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एक सुबह

एक सुबह

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सुबह के छह बज रहे होंगे, दिसम्बर का महीना, रजाई से निकलने के लिये हिम्मत बटोरनी पड़ती। जाग तो हम दोनो ही गये थे, पर उठे कौन? जो पहले उठेगा वही चाय बनाएगा। पति पत्नी भले ही पूरी जिन्दगी लड़ते झगड़ते बिता दे पर बुढ़ापा सच्चे दोस्त की मानिन्द होता है। चलो आज बुढऊ को चाय बनाकर हम ही पिलाए। रजाई को अपने ऊपर से निकाल कर ऐसे फेंका जैसे कोई सैनिक दुश्मन पर बारूद का गोला फेंकता है। उठकर शरीर को ताना कि लगा कोई जोर जोर से गेट बजा रहा है। शाल ओढ़ी, दरवाजा खोला, दुबला पतला, काला रंग, सिर्फ एक फटी बनियान, और हाफ पेंट पहने ठंड से कांपता करीब दस साल का लड़का खड़ा है।


“मम्मी जी बड़ी ठंड है, मै मर जाऊंगा, आप एक कप चाय पिला दे। भगवान आपका भला करेगा। चाय के बाद आपके घर का काम कर दूँगा”


वात्सल्य भाव जाग गया। मेंरे बच्चे बाहर है न। मैने कहा “बैठ”

उसके लिये सबसे पहले इनकी कमीज, स्वेटर ले आई। कहा “पहले इसे पहन, फिर चाय भी दूँगी”


स्फूर्ति आ गई बूढ़ी हड्डियों में। विदेश में बसे अपने बच्चो के लिये ममत्व भाव, इस लड़के के लिये भी जाग गया। गिलास में अदरक की चाय और खाने के लिये दो गरम गरम घी के पराठे, नमकीन उसे दिया। उसकी आँखो में कृतज्ञता और मेंरे मन में तृप्ति का भाव एक साथ जाग गये। मैने पूछा- “नाम क्या है तेरा?”

बोला “कन्हैया”


"मां बाप है? तुम पढ़ते हो? कहाँ रहते हो?" मैने इतने सारे प्रश्न एक साथ पूछ लिये।


उसने कोई जवाब देने के बजाय पूछा “मम्मी आप काम बता देना। मै कर दूँगा" चाय पराठे पर पिल पड़ा वह।

"बताओ क्या काम करुँ"


"कुछ नहीं अब तू जा" उसने ज़िद पकड़ ली।

मैने पीछा छुड़ाने के लिये कह दिया “ये बगीचा साफ कर दे”


उसने बगीचे पर निगाह मारी। बोला “मम्मी आप बहुत अच्छी है। बस सौ रुपये और दे दो। अपनी छोटी बहन के लिये समोसे, जलेबी ले जाऊंगा और उसके लिये खाँसी की दवा भी"

सौ रुपये उसने जेब में रख लिये। झाडू उठा काम पर लग गया। मै भी अंदर आ अपने किचन में लग गई। करीब एक घन्टे से ऊपर हो गया। उसकी कोई आवाज भी नहीं आ रही थी। बाहर आकर देखा, बगीचे की सफाई, निराई, गुड़ायी और पानी भी दे दिया गया था। अमरूद के तीन पेड़ थे। उसने पके अमरूद तोड़, रख दिये थे, कुछ फूल तोड़ रहा था। मेंरे पास आकर बोला “मम्मी ये अमरूद आपके लिये तोड़ दिये है। आप नहीं तोड़ पाती न और फूल पूजा के लिये”


मै एकटक उसे देख रही थी। बगीचा सूरज की किरणो के बीच चमचमा रहा था। इतना अच्छा काम तो माली से भी नहीं होता। वो बोला “क्या मम्मी, ऐसे क्या देखते मेरे को? आपको क्या लगा मै चाय पीकर और रुपये लेकर भाग जाऊंगा”


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