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अंधेरा

अंधेरा

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उसकी खूबसूरती उसकी दुश्मन बन गई थी, उस दिन उसके पिता और भाइयो ने उस दरिंदे को सिर्फ उसके साथ छेड़खानी करने से ही तो रोका था, लेकिन उन दरिंदो ने खुले आम तलवारों से काट डाला था उन्हें।

वो रोती रही थी-कोई तो बचा ले उसके पिता और वीरन को। लेकिन कोई भी बलशाली नहीं आया था उनकी रक्षा को। खुली सड़क पर दम तोडा था तीनो ने, पिता और भाइयो की लाड़ली उनकी लहूलुहान लाशो पर रोती रही थी जब तक पुलिस लाशो को लेकर न गई।

हत्यारे गिरफ्तार हुए पर जल्द जमानत पर बाहर आ गए, सबूत न होने पर एक हफ्ते पहले रिहा भी हो गए थे वो सातो।

पिता और भाई तो चले गए थे दुनिया से लेकिन पीछे छोड़ गए थे अर्धविक्षिप माँ और १० साल की मासूम बहन और विपन्नता। पढाई के साथ घर चलाने के लिए इवनिंग कोचिंग क्लासेज़ में मैथ की ट्यूटर की नौकरी दे दी थी उसके पिता के परिचित कोचिंग मालिक ने।

घर से पाँच किलोमीटर कोचिंग पढ़ाने वो सीधे कॉलेज से ही चली जाती थी। कोचिंग क्लासेज़ ख़त्म होती रात को नौ बजे और घर तक आते-आते १० बज जाते थे उसे।

हमेशा सीधी सड़क से घर जाने वाली वो आजकल इस अंधेरी गली से गुजरने लगी थी वो, कबाड़ी बाजार से खरीदा भद्दा सा काला ओवरकोट पहन कर। ३०० मीटर लम्बी अंधेरी गली का अंधेरा उसे निगल जाना चाहता था, वो पापी भी तो इन्ही गलियों में बसते है। कल उनमे से एक ने उसे रात को आते देख भी लिया था।

सर्दी की स्याह रात, आज फिर उसने उस अंधेरी गली में कदम रखा, दस कदम चलते ही उसे एहसास हो गया की सात कद्दावर गली के अलग-अलग हिस्सों से निकल कर उसके पीछे हो लिए थे। उसने अपने चलने की गति बढ़ा दी और लगभग दौड़ने लगी लेकिन पीछे आते लोगों के जूतों की आवाज लग रहा था की वो गली पार नहीं कर सकेगी, लेकिन उसने अपनी दौड़ने की गति कम ना की।

"रुक जा बुलबुल, ज्यादा ना उड़ आज तो तेरे पंख काटने है।" - एक कर्कश आवाज उसके कानों में गूँज उठी और उसकी आँखों में अजब सी चमक जाग उठी। दौड़ते-दौड़ते उसका हाथ अपनी गर्दन के पीछे गया और गले में बंधी जंजीर से लटकती कुल्हाड़ी उसके हाथ में आ गई। वो तेजी से रुकी और कुल्हाड़ी को जोर से अपने पीछे दौड़ते कदमो की दिशा में घुमाया। दौड़ते कद्दावर इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार न थे और आगे दौड़ते चार कद्दावर कुल्हाड़ी के धारदार फल की जद में गए। उनके धड़ कुहाड़ी से कट गए थे वो चीख कर जमीन पर गिरकर तड़फने लगे। उनके अंजाम से जड़ हुए तीन कद्दावरों का भी यही हाल हुआ।

अंधेरे में देखने में अभ्यस्त हो चुकी उसकी आँखों ने उन सातों की गर्दनों को धड़ से अलग किया और कुल्हाड़ी को उन्ही के कपड़ो से साफ़ कर पुनः उसी जंजीर में टांग लिया। शोरगुल की आवाज़ से कुछ अंधेरे में डूबे मकानों के दरवाजे खुलने लगे थे लेकिन तब तक वो अंधेरी गली से निकल उजालेवाली गली में आ चुकी थी। उसके जिस्म के काले ओवरकोट पर खून के दाग नजर नहीं आ रहे थे। आज अंधेरा उसे न निगल सका, आज उसी ने अंधेरे को निगल लिया था।


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