कार
कार
जब मैं और मीश्का बिल्कुल छोटे थे, तब हमें कार में सैर-सपाटा करना बहुत अच्छा लगता था, मगर बस, ये संभव नहीं हो पाता था। हम ड्राईवरों से कितनी ही मिन्नत क्यों न करते, कोई भी हमें सैर-सपाटे पर नहीं ले जाना चाहता। एक बार हम कम्पाउण्ड में टहल रहे थे। अचानक देखते क्या हैं – हमारे गेट के पास सड़क पर एक कार आकर रुकी। ड्राईवर कार से उतर कर कहीं चला गया। हम कार के पास भागे। मैंने कहा:
“ये ‘वोल्गा’ है।”
और मीश्का बोला:
“नहीं, ये ‘मस्क्विच’ है।”
“बहुत अकल है न तुझमें !” मैंने कहा।
“बेशक, ‘मस्क्विच’ है,” मीश्का ने कहा। “देख, कैसा हुड है इसका।”
“कहाँ का, हुड?” मैंने कहा, “वो तो लड़कियों की ड्रेस में होता है, और कारों में होता है बोनेट ! तू देख, कैसी है कार-बॉडी।”
मीश्का ने देखा और कहा:
“ हाँ, वैसी ही बॉडी है जैसी ‘मस्क्विच’ की होती है।”
“ये तेरी होती है,” मैंने कहा, “बॉडी, और कार की कोई बॉडी-वॉडी नहीं होती।”
“अरे, तूने ही तो कहा था ‘बॉडी’।”
“ ‘कार-बॉडी’ मैंने कहा था, न कि ‘बॉडी’ ! एख़, तू भी ना ! समझता नहीं है और घुसे चला आता है !”
मीश्का पीछे से कार के पास आया और बोला:
“और क्या ‘वोल्गा’ में बफ़र होता है? बफर - मस्क्विच में होता है।”
मैंने कहा:
“तू तो चुप ही कर। सोच लिया कोई-सा बफर। बफर – रेलगाड़ी के डिब्बे में होता है, और कार में होता है बम्पर। बम्पर ‘मस्क्विच’ में भी होता है और ‘वोल्गा’ में भी।”
मीश्का ने बम्पर को हाथ लगाया और कहने लगा:
“इस बम्पर पे बैठ कर जाया जा सकता है।”
“कोई ज़रूरत नहीं है,” मैंने उससे कहा। मगर वो बोला:
“तू डर मत। थोडी दूर जाएँगे और कूद पडेंगे।”
इतने में ड्राईवर आया और कार में बैठ गया। मीश्का पीछे से दौड़ कर बम्पर पे बैठ गया और फुसफुसाया:
“जल्दी से बैठ ! जल्दी से बैठ !” मैंने कहा:
“ज़रूरत नहीं !”
मगर मीश्का बोला:
“जल्दी आ जा ! ऐख़ तू, डरपोक !”
मैं भागा, और किनारे से झूल गया। कार चल पड़ी और कैसे तेज़ी से भाग रही है ! मीश्का डर गया और बोला:
“मैं कूद रहा हूँ ! मैं कूद रहा हूँ !”
“नहीं,” मैंने कहा, “चोट लग जाएगी !”
मगर वह अपनी बात पर अड़ा रहा:
“मैं कूद रहा हूँ ! मैं कूद रहा हूँ !”
और वह एक पैर नीचे भी रखने लगा। मैंने पीछे मुड़ कर देखा, और ।।।हमारे पीछे-पीछे एक कार तेज़ी से आ रही है। मैं चीखा:
“नहीं उतरना ! देख, वो पीछे वाली कार तुझे कुचल देगी !”
फुटपाथ पर लोग रुक जाते हैं, हमारी ओर देखते हैं। चौराहे पर पुलिस वाले ने सीटी बजाई। मीश्का बेहद डर गया, वो पुल पर कूद पड़ा, मगर हाथ नहीं छोड़ रहा है, बम्पर को कस के पकड़े हुए है, पैर ज़मीन पे घिसट रहे हैं। मैं घबरा गया, उसकी गर्दन पकड़ के ऊपर खींचने लगा। कार रुक गई, और मैं हूँ कि उसे खींचे जा रहा हूँ। आख़िरकार मीश्का दुबारा बम्पर पे चढ़ गया। चारों ओर लोग जमा हो गए। मैं चिल्लाया:
“पकड़, बेवकूफ़, कस के पकड़ !”
अब सब लोग हँसने लगे। मैंने देखा कि हम तो रुक गए हैं, और नीचे उतर पड़ा।
“उतर,” मैंने मीश्का से कहा।
मगर वो डर के कारण कुछ भी समझ नहीं पा रहा है। मैंने खींचकर उसे इस बम्पर से अलग किया। पुलिस वाला भाग कर आया, कार का नम्बर लिखने लगा। ड्राईवर कार से बाहर निकला – सब उस पर टूट पड़े:
“देखता नहीं है कि तेरे पीछे क्या हो रहा है?”
और वे हमारे बारे में भूल गए। मैंने फुसफुसाकर मीश्का से कहा:
“चल, चलते हैं !”
हम एक किनारे पे हट गए और भाग कर चौराहे पर पहुँचे। भागते हुए घर आए, साँस फूल रही थी। मीश्का के दोनों घुटने छिल गए थे, उनमें से खून आ रहा था और पतलून फट गई थी। ये तब हुआ था जब वह पुल पर पेट के बल घिसट रहा था। मम्मा से उसे खूब डाँट पड़ी !
फिर मीश्का ने कहा:
“पतलून की तो कोई बात नहीं है, और घुटने भी ख़ुद ही अच्छे हो जाएँगे। मुझे बस, ड्राईवर पे दया आ रही है: उसे, शायद, हमारे कारण सज़ा मिलेगी। देखा न, पुलिसवाला कार का नम्बर लिख रहा था?”
मैंने कहा:
“हमें वहीं रुक कर कहना चाहिए था कि ड्राईवर की कोई गलती नहीं है।”
“हम पुलिस वाले को ख़त लिखेंगे,” मीश्का ने कहा।
हम ख़त लिखने लगे। लिखते रहे, लिखते रहे, क़रीब बीस कागज़ बरबाद कर दिए, आख़िरकार लिख ही लिया।
“प्रिय पुलिसवाले कॉम्रेड ! आपने ग़लत नम्बर नोट कर लिया। मतलब, आपने नम्बर तो सही नोट लिया, बस, ये ग़लत है कि ड्राईवर की गलती है। ड्राईवर की ज़रा भी गलती नहीं है। गलती मेरी और मीश्का की है। हम कार से लटक गए, और उसे मालूम ही नहीं था। ड्राईवर अच्छा है और वो कार सही चला रहा था।”
लिफ़ाफ़े पर हमने लिखा:
“गोर्की और बल्शाया ग्रूज़िन्स्काया वाला चौरस्ता, पुलिसवाले को मिले।”
ख़त लिफ़ाफ़े में बन्द किया और लेटरबॉक्स में डाल दिया। शायद, पहुँच जाएगा।