पोस्टर्स चिपकाएँगे।’’
मदन का यह विचार सबको पसन्द आ गया। यह तय किया गया कि कल पूरे दिन बेस का निरीक्षण किया जाए और रात को इकट्ठे होकर चर्चा की जाए।
‘‘मेरा ख़याल है कि वेहिकल डिपो को हम अपना निशाना बनाएँ, क्योंकि वेहिकल डिपो एक ओर, कोने में है। सनसेट के बाद वहाँ केवल एक सन्तरी के अलावा कोई पंछी भी नहीं आता। रात बारह बजे के बाद अधिकांश सन्तरी किसी ट्रक में लम्बी तानकर सो जाते हैं। इन ट्रकों को हम अपना लक्ष्य बनाएँगे।’’
‘‘यदि ट्रकों पर नारे लिख दिये जाएँ और ये ट्रक भली सुबह बाहर निकल पड़ें तो हंगामा हो जाएगा।!’’ मदन खुशी से चहका।
मदन, गुरु और दास ने ट्रकों पर नारे लिखने की जिम्मेदारी ली। रात के करीब एक बजे तीनों वेहिकल डिपो गये। डिपो में चार ट्रक और एक स्टाफ कार खड़ी थी। डिपो के परिसर में खास रोशनी नहीं थी। रात वाला सन्तरी एक ट्रक में मीठी नींद ले रहा था। पन्द्रह मिनट में ही सभी वाहनों पर नारे लिखकर ये तीनों बाहर आ गए।
इन नारे लिखे ट्रकों में से एक ट्रक सुबह चार बजे फ्रेश राशन लाने के लिए बाहर निकला, अपने ऊपर लिखे देशप्रेम के नारों को प्रदर्शित करते हुए। सैनिकों के दिलों में व्याप्त देशभक्ति और गुलामी के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए वह ट्रक कुलाबा से कुर्ला होकर आ गया। कुर्ला के डिपो में पहुँचने पर स्टोर–असिस्टेन्ट और ड्राइवर के ध्यान में यह बात आ गई कि ट्रक पर नारे लिखे हैं, मगर वे वहाँ पर कुछ नहीं कर सकते थे।
''Commander King speaking!'' कमाण्डर किंग गुस्से में टेलिफोन पर चीख रहा था। सुबह साढ़े सात बजे दरवाजे के सामने पहुँचने वाली स्टाफ कार का आज पौने आठ बजने पर भी कहीं अता–पता नहीं था। समय के पाबन्द किंग को गुस्सा आना लाजमी था।
‘‘मैं ट्रान्सपोर्ट ऑफिसर–––’’
''Oh, hell with you! स्टाफ कार को देर क्यों हो गई ?’’
‘‘सर, स्टाफ कार में थोड़ी प्रॉब्लम है।’’
‘‘क्या हुआ ? कल रात नौ बजे तक तो बिलकुल ठीक थी और यदि बिगड़ गई है तो क्या तुम सुबह ही चेक करके उसे ठीक नहीं कर सकते थे ?’’ क्रोधित किंग सवाल दागे जा रहा था।
‘‘सर, वैसे तो कार ठीक है। थोड़ा–सा रंग देना–––।’’
‘‘मैंने तुम्हें स्टाफ कार को रंग देने के लिए नहीं कहा था, फिर इतने आनन–फानन में यह काम क्यों निकाला ?’’
‘‘सर–––’’ जवाब देने वाला घबरा रहा था। किसी तरह हिम्मत करके उसने कह दिया, ‘‘रात को किसी ने कार पर नारे लिख दिये थे, उन्हें मिटाने के लिए...।’’
''Bastards are challenging me!'' वह क्रोध से चीखा। ‘‘कमाण्डर किंग क्या चीज़ है, ये उन्हें मालूम नहीं है। मैं उन्हें अच्छा सबक सिखाऊँगा। रात के सन्तरियों की लिस्ट भेजो मेरे पास।’’ किंग कुड़बुड़ाते हुए पैदल ही ऑफिस के लिए निकल ही रहा था कि उसका फोन फिर बजने लगा।
‘‘कमाण्डर किंग।’’
‘‘सर, ऑफिसर ऑफ दि डे स्पीकिंग, सर, थोड़ी–सी गड़बड़ हो गई है। आज सुबह फ्रेश राशन लाने के लिए जो ट्रक बाहर गया था, उस पर आन्दोलनकारी सैनिकों ने नारे लिख डाले थे।’’ घबराते हुए ऑफिसर ऑफ दि डे ने कहा।
‘‘जब ट्रक बाहर निकला, तब तुम सारे के सारे क्या सो रहे थे ? ड्यूटी पर तैनात सभी सैनिकों की लिस्ट मुझे चाहिए और आज ही उन्हें मेरे सामने पेश करो।’’ गुस्से से पागल किंग ने ऑफिसर ऑफ दि डे को धमकाया।
यह किंग के लिए आह्वान था। सुबह–सुबह ही वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा था। उसका अनुमान गलत साबित हुआ था। दत्त अकेला नहीं था।
‘कौन हो सकता है उसके साथ ? क्वार्टर मास्टर, मेन गेट का सन्तरी, स्टोर–असिस्टेन्ट या कोई और ?’ इस सवाल का जवाब ढूँढ़ने की वह कोशिश कर रहा था। अँधेरे में इस तरह टटोलना उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। ‘रात वाले तीन ट्रान्सपोर्ट सन्तरी, सुबह ड्यूटी वाला क्वार्टर मास्टर, मेन गेट सन्तरी, ट्रक के साथ गया स्टोर–असिस्टेन्ट, ड्राइवर सभी को सजा देनी होगी।’ उसने मन ही मन निश्चय किया।
किंग अपने ऑफिस पहुँचा तो टेलिफोन ऑपरेटर ने उसे सूचित किया कि एडमिरल रॉटरे उससे बात करना चाहते हैं।
''Good morning, Sir! Commander King here.'' किंग की न केवल आवाज़, बल्कि उसका चेहरा भी गिर गया था।
''Good morning, Commander King. ‘तलवार’ पर जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं है। अगर तुम ‘बेस’ पर कंट्रोल नहीं रख सकते तो मुझस कहो। मैं किसी और को...’’ रॉटरे मीठे शब्दों में किंग की खिंचाई कर रहा था।
‘‘नहीं, नहीं सर, हालत पूरी तरह मेरे नियन्त्रण में है। मैंने कल्प्रिटस को ढूँढ़ने की कोशिश शुरू कर दी है और मुझे पूरा विश्वास है कि आठ–दस दिनों में उन्हें जरूर पकड़ लूँगा।’’ कमाण्डर किंग रॉटरे को आश्वासन दे रहा था।
''Now no more chance for you. अगर 16 तारीख तक तुमने गुनहगारों को गिरफ़्तार नहीं किया तो...’’ रॉटरे ने धमकी दी।
किंग ने रिसीवर नीचे रखा। उसका गला सूख गया था। एक गिलास पानी गटगट पी जाने के बाद वह कुछ सँभला उसने पाइप सुलगाया, दो–चार गहरे–गहरे कश लिये और भस्स, करके धुआँ बाहर छोड़ा, उसे कुछ आराम महसूस हुआ। आँखें मींचकर वह ख़ामोश कुर्सी पर बैठा रहा।
‘‘नहीं, गुस्सा करने से, चिड़चिड़ाहट से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। सब्र से काम लेना होगा। दत्त के पेट में घुसना होगा। वो शायद...’’ किंग के भीतर छिपे धूर्त सियार ने अपना सिर बाहर निकाला।
''March on the accused.'' 5 तारीख को सुबह साढ़े आठ के घंटे पर कोलिन्स ने सन्तरियों को आज्ञा दी और दत्त को इन्क्वायरी रूम में लाया गया।
‘‘तुमने जिन सुविधाओं की माँग की थी वे तुम्हें दी जा रही हैं ना ?’’ पूछताछ आरम्भ करने से पहले कोलिन्स ने दत्त से पूछा। उसका ख़याल था कि दत्त उसे धन्यवाद देगा। मगर दत्त ने उसकी अपेक्षा पर पानी फेर दिया,‘‘सारी सुविधाएँ नहीं मिली हैं; शाम को एक घण्टा बाहर नहीं घूमने दिया जाता।’’ दत्त ने शिकायती सुर में कहा, ‘‘और चाय एकदम ठण्डी–बर्फ होती है, मुझे गरमागरम चाय मिलनी चाहिए।’’
कोलिन्स को दत्त पर गुस्सा आ रहा था। मगर काम निकालने के लिए उसने अपने गुस्से को रोका और हँसते हुए कमाण्डर यादव को सूचना दी।
‘‘ये छोटी–मोटी बातें हैं, तुम इनका ध्यान रखो!’’
‘‘हमने अपना वादा पूरा किया है, अब तुम अपना वादा निभाओ।’’ उसने दत्त को ताकीद दी।
‘‘मैं अंग्रेज़ नहीं, बल्कि हिन्दुस्तानी हूँ। तुम्हारे जैसी चालाकी मेरे पास नहीं। मेरे देश में तो सपने में किए गए वादे को पूरा करने के लिए राजपाट त्यागने वाले राजा–महाराजा हो गए हैं। मैंने तो जागृतावस्था में जुबान दी है, उसे निभाने की मैं पूरी कोशिश करूँगा।’’ दत्त ने सावधानी से उत्तर दिया।
पूछताछ आरम्भ हुई।
पार्कर ने दत्त से नवम्बर से फरवरी के बीच हुई घटनाओं को दोहराने के लिए कहा।
‘‘मेरा ख़याल है कि हमने एक–दूसरे पर विश्वास रखने का निर्णय लिया है, और मुझे जितना भी मालूम है उसे सही–सही बताना है। मैं इस समय तो बतलाता हूँ, मगर प्लीज, यही सवाल मुझसे फिर से न पूछना।’’ दत्त ने जवाब दिया और घटनाओं का क्रम सामने रख दिया।
‘‘जब तुम सिंगापुर में थे तो क्या आज़ाद हिन्द फौज के सिपाही तुमसे मिले थे ?’’ पार्कर ने पूछा।
‘‘तुमसे युद्ध करने के बदले वे मुझसे मिलने क्यों आएँगे ?’’ दत्त ने प्रतिप्रश्न किया।
‘‘15 जनवरी 1945 को एन.टी.सी. और जी.आर.टी. के साथ बाहर गया था ऐसा लिखा है। ये दोनों कौन हैं और तुम कहाँ गए थे ? किससे मिले थे ?’’ पार्कर ने पूछा।
‘‘अगर मैंने तुमसे पूछा कि 15 अक्टूबर, 1945 को शाम छ: बजे किसके साथ और कहाँ थे, तो जवाब दे सकोगे ? नहीं दे सकोगे। क्योंकि ये बात इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं कि उसे याद रखा जाए। यदि तुम जवाब दोगे भी तो वह निरी गप होगी, क्या तुम चाहते हो कि मैं ऐसी ही गप मारूँ ?’’ दत्त ने चेहरे पर गम्भीरता बनाए रखी।
‘‘तुमने हमें सहयोग देने का वचन दिया हैै।’’ पार्कर ने याद दिलाई।
‘‘बिलकुल ठीक। इसीलिए मैं तुमसे कह रहा हूँ कि ऐसे सवाल मत पूछो।’’ दत्त ने जवाब दिया।
दत्त बिलकुल नपे–तुले जवाब दे रहा था। यदि कोई ऐसा सवाल पूछा जाता जो उसे मुश्किल में डाल देता तो वह कह देता, ‘‘याद नहीं” कभी–कभी निडरता से जवाब फेंक रहा था। उसे यकीन था कि उसके बारे में सजा का निर्णय हो चुका होगा।
कोलिन्स तथा अन्य अधिकारियों को भी यकीन हो गया था कि दत्त उन्हें झुला रहा है। मगर कोई चारा ही नहीं था। पानी को मथने से तो मक्खन मिलने से रहा।
दत्त को बैठने के लिए कुर्सी दी गई थी। सुबह से तीन–चार बार चाय दी गई थी। दो–दो घंटे बाद पन्द्रह मिनट का अवकाश और उस दौरान सिगरेट पीने की इजाज़त भी दी गई थी। टाइप किए गए प्रश्नोत्तरों की एक प्रति भी उसे दी जा रही थी। पहरेदारों की संख्या घटाकर दो कर दी गई थी। ये पहरेदार भी हिन्दुस्तानी ही होते थे। अब उसे सेल में अकेलापन महसूस नहीं होता था, क्योंकि पहरेदार उससे दिल खोलकर बातें करते। वे समझ गए थे कि दत्त की बात ही और है। इसलिए उनके मन में दत्त के प्रति आदर और अपनापन पैदा हो गया था। ‘पूछताछ का यह नाटक कितने दिन चलेगा ?’ वह अपने आप में विचार कर रहा था, ‘ये सब जल्दी ख़त्म हो जाना चाहिए। मगर, नहीं। पूछताछ लम्बी खिंचती जाए; यदि तब तक विद्रोह हो गया तो... सैनिक तो आजाद हो जाएँगे और फिर... कमाण्डर किंग, एडमिरल कोलिन्स, खन्ना, यादव, रावत... सभी अपराधी––– देशद्रोह, बुरा व्यवहार, स्वाभिमानी सैनिकों पर अत्याचार... हर आरोप फाँसी के तख्ते तक ले जाने वाला... स्टूल पर बैठे होंगे वे... पूछताछ अधिकारी के सामने - मेरे सामने... अब तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव करूँ ?’ वह सपने देखता।