झोपड़पट्टी
झोपड़पट्टी
झोपड़पट्टी की ये कहानी है आपको काफी अच्छी लगेगी एक साहिल नाम का लड़का जो झोपड़पट्टी में रहता था उसके पास कुल 1500/- रुपए थे उसको वह 1500/- पूरे महीने चलाने थे. उसकी बेटी गुड़िया का जन्मदिन भी आने वाला था। लेकिन वह 1500/- बचत करके केक कैसे लाए. तो साहिल सोच में पड़ गया कि किस से मदद ली जाए.
एक दिन साहिल घर से निकला देखा कि कूड़े के ढेर में केक का डब्बा पड़ा हुआ था. उसने कुछ मक्खियां भिनभिना रही थी. पहले साहिल ने उस केक को उठाया देखा कहीं बदबू तो नहीं मार रही. लेकिन दिखने में बिल्कुल ताज़ा लग रहा था बस थोड़ी सी मक्खियां थी.
साहिल घर की और चल दिया.
गुड़िया बड़ी खुश हुई पापा केक लाए है गुड़िया ने अपने आस पड़ोस से अपने दोस्तो को बुला लिया सबके साथ मिलकर उस केक को काटा.
साहिल के लिए एक दुखता की बात एक और थी क्योंकि चंदू का जन्मदिन अगले दिन था अगर वह केक ना लाए तो वह नाराज़ हो जाएगा. एक दिन साहिल रास्ते से जा रहा था केक की दुकान पर एक केक वाला बड़ा चिंतित लग रहा था क्योंकि उसकी दुकान पर कोई भी ग्राहक नहीं आ रहा. साहिल से एक रास्ता निकाला वो बोला कम रूपए में अपना केक बेचो वो केक वाला बोला मै अपना नुकसान क्यों करूँ ?
चलो ये मत करो अगर मैंने तुम्हारे सारे केक बिकवा दिया तो तुम मुझको एक डब्बा केक का पैक करके दे दोगे.
केक वाला बोला - ठीक है
साहिल बोला - तुम केक की दुकान का बाहर की और स्टोल लगाओ और सबको थोड़ा चखने के लिए दो तुम्हारे ग्राहक तुम्हारी ओर आकर्षित होगे और तुम्हारी दुकान ज्यादा से ज्यादा चलेगी और वह दुकान काफी छोटी -सी थी.
ये आइडिया काम आ गया और शाम होते ही उस केक वाले ने साहिल को केक का एक डब्बा पैक करके दे दिया और चंदू काफी खुश हुआ.
शिक्षा:- इस कहानी से पता चलता है कि स्थिति कैसी भी हो खुशी ढूंँढने से मिलती है.