मकड़जाल
मकड़जाल
मणि की दूसरी बेटी की डिलीवरी हुए आज तीसरा दिन था, लेकिन उसका रक्तचाप बहुत बढ़ा हुआ था। तीन बहनों में सबसे बड़ी वह, बचपन से ही एक के बाद एक बेटी जनने के अक्षम्य अपराध में अपनी माँ को दादू दादी के हाथों तिल तिल प्रताड़ित होते देखती रही थी। रही सही कसर पिता, माँ और उन तीनों बहनों पर ताने और व्यंगबाण चला कर निकाल देते। उसने माँ को हमेंशा एक गहन अपराध भावना से ग्रस्त देखा कि वह परिवार की आकांक्षा के अनुरूप उन्हें एक वारिस नहीं दे पाई और डूबते हृदय से उसने सोचा था, एक बार फिर शायद वही कहानी उसके साथ दोहराई जाने वाली थी।
उसके पति उसकी इस मानसिकता से परिचित थे। सो उन्होने उसे लाख समझाने की कोशिश की थी, कि वह दूसरी बेटी पैदा होने पर भी बेहद खुश हैं। उन्हें बेटे की तनिक भी चाह नहीं। लेकिन वह स्वयं पुरानी स्मृतियों का क्या करे? रह रह कर दादी, दादू और पिता के तानों, उलाहनों पर अपने आँसू पोंछती माँ का चेहरा उसके मानस चक्षुओं के सामने सजीव हो उठता और वह अशेष निराशा के तानेबाने में घिर जाती।
आज उसे अस्पताल से छुट्टी मिल रही थी। आशंकित धड़कते दिल से वह ससुराल के गेट तक पहुंची थी कि एक सुखद आश्चर्य से अभिभूत हो गई थी। गेट के बाहर से भीतर तक घर महकते, गमकते फूलों, मालाओं और रंगोलियों से बेहद सुंदर ढंग से सजा हुआ था। पहुँचते ही सास और ननद ने हँसते हँसते उसकी और नवजात शिशु की आरती करी थी और नजर उतारी थी। सास ने उसके हाथ से नन्ही बेटी को लेते हुए उसे अपने कलेजे से लगाया था और उसे आशीर्वाद दिया था। पार्श्व में पड़ौस की औरतें ढोलक की थाप पर बधावा गा रहीं थीं। सास ने उसके और नन्ही बिटिया का हाथ लगवा कर सवा मन गेंहू गरीबों में बांटने के लिए रखवाया था।
आशा के विपरीत अपना और बिटिया का इतना शानदार, आत्मीयतापूर्ण स्वागत देख उसके धुक धुक करते, आशंकित हृदय को बेहद सुकून मिला था और नम हो आई आँखों से उसने मांजी और पापा से कहा था, ‘थैंकयू माँ जी, पापा जी, आप लोग बहुत अच्छे हो’।
‘बेटा, तुम भी तो बहुत अच्छी हो। याद रखना बेटा, तुम हमारे घर की लक्ष्मी हो, इस घर की रौनक हो। और तुम्हारी दोनों बेटियाँ हमारी दो आँखें। बस अब इन्हें अच्छा, नेक इंसान बनाना है और अपने पैरों पर खड़ा कर ऐसे मुकाम तक पहुंचाना है कि हम सब इन पर फ़ख्र करें। और बेटा, एक बात और ध्यान में रखना, हमें कोई पोते वोते की कोई चाह नहीं है। ये दोनों सलामत रहें, बस हमारा परिवार पूरा हो गया।
और भर आए गले से मणि माँ जी के गले लग गई थी। उसे अपने बनाए मकड़जाल से आखिरकार मुक्ति मिल ही गई थी।