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स्कूल या किंडरगार्डन के पहले

स्कूल या किंडरगार्डन के पहले

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सबके जीवन की तरह मेरे लिए भी वो दिन बहुत खास है , जब एक अनजानी सी लड़की ने दुनिया को जानने की ओर अपना पहला कदम रखा था । उन खूबसूरत पलों को एक कहानी में समेटना भी कुछ खास है । ज्यादातर बच्चो की तरह वो भी स्कूल स्वेच्छा से नहीं गयी । घरवालो ने परेशान होकर पड़ोस की बाला दीदी के साथ यूँ ही भेज दिया था । एकदम से नए लोगो के बीच वो हैरान परेशान सी माहोल को समझने की कोशिश कर रही थी , समझ तो कुछ नहीं आया लेकिन माँ याद आ गयी । आँखों से आँसू तो ऐसे टपक रहे थे मनो सूखे राजस्थान में भी बाढ़ आ जाये । बाला दीदी ने शांत करवाने की बेहद कोशिश की, वो बोली तो कुछ नहीं पर मन में ख्याल तो आया ही होगा कैसा जंजाल पल्ले पढ़ गया । वहीं प्रिंसिपल महोदय बैठकर गुड़ से बने गुलगुले खा रहे थे । हाय रे वो गुलगुले । खुश्बू ऐसी की सोच कर ही मुँह में पानी आ जाये , तो सोचो बगल में बैठे का क्या हाल होगा । वो नादान लड़की एकटक प्रिंसिपल साहेब को देखे जा रहे थी , आख़िरकार उनका दिल भी पिघल ही गया और एक स्वादिष्ट गुलगुला मिल गयी , पर बात वही ख़तम नहीं हुई । यह सिलसिला रोज शुरू हो गया । आप पूछेंगे कि इसमें खास क्या था । जनाब खास ये कि आज भी जब वो लड़की पढ़ाने जाती अक्सर टिफिन में गुलगुले ले जाती । क्या पता कोई ओर नादान गुलगुलों के लालच में स्कूल आने लगे । 


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