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Sudha Adesh

Romance Inspirational

4.8  

Sudha Adesh

Romance Inspirational

जहाँ चाह वहाँ राह

जहाँ चाह वहाँ राह

11 mins
624


सुजय को एक मल्टीनेशनल कंपनी द्वारा अमेरिका के न्यूजर्सी में काम करने के लिये नियुक्ति पत्र मिलने का समाचार सुनकर उसके माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। खुश भी क्यों न होते आखिर आज वह योग्य पुत्र के योग्य माता-पिता बन गये है। उनका बेटा विदेश जायेगा यह उन जैसे मध्यमवर्गीय परिवार के लिये गर्व का विषय है। बहन सपना अपने भाई की इस उपलब्घि पर खुश होने के साथ दुखी भी थी क्योंकि उसे भाई के दूर जाने के कारण पढ़ाई में व्यवधान के साथ अपने जीवन में सूनापन दस्तक देता प्रतीत होने लगा है।

जबसे उसने होश संभाला था तबसे उसने भाई को अपने आस-पास ही पाया है वरना उसके माता-पिता अपने कार्य के सिलसिले में ही इतना व्यस्त रहते थे कि कभी-कभी उसे लगता था कि उनके जीवन में बच्चों के लिये कोई जगह है भी या नहीं। पढ़ाई में भी जब भी उसे कोई समस्या होती वह भाई सुजय के पास जाती, वह उसे चुटकियों में हल करने के साथ इतनी अच्छी तरह समझाता कि फिर उसे दुबारा पूछने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी।

दसवीं बोर्ड में उसके अपेक्षा से कम नम्बर आने पर वह बहुत उदास हुई थी तब भाई ने उसे यह कहकर दिलासा दी थी कि दुखी होने की बजाय नम्बर कम क्यों आये इस पर चिंतन मनन कर, उन कारणों का निवारण करने का प्रयास करो...। जीवन में आई किसी विफलता से घबराना नहीं चाहिए वरन् उससे सीख लेते हुये अपने हौसले को बनाये रखना चाहिये। इसके साथ ही जीवन में अपना लक्ष्य निर्धारित कर, उसे पाने के लिये सतत प्रयत्नशील रहो। सदा याद रखो विषम परिस्थितियों में भी हौसला रखने वालों की कभी हार नहीं होती। भाई के हौसलों का ही परिणाम था आई.आई.टी. करते ही मल्टीनेशनल कंपनी द्वारा नियुक्ति मिलना। वह अपने कारण भाई की खुशी में बाधक नहीं बनना चाहती थी अतः उसने भी माता-पिता के साथ भाई के भाल पर टीका लगाकर उसे जीवन की नई पारी प्रारम्भ करने के लिये खुशी-खुशी विदा किया।

सुजय ने न्यूजर्सी पहुँचकर अपना कार्यभार संभाल लिया। कम से कम इतना संतोष था कि संचार के साधनो के कारण अब दूरी, इतनी दूरी नहीं रह गई है। लगभग रोज ही सुजय से फोन पर या वीडियो कॉल के जरिये बात होती ही रहतीं। उसका हाल चाल पता लगता रहता।  

सुजय को कुछ ही दिनों में लगने लगा था कि यहाँ....इस देश में, उसकी राह इतनी आसान नहीं है जितनी कि वह सोच रहा था। उसके कुछ सहयोगी विशेषकर जॉन उस पर नस्लवादी टिप्पणी करते हुये कभी उसके बात करने के तरीके पर तो कभी उसके रंग पर तो कभी उसके खानपान के तरीके पर व्यंग्य करते हुये उसे दोयम दर्जे का इंसान साबित करने में तुला हुआ था जबकि उसके अन्य साथी चुप रहकर एक तरह से परोक्ष रूप से उसका समर्थन ही कर रहे थे। यही बात उसे कचोटती रहती थी जिसके कारण उसकी कार्यक्षमता प्रभावित होने लगी थी। कभी-कभी उसे लगता कि कहीं वह वास्तव में इस विकसित देश में मिसफिट तो नहीं है या ये लोग एक विदेशी द्वारा उनके देश की कंपनी में नौकरी हथियाये जाने के कारण कुंठित हैं। बार-बार उसके प्रश्न से परेशान उसके अंतर्मन ने एक दिन उससे कहा...

‘तुम मिसफिट नहीं हो वरन् तुम्हारे सहयोगी ही तुम्हारी योग्यता से ईष्र्याग्रस्त होकर तुम पर नस्लवादी टिप्पणी करते हुये तुम्हारे मन में हीनभावना पैदा करना चाहते हैं। माना भारतीय होने के कारण तुम्हारा बात करने का लहजा उनसे अलग है पर योग्यता में तुम उनसे कमतर नहीं हो...। क्या इसका तुम्हें भान नहीं है ? इस तरह निराश होकर तुम उनकी बातों को ही सिद्ध कर रहे हो। तुम्हीं तो कहा करते थे कि हौसले रखने वालों की कभी हार नहीं होती फिर अब यह कैसी दुविधा ? दुविधा से बाहर निकल कर लक्ष्य के प्रति ध्यान केन्द्रित करो...आज जो तुम्हारे कार्य में बाधा बन रहे हैं वही एक दिन तुम्हारी प्रशंसा करेंगे।’

अंतर्मन की आवाज सुनकर उसका आत्मविश्वास बढ़ा जिसके कारण वह अपने सहयोगियों की फब्तियाँ सुनकर भी चुप रहकर अपना काम करता रहता। एक ऐसे ही दिन जब जॉन उसके खाने के तरीके को लेकर उसका मजाक बना रहा था तब कुछ ही दिन पूर्व ही उसके प्रोजेक्ट को ज्वाइन करने वाली उसकी सहयोगी क्रिस्टीना ने जॉन को न केवल रोका वरन अन्य सहयोगियों को भी उसका साथ देने के लिए टोका। अब तो जब भी ऐसा होता क्रिस्टीना ढाल बनकर खड़ी हो जाती। धीरे-धीरे सहयोगियों के रूख में भी परिवर्तन आता गया। अब वे भी उसके साथ बराबरी का व्यवहार करते हुये उसे सहयोग देने लगे।

धीरे-धीरे क्रिस्टीना के साथ उसकी दोस्ती बढ़ती गई। उसे जानकर आश्चर्य हुआ कि जब वह मेट्रिक में थी तब उसके माता-पिता उसकी तथा उसकी छोटी बहन की परवाह किए बिना अलग हो गये तथा उन दोनों ने ही दूसरा विवाह कर लिया। कुछ महीनों तक उसके पिता उन्हें पाकेट मनी देते रहे बाद में उन्होंने भी किनारा कर लिया। तब उसने नौकरी करते हुये न केवल अपनी पढ़ाई जारी रखी वरन् अपनी छोटी बहन कैथरीना को भी संभाला। छोटी बहन कैथरीना को पिछले माह ही हावर्ड कालेज में जॉब मिला है। उसे पढ़ाने का बहुत शौक है अतः उसने वहाँ लेक्चर का पद स्वीकार कर लिया।

लगभग दो वर्ष पश्चात् प्रोजेक्ट के पूरा होने पर सुजय ने दो हफ्ते की छुट्टियों के लिये आवेदन किया। क्रिस्टीना को पता चला तो उसने भी यह कहकर साथ चलने की पेशकश की कि उसने भारत और उसकी संस्कृति के बारे में बहुत सुना है, वह एक बार भारत भ्रमण करना चाहती है विशेषकर प्यार की निशानी ताजमहल देखना चाहती है।

सुजय उसे मना करके उसे आहत नहीं करना चाहता था क्योंकि उसने ही न केवल उसे अपने सहयोगियों के बीच सम्मानित स्थान दिलवाया वरन् उसके आत्मविश्वास को भी खंडित करने से रोका था। उसे क्रिस्टीना को अपने साथ ले जाने में कोई आपत्ति नहीं थी पर वह पर अपने माँ-पापा की वजह से सशंकित था। आखिर उसने माँ को बता ही दिया कि उसकी मित्र भी उसके साथ आ रही है।

‘ मित्र... वह भी एक लड़की। कहीं कुछ छिपा तो नहीं रहा है हमसे ? ’ पारंपरिक अंदाज में माँ ने रियेक्ट करते हुये सशंकित स्वर में पूछा।

 ‘ नहीं माँ, ऐसा कुछ नहीं है हमारे बीच...हम सिर्फ एक अच्छे दोस्त हैं।’ उसने कहा।      

  ‘ ठीक है...ठीक है लेकिन यह दोस्ती, दोस्ती तक ही सीमित रहनी चाहिये, मुझे विदेशी मेम बहू के रूप में स्वीकार्य नहीं है।’ कहकर उसका उत्तर सुनने से पूर्व ही माँ ने फोन रख दिया। 

नियत समय पर घर पहुँचने पर ठंडेपन से माँ को स्वागत करते देख सुजय का मन बुझ गया। उसे लग रहा था क्रिस्टीना उसके घर के लोगों के बारे में कोई गलत धारणा न बना ले क्योंकि उसके मन में भारत की ‘ अतिथि देवो भवः ’ की मूर्ति विराजमान है। सुजय को इस बात की प्रसन्नता थी कि उसकी बहन सपना क्रिस्टीना की सारी आवश्यकताओं को समझते हुये उसका साथ देने की भरपूर कोशिश कर रही है।

यद्यपि भारत आने से पहले क्रिस्टीना ने उससे साधारणतया प्रयोग में आने वाले कुछ हिंदी के शब्द सीखे थे पर अब सपना के सानिध्य में अपने हिंदी ज्ञानवर्धन करने में लगी हुई थी। सपना भी उसके हिंदी के प्रति लगाव देखकर उसके साथ सहयोग कर रही थी। माँ जब पूजा करती तब क्रिस्टीना उन्हें बड़े ध्यान से देखती तथा सपना से मंदिर में रखी विभिन्न मूर्तियों के बारे में पूछती। सपना भी उसकी हर जिज्ञासा का उत्तर देती थी।

माँ के विरोध करने के बावजूद सुजय ने किसी तरह उनको मनाकर क्रिस्टीना को आगरा, जयपुर, उदयपुर घूमने का कार्यक्रम बना ही लिया। जयपुर में जहाँ हवा महल तथा किलों को देखकर क्रिस्टीना अभिभूत थी वहीं झीलों के शहर उदयपुर ने उसका मन मोह लिया। ताजमहल देखकर वह कह उठी, ‘ वाह ! अति सुंदर...क्या कोई किसी को इतना प्यार कर सकता है कि वह उसकी याद में इतना सुंदर मेमोरियल बनवा दे ?’

‘ सुजय क्या तुम मुझसे विवाह करोगे ? मैं भारत में रहकर ही तुम्हारे साथ अपना जीवन बिताना चाहती हूँ ।’ अचानक क्रिस्टीना ने उससे लिपटते हुये कहा।

 ‘ भारत में...। ’ अचकचाकर सुजय ने कहा।

 ‘ हाँ भारत में...लेकिन तभी जब हमें यहाँ अपनी पसंद का कोई काम मिलेगा।’ 

 यद्यपि सुजय के मन में क्रिस्टीना के प्रति इस तरह के भाव पनपे थे पर वह जानता था ऐसा संभव नहीं है। माँ-पापा इस संबंध के लिये कभी तैयार नहीं होंगे। माँ-पापा से इस संबंध में बात करने से कोई फायदा नहीं था। अगर कुछ कर सकती थी तो केवल सपना ही...उसने सपना को अपने मन की बात बताई। उसने माँ-पापा के सामने उनकी पैरवी भी की। एक समय ऐसा भी आया कि पापा ने बेमन से ही सही उनके इस संबंध के लिये अपनी स्वीकृति दे दी पर माँ नहीं मानी। वे लौट आये थे। 

समय के साथ सपना का विवाह तय हो गया। वह विवाह में सम्मिलित होने गया। माँ ने उसे विवाह योग्य लड़कियों की फोटो दिखाई पर उसने उन्हें देखने से भी मना कर दिया। उसने सिर्फ इतना कहा...‘माँ आप जानती हैं, मेरे दिल में कोई बसा है, मैं उससे प्यार करता हूँ। किसी से प्यार करूँ किसी से विवाह... यह मुझसे नहीं हो पायेगा। ऐसा करके मैं किसी को धोखा नहीं देना चाहता। मैं और क्रिस्टीना आपकी सहमति का अभी तक इंतजार कर रहे हैं।’

‘ इंतजार कर, मेरा फैसला बदलने वाला नहीं है।’ दो टूक शब्दों में यह कहते हुये माँ ने अपनी मानसिकता बता दी थी कि अभी भी वह अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

माँ के नकारने के बावजूद क्रिस्टीना ने हार नहीं मानी। वह हिंदी सीखने का प्रयास करने के साथ ही साथ भारतीय खानपान को भी अपनाने का भरपूर प्रयास करने लगी। एक दिन वह उससे अपने किसी आवश्यक काम के संदर्भ में जाने की बात कर छुट्टी लेकर चली गई।

‘ सुजय जितनी जल्दी हो सके तू घर आ जा।’ एक दिन माँ ने फोन कर उससे कहा। 

‘ माँ घर में सब ठीक है न।’ उसने घबराकर पूछा था।

‘ सब ठीक है, बस तू जल्दी घर आ जा।’ माँ ने अपनी बात दोहराई थी।

 माँ के मना करने के बावजूद सुजय ने बार-बार उनके आग्रह का कारण जानना चाहा क्योंकि चार वर्षो के विदेश प्रवास के दौरान माँ ने इस तरह से उससे कभी आग्रह नहीं किया था। वह बार-बार यही कहती रही कि तू घर आ जा फिर बता दूँगी। 

सुजय ने क्रिस्टीना को घर जाने की बात बताने के लिये फोन किया पर उसका फोन स्विच आफ बता रहा था। वैसे भी जाते समय उसने उससे कहा था तुम मुझे फोन मत करना जब मुझे अवसर मिलेगा मैं ही फोन कर लिया करूँगी। पिछले महीने भर से उससे कान्टेक्ट न कर पाने के कारण वह चिंतित भी था। कैथरीना को फोन कर उससे पूछा तो उसने भी कह दिया कि उसे पता नहीं, अब अचानक जाना...वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे ? आखिर क्रिस्टीना के लिये मैसेज छोड़कर वह घर के लिये चल दिया।

यात्रा के दौरान पूरा समय उसका इसी उहापोह में बीता कि माँ ने उसे क्यों बुलाया है...! कहीं पापा की तबियत तो खराब नहीं है। अगर ऐसा है तो माँ ने उसे बताया क्यों नहीं ?

‘ तू परेशान होगा, इसलिये नहीं बताया होगा।’ अंतर्मन ने कहा।

‘ क्या मैं बच्चा हूँ ?’

‘ माँ के लिये उसका पुत्र या पुत्री सदैव बच्चे ही रहते हैं।’

 चौबीस घंटे की यात्रा के दौरान मन बेहद परेशान रहा। घर पहुँचकर बेचैनी से घंटी बजाई...दरवाजा माँ ने ही खोला। उनके पीछे क्रिस्टीना को खड़ा देखकर वह चौंक गया।

‘ बहुत दिन आजाद घूम लिया। अब बेड़ियाँ पहनने के लिये तैयार हो जा। अगले हफ्ते तेरा विवाह है।’ वह कुछ पूछ पाता, उससे पहले ही माँ ने कहा।

‘ विवाह पर किससे ?’ अनजान बनते हुये उसने पूछा।

‘ कह तो ऐसे रहा है जैसे तुझे पता ही नहीं...अरे, क्रिस्टीना को देखकर भी तुझे आभास नहीं हुआ...। तेरा विवाह क्रिस्टीना से है...बहुत प्यारी बच्ची है। मैंने इससे कह दिया है तुझे जैसे रहना हो इस घर में रहना। हमारी ओर से कोई बंदिश नहीं है। बस तू मेरे इस नादान बच्चे का ख्याल रखना।’ माँ ने उसके चेहरे पर चपत लगाते हुये प्यार से कहा तथा क्रिस्टीना की ओर देखकर मुस्करा दीं।

 घर के अंदर आकर अवसर पाकर उसने क्रिस्टीना से माँ के अंदर आये परिवर्तन के बारे में पूछा तो उसने मुस्करा कर कहा,‘ प्यार देकर ही प्यार पाया जा सकता है। इस बात को हम स्त्रियाँ ही समझ और समझा सकती हैं। माँ ने मेरे दिल की सच्ची बात सुनी और हमारे रिश्ते को मंजूरी मिल गई। मुझे तुम्हारे साथ माँ-पापा और एक प्यारी बहन भी मिल गई। आज मैं बहुत खुश हूँ। ’

आखिर चार वर्षो की जद्दोजेहद के पश्चात् उनके प्यार को माँ-पापा का आशीर्वाद मिल ही गया। सच अगर दो दिल मिल जायें तो सात समुंदर की दूरियाँ भी मायने नहीं रखतीं...अंततः सरहदें टूट ही जाती हैं।

सपना और उसके पति धीरज ने विवाह का इंतजाम संभाल लिया था। आखिर विवाह का दिन भी आ गया। क्रिस्टीना की बहन कैथरीना भी विवाह में सम्मिलित होने आ गई थी। वह भी बहन का घर संसार को देखकर बहुत ही खुश थी। खूब धूमधाम से उनका विवाह हुआ। विवाह वाले दिन क्रीम कलर के सुनहरे जरी के काम वाले लंहगे में सुजय के बगल में खड़ी क्रिस्टीना परी से कम नहीं लग रही थी। नाते रिश्तेदारों और पड़ोसियों से क्रिस्टीना की प्रसंशा सुनकर माँ बाग-बाग हो रही थीं।

कुछ दिन माँ-पापा के पास रहकर आखिर उन्हें अपनी कर्मभूमि लौटना पड़ा। अब उन्होंने भारत में अपने योग्य काम खोजने की शुरुआत के साथ अपनी कंपनी में भी वापस अपने देश लौटने की इच्छा जताते हुए आवेदन कर दिया। इस बीच क्रिस्टीना ने आग्रहकर माँ-पापा को अमेरिका बुलाया तथा उसने और सुजय ने उन्हें अमेरिका के मुख्य पर्यटन स्थल...नियाग्रा फाल, स्टेचू आफ लिबर्टी, वाशिंगटन डी.सी. तथा फ्लोरिडा का डिस्नेवर्ड भी घुमा दिया। वह सपना और धीरज को भी बुलाना चाहती थी किंतु धीरज अपने कार्य के सिलसिले में इतना व्यस्त था कि वह समय ही नहीं निकाल पाया।  

आखिर दो वर्ष पश्चात् सुजय और क्रिस्टीना का प्रयास रंग लाया, उनकी इच्छापूर्ण हुई। उन दोनों को उनकी कंपनी ने भारत में रहकर कार्य करने की इजाजत दे दी। कहते हैं जहाँ चाह है वहाँ राह भी निकल ही आती है। 


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