आसमान को छूने की आशा
आसमान को छूने की आशा
फोन कान में लगाए-लगाए रंजन के पैर काँपने लगे और वो धम्म से जमीन पर बैठ गया। दोनों आँखों से आँसू बह रहे थे और बचपन से लेकर अभी तक की जाने कितनी घटनाएँ आपस में गड्ड-मड्ड होकर मन को मथ रही थीं। मम्मी पापा का प्यार, उनकी मेहनत और उसके लिये किये गए उनके संघर्ष और त्याग ! फिर वो भी तो उनका अच्छा बेटा था, सो पता नहीं कब, उसके उनके सपनों को शिरोधार्य ही कर लिया, कि जी जान लगाकर पढ़ाई लिखाई की, अच्छे नंबरों से परीक्षाएँ पास कीं और विदेश में नौकरी पाने के लिये भी जी जान ही लगा दिया।
जब विदेश में एक अदद अच्छी नौकरी का कोई हिसाब नहीं बैठा तो ये कोशिशें जिद में बदल गई। लगता था बस, एकबार वहाँ चला भर जाय .... कि उसके पास योग्यता है जिसकी वहाँ पर बहुत कद्र है ! पैसे भी बहुत मिलते हैं वहाँ तो सारा दुःख दरिद्र एकबारगी समाप्त हो जायगा ! इस जिद के एवज में अच्छा खासा पैसा लिया बिचौलियों ने, फिर वीज़ा के चक्कर, मँहगे टिकट .... यूँ एक दिन अभीष्ट पर पँहुच तो गया वो, मगर वहाँ कोई हाथ फैलाए उसकी योग्यताओं का इन्तजार करता नहीं मिला। जिंदा रहने के लिये एक हाॅस्पिटल में ग्राउंड ड्यूटी स्टाफ का काम किया। रहने-खाने, हर चीज पर न्यूनतम खर्च कर बैंक में कुछ डाॅलर भी जमा हो गये थे। हाँ, इस जद्दोजहद में पाँच साल जरूर बीत गये।
फिर मम्मी पापा के दबाव के चलते इन्डिया आया था। विदेश में नौकरी करने के कारण उन कुछ दिनों में वो वी आई पी खातिरदारी मिली कि लगा मानों सारा संघर्ष सफल हो गया है पर यह भी समझ में आ गया कि अब तो इस इज्जत को बनाए रखने के लिये वहीं रहना पड़ेगा कि वापसी के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। उधर कितने ही लड़की वाले घात लगाकर उसकी आमद का इन्तजार कर रहे थे, सो आनन फानन में शादी भी हो गई। पत्नी को साथ रख पाने की प्रक्रिया में भी भारी जद्दोजहद थी, पर वो भी पूरी हुई और विदेशी धरती पर ही नमन ने भी पैदा होकर उसको पूरी तरह 'सैटल' कर दिया। सब ठीक ही था, बस अब बैंक एकाउंट में महीने के शुरुआती दिनों में ही कुछ डाॅलर्स के दर्शन होते थे बाकी दिनों को यूँ ही काटने की मजबूरी थी।
अभी पापा का ये फोन कि मम्मी इन्तजार करते करते ही गुजर गईं.... कि मृत शरीर की आँखें अभी तक खुली हैं मानों उसका इन्तजार कर रही हों .... चाहा तो जी जान से था रंजन ने, पर पता नहीं क्यों वो आपका अच्छा बेटा नहीं बन सका पापा !
स्वयं को किसी तरह सँभाल, उसने मोबाइल पर अपने बैंक एकाउंट को खँगाला.... बारह सौ डाॅलर थे अभी ! पापा के एकाउंट में उन्हें ट्रांसफर कर, उसकी उँगलियाँ मैसेज बनाने में तल्लीन हो गईं .. "व्यस्तता बहुत ज्यादा है, अभी आना तो नहीं हो सकेगा। आपके एकाउंट में कुछ पैसे भेजे हैं, जरूरत होने पर निकाल लीजियेगा !"