पडोसी
पडोसी
निखिल के पिताजी अक्सर कहते थे जितना पूछा जाए उतना ही बोलो, अगर तुमसे बात नहीं की जा रही हो तो बीच में मत बोलो ।लेकिन फ़ेसबुक के ज़माने में इन सब बातों का क्या मतलब होता है जहाँ सब-सब की बातें सुनते हैं और टिप्पणी भी करते हैं ।
उस दिन जब वह ऑफिस से लौटा तो देखा उसके नये पडोसी रमेश एक नये पौधे को विस्मय से देख रहे थे । बागवानी में दिलचस्पी के कारण वह उनको बताने लगा पौधे और उसकी देख रेख कैसे करनी है।बातचीत पौधों से आगे औपचारिक परिचय तक पहुंची।
उस शनिवार की शाम जब रमेश स्पत्नी चाय पर पहुंचे तो सुखद आश्चर्य हुआ । अब सोशल मीडिया के जमाने में कौन किसके घर जाता है गपशप करने। जैसे- जैसे चाय खत्म हुई और बातचीत बढी तो आने की वजह पता चली। रमेश एक बीमा एजेंट थे और निखिल किसी तरह मना कर रहा था "नहीं, नहीं हमारा टैक्स कवर हो चुका है " जब रमेश की पत्नी विभिन्न प्रकार से अनुनय करने लगी तो उसने भी एक बीस हज़ार का बीमा ले ही लिया । यह सोच कर भी कि चलो, जान छूटे ।
पर यह क्या! यह तो रोज़ की बात हो गई । जैसे ही दफ्तर से थक कर घर आता कि घंटी बजती। संकोची स्वभाव के कारण वह शिष्टाचार से पेश आता, हाँ बीमा नहीं लेता।पर वह समय देना भी उसे नागवर लगता।उसे कुछ उपाय नहीं समझ आ रहा था कि कैसे पीछा छुडाया जाय ।
एक दिन ऐसे ही उबाऊ मुलाकात के बाद अनमने भाव से बिस्तर पर पड़े पड़े मोबाइल को देख रहा तो ख्याल आया कि सब तो कुछ न कुछ थोप ही रहे हैं शायद कोई कह रहा है कि देखो मैं कितना सुन्दर हूँ, देखो मैं कितनी अच्छी जगह घूमता हूँ, मेरी गाडी देखो, मेरा घर, मेरे रिश्ते, मेरी कलाकारी, मेरी फोटोग्रफी, मेरी रचना पढ़ो। तो ये रमेश ही कुछ बेच रहा है तो क्या बुरा है ।अभी उसके स्कूल के दोस्त ने एक कविता भेजी है," इसे पढ़ो, लाइक करो,शेयर करो.....।" निखिल एक ही लाईन को तीन बार पढ़ चुका है....और फिर बिना पढ़े ही लाइक कर दिया ।
अगली बार जब रमेश आए तो अपना स्वाभविक झिझक छोड़ उसने कहा मेरी कविता सुनिये । रमेश ने जैसे तैसे सुन भी ली। अब निखिल तैयार रहता ।रमेश के आते ही शुरु हो जाता और अब अपने बच्चे का तबला उठा कर ले आता," गीत में सुनियेगा तो और अच्छा लगेगा"। खैर यह ज़्यादा दिन नहीं चला जो दोनो के लिए राहत की बात थी । रमेश ने आना छोड़ दिया, आखिर लाभ कमाने के लिए कोई कितना बर्दाश्त कर सकता है!
निखिल ने भी बिना जाने बूझे आ बैल मुझे मार से तौबा कर ली ।