छाया
छाया
"आज चाँद कितना सुन्दर है न"
"हाँ, बहुत सुन्दर"
"अच्छा रवि ये बताओ, चाँद कितना दूर है हमसे"
"बस दो फुट"
"मज़ाक मत करो, सच्ची बताओ"
"मै मज़ाक कहाँ कर रहा, देखो मेरे बगल मे ही तो चाँद बैठा है। खूबसूरत, हंस की तरह सफेद, बहती शान्त, कोमल, मेरी चाँदनी"
"फिर मज़ाक" चाँदनी ने बनावटी गुस्से से कहा
"सच कहता हूँ। तुम चाँद सी हो। पर मै रवि हूँ। जब सूरज छिप जाता है तब चाँद निकलता है, कभी कभी मै सोचता हूँ हमारी जिन्दगी भी इन प्लेनेटस की तरह न हो, अलग अलग। चाँदनी मुझे बहुत डर लगता है, हम दोनो कभी अलग तो नही होंगे न।जीवन भर हमारा साथ रहेगा न"
चाँदनी ने रवि का हाथ अपने हाथ मे ले लिया। उसके कन्धे पर सिर रख दिया। बोली, "रवि, सूरज कहाँ छुपता है? वो तो चाँद को अपने सामने कर लेता है, अपनी रोशनी शीतल कर उसे देता है सारी रात। ताकि उसका चाँद कही रास्ता भूल न जाय। वो तो छाया बन कर चाँद के साथ रहता है"
"ठीक मै जीवन के हर मोड़ पर तुम्हारा साथ दूँगा, चाँदनी"