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फ्रॉम हाई स्कूल टू लाइफ स्कूल

फ्रॉम हाई स्कूल टू लाइफ स्कूल

14 mins
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12th क्लास का पहला दिन था। नई स्फूर्ति नये जोश के साथ मैंने अपनी क्लास में एंट्री ली। पहला दिन था तो स्कूल में कुछ नये बच्चे भी दिख रहे थे। मैं जा कर अपनी सीट पर बैठ गया और कुछ ही देर बाद सर आ गए और क्लास शुरू हुई। सर ने पढ़ाना शुरू किया और सभी बच्चे भी पढ़ाई में लग गए। कुछ वक़्त बाद सर ने हमसे सवाल पूछने शुरू किये और शर्त रखी की जो बच्चा सबसे पहले और सही उत्तर देगा उसे मेरी तरफ से इनाम के रूप में चोकलेट मिलेगी। सवालों का दौर शुरू हुआ और जवाब आने शुरू हुए। मैं क्लास का सबसे मेघावी छात्र था तो मेरी मंसा यही थी की मैं सबसे पहले जवाब दूँ लेकिन क्लास में एक और आवाज गूंज रही थी वो भी मुझसे पहले। ये आवाज हमारे स्कूल के किसी बच्चे की नहीं थी। उसके जवाब देने और मेरे जवाब देने के वक़्त में सिर्फ 1, 2 सेकेंड का ही अंतर था।

मैं उस आवाज के पीछे छिपे चेहरे को देखना चाहता था की आखिर ये है कौन? पर उस वक़्त उस इनाम का हक़दार मैं ही बना। सर के जाने के बाद उस आवाज के पीछे जो चेहरा था उसे देखने के लिए मैं बाथरूम का बहाना बना कर बाहर निकला और जब पलट कर देखा तो ये कोई और नहीं नव्या थी।


नव्या मेरे ही कस्बे की रहने वाली थी और वो भी पढ़ाई में बहुत होशियार थी। हम दोनों हमारे समाज द्वारा आयोजित सम्मेलन में पुरस्कृत थे। मैं उसे वहां देख कर बहुत खुश हुआ। एक ही कस्बे के होने की वजह से वो भी मुझे जानती थी और मैं भी लेकिन हमारी कभी बात नहीं हुई थी।


मेरा उसकी तरफ ना जाने एक आकर्षण सा था। उसकी समुन्द्र जैसी गहरी बड़ी बड़ी आँखें जिन्हें देख कर ऐसा लगता था की जैसे समुन्द्र में खूब सारी लहरें समायी हुई होती है। ठीक उसी तरह ना जाने कितने राज ऐसे है जो वो मन में छुपाये हुए है और उसके होंठ मानों गुलाब की पंखुडिया जो किसी श्रोता के इंतजार में हो जिससे वो अपने दिल के हर जज्बात को उसे सुनाये। सुंदरता की वो मूरत जिसे एक पल कोई भी देखे तो देखता रह जाये और मैं भी रह गया। मैं सिर्फ उसकी पहचान जानता था पर ना जाने मन उसे क्यों और जानना चाहता था। उसके लिए मेरे मन में भावनाएं थी लेकिन कभी उसे कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था लेकिन मैं बहुत खुश था की अब वो मेरे ही स्कूल में पढ़ेगी, हम दोनों बात कर पाएंगे। पूरा स्कूल का वक़्त उसे छुप छुप कर देखने में निकल गया और मैं बहुत खुश था और ख़ुशी से रात को जागते जागते ख्वाब देखने लगा की कल मैं उससे बात करूं तो कैसे करूं? उससे पेन मांगने के बहाने लेकिन उससे तो बात पेन देने पर खत्म हो जाएगी तो मैं क्या करूं? हाँ उससे कुछ सवाल समझने का नाटक करता हूँ। उससे काफी देर बात हो सकती है और सोचते सोचते कब सो गया पता नहीं लगा।


अगले दिन मैं अपने बहानों के साथ तैयार था की कैसे कैसे और कब कब उससे बात करनी है। रोज के मुकाबले मुझमें आज कुछ ज्यादा ही जोश था और बार बार अपने बालों की सलों को सही कर रहा था। बहुत देर से आईने में खुद को निहारते निहारते मम्मी की डांट सुनाई दी। आदि आज स्कूल नहीं जाना क्या कितनी देर से कमरे में है, नाश्ता ठंडा हो रहा है। अब मम्मी को कैसे समझाऊं की मेरे मन में क्या चल रहा है पर मम्मी की डांट के बाद मैंने टाइम देखा तो अहसास हुआ की मैं लेट हो रहा हूँ। मैंने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और स्कूल पहुंचा।


नव्या स्कूल आ चुकी थी और उसे देखा तो फिर देखता ही रह गया। कितनी सुंदर है बालों की एक लट जो हवा से बार बार उसके चेहरे पर आ रही थी और वो उसे बार बार कान के पीछे रोकने में लगी हुई थी। उसे इस तरह देख मेरे मन को बहुत सुकून मिल रहा था। तभी अचानक सर आये और बोले


"आदित्य दरवाजे पर क्यों खड़ा है? क्लास में आने का मन नहीं है क्या?"


सर के कहते ही सब मेरी तरफ देखने लगे और मैंने हाँ में सर हिलाया और सर खुजाते हुए क्लास में आया।


मैं सोचने लगा की नव्या क्या सोच रही होगी मेरे बारे में की ऐसी बचकानी हरकते भी करता हूँ मैं। सर ने क्लास ली और चले गए। मैंने सोचा अब बात करने का सही वक़्त है अब बात कर ली जाये लेकिन देखा तो वो अपनी सहेलियों से बात कर रही थी और मैं रुक गया। फिर पूरे स्कूल टाइम में मैं उससे बात नहीं कर पाया और मन मसोस कर वापस आ गया। लेकिन कल की उम्मीद अब भी जिन्दा थी तो ये सोच कर खुश हुआ।


अगले दिन जब स्कूल पंहुचा तो नव्या मुझे दिखाई नहीं दी। मैंने सोचा लेट हो गयी होगी लेकिन अब सर आ गए और क्लास भी शुरू हो गयी थी और वो अभी तक नहीं आयी थी। फिर मैंने सोचा कही वो बीमार तो नहीं हो गयी? वो ठीक तो होगी ना? उस दिन उसे स्कूल में ना देख कर पूरे दिन बेचैन रहा। अगले दिन मैं फटाफट तैयार होकर स्कूल गया मन में हलचल थी की उसे देखूं तो सुकून मिले। लेकिन वो मुझे आज भी नहीं दिखी। मन की हलचल अब और बढ़ गयी थी मुझे जानना था की वो ठीक तो है न। मेरे एक सर से मेरी अच्छी बनती थी तो मैंने सोचा की बातों बातों में उनसे निकलवाया जाये। अगर उन्हें कुछ पता होगा तो मुझे भी पता लग जाएगा। मैंने सर से कहा सर कुछ नए बच्चे आये थे न अपनी स्कूल में उनका क्या चक्कर है आते ही नहीं है स्कूल। उनका पढ़ने में मन है भी की नहीं। इतनी छुट्टी कौन करता है?


सर :- अरे ऐसा कुछ नहीं है। नव्या का तो तुझे पता है ना पढ़ाई में कितनी होशियार है।


मैं :- अरे तो होशियार तो ठीक है लेकिन शुरआती दिनों में स्कूल ना आना कौन सी होशियारी है।


सर :- तो जा ही रही है वो स्कूल। बस इतना फर्क है अपने नहीं जिसमे वो पहले पढ़ती थी उसी स्कूल में। वो होशियार है इसलिए उस स्कूल वालों ने उसे स्कूल चेंज नहीं करने दिया।


सर की बात सुन कर मैं हैरान हो गया। सोचा ये मेरे साथ क्या हुआ? अभी तो कुछ शुरू भी नहीं हुआ उससे पहले ही सब खत्म हो गया। मुझे उस वक़्त बहुत दुःख हुआ और कुछ दिन तक मैं अपना मन पढ़ाई में नहीं लगा पा रहा था। कुछ दिन बीते और मैं सम्भलने लगा, फिर से पढ़ाई पर ध्यान लगाने लगा। सुबह स्कूल फिर स्कूल के बाद ट्यूशन और शाम को घर और रात को उसके बारें में सोच कर सो जाता था।


कुछ दिनों बाद ट्यूशन क्लास मैं कुछ लड़कियां आई। सामान्यतः मैं और मेरा एक दोस्त ही ट्यूशन में पढ़ा करते थे। थोड़ी देर बाद पता चला के ये नव्या के ही स्कूल की लड़कियाँ है जो अब ट्यूशन के लिए यही आया करेंगी। मैं सोच के बहुत खुश हुआ। उनमें से एक लड़की थी प्रज्ञा जो की बहुत बोलती थी। मैंने सोचा की क्यों ना इसी से नव्या के बारे में पूछ लिया जाये, लेकिन अचानक पूछा तो वो शायद सब नव्या को ना बता दे। इसका एक ही तरीका है क्यों ना इसे दोस्त बनाऊँ पहले और फिर ये सब अपने आप बता दिया करेगी।


प्रज्ञा पढ़ने में ठीक ठाक थी लेकिन यदि कोई उसे पढ़ाये तो वो बहुत संयम से और ध्यान से पढ़ती थी और फिर हमने बातचीत की। कुछ ही दिनों में हमारी बनने लगी सर के पढ़ाने के बाद हम देर तक रुकते थे जिसमे हम दोनों बैठ के पढ़ाई करते थे। मैं उसे पढ़ाता था और हमारी अच्छी दोस्ती भी हो गयी थी। वो कभी कभी बीच में नव्या की बातें करती तो मैं सुन कर खुश हो जाया करता था। प्रज्ञा और नव्या अच्छे दोस्त थे और एक ही बैंच पर बैठते थे। प्रज्ञा नव्या को बहुत अच्छा दोस्त मानती थी और नव्या की दोस्ती उसके लिए बहुत मायने रखती थी। देखते ही देखते स्कूल खत्म हो गया।


मैंने कभी प्रज्ञा को ये नहीं बताया की मैंने उससे बात क्यों की। नव्या के प्रति मेरी भावनाओं को मैंने अपने तक ही रखा। प्रज्ञा से मेरी फ़ोन पर भी बात होती थी। एक दिन जब प्रज्ञा से बात कर रहा था तभी उसके पास नव्या का फ़ोन आ गया। प्रज्ञा ने कॉल को कांफ्रेंस पर किया और उस दिन मुझे पता लगा की नव्या किसी और से प्यार करती है। वो दोनों आपस में बातें भी करते है। उस दिन मेरा दिल टूट गया। मुझे बहुत दुःख हुआ, एक पल के लिए खुद को संभाल पाना मुश्किल हुआ लेकिन मैंने उस वक़्त उन दोनों को कुछ भी अहसास नहीं होने दिया। प्रज्ञा ने कहा की तुम दोनों क्यों ना एक दूसरे से बात कर लो। कल को प्यार व्यार का चक्कर भी हो तो तुम्हारा समाज भी एक ही है। उस वक़्त प्रज्ञा की बात सुन कर में सातवें आसमान पर था। ख़ुशी से उछलने लगा था पर उस वक़्त अपने जज्बातों को मैंने रोक लिया था। मजे मजे में प्रज्ञा ने मुझे नव्या के और नव्या को मेरे नंबर दे दिए थे। लेकिन ये जानने के बाद की वो किसी और से प्यार करती है मैंने उसे कभी कॉल मैसेज नहीं किया। बस उसकी ख़ुशी में खुश था। वक़्त के साथ साथ मैं भी सम्भल गया।


एक शाम जब मैं अपने दोस्त के साथ बाहर घूम रहा था तभी एक मैसेज आया।

वो नंबर मेरे फ़ोन में नहीं थे तो मैंने पूछा कौन?


मैं नव्या। मैसेज गलती से चला गया। (जवाब में आया)


मैसेज देख कर मुझे यकीन नही हुआ की नव्या का मैसेज मेरे पास आया। मैं तुरंत घर आ गया और मैंने उससे डरते डरते बातें शुरू की। मैंने सोचा प्यार ना सही दोस्त बन कर तो रह ही सकते है। नव्या को ये नहीं पता की मैं उससे प्यार करता हूँ।


मैं उसे रोज मैसेज करने लगा वो मुझे रिप्लाई भी करती थी। हमारी बातें बढ़ने लगी, मैं उससे सब शेयर करता था। उसके साथ खूब हँसता और उसे हँसाता था। मुझे ये पता लगा की वो मैसेज उसने जानबूझ कर किया था तो मुझे बहुत अच्छा लगा की वो भी मुझसे बात करना चाहती थी। मैं और वो बहुत अच्छे दोस्त बन चुके थे। मुझे गुलाब जामुन बहुत पसंद है तो मैंने उसे यही नाम दे दिया। अब मैं उसे नव्या की जगह गुलाब जामुन बुलाता। एक दिन मैंने उसकी तारीफ की वो भी ऐसी की वो बहुत हँसी मुझे समझ नहीं आया ऐसा क्या गलत कहा। मैंने कहा की तेरे गाल टमाटर जैसे है तेरी लम्बी नाक भिंडी जैसी और जो तेरा ये चेहरा है बिलकुल फूलगोभी जैसा है।


उस वक़्त उसे ये तो नहीं बोल सकता था की उससे बहुत प्यार करता हूँ बस ऐसी बातें करके उसे हँसता देख दिल को सुकून मिलता था। हमारी दोस्ती बहुत गहरी हो गयी थी और मैं सिर्फ उस दिन का इंतजार कर रहा था जब उसे मुझसे प्यार हों। रात को सोने से पहले मैं उसे रोज लव यू बोलता था। वो भी एक बार नहीं बार बार और वो हँस कर टाल देती। उसके मानने में यही था की मैं दोस्त के नाते कह रहा हूँ लेकिन मैं इसी बहाने अपनी भावनाए उसे बता दिया करता था। कुछ दिनों में हमारी दोस्ती भी गहरी हो गयी हमारा एक भी दिन ऐसा ना जाता जिसमे हमने बात ना की हो।


एक दिन जब मैं पापा की काम में मदद करवा रहा था तभी नव्या का फ़ोन मेरे पास आया उसने कहा की राहुल (नव्या का बॉय-फ्रेंड) आ रहा है। तू कैसे भी उसे यहां रोक लेना। उसकी ख़ुशी को देखते हुए मैंने उसे हाँ कह दिया। मैं अपने घरवालों से कभी झूठ नहीं बोलता था। उस दिन पहली बार नव्या की ख़ुशी के लिए मैंने घरवालों को कहा की मेरा एक दोस्त आ रहा है मैं बस स्टैंड से उसे लेने जा रहा हूँ। मैं राहुल को अपने घर ले आया, घरवालों से मिलवाया और पूरा कस्बा घुमाया। फिर उसने नव्या से बात की। उस वक़्त मेरे दिल के टुकड़े टुकड़े हो गए थे। अब तक बस मैं सिर्फ नव्या से बात करता था तो उसमे राहुल का जिक्र नहीं होता था लेकिन आज आँखों के सामने सब देख कर मेरा दिल बहुत रो रहा था। मौका पाकर नव्या और राहुल एक दूसरे से मिले उन्होंने एक दूसरे को गिफ्ट्स दिए और फिर मैं राहुल को लेकर आ गया। उसे अपने दोस्त के यहां रुकवाया क्योंकि उसे अपने घर रुकवाता तो घरवाले जो भी सवाल पूछते उनका मेरे पास कोई जवाब ना होता। रात को कमरा बंद करके मैं उस दिन खूब रोया।


अब मैंने सोच लिया था की नव्या से दूरी बनानी है वरना कहीं मेरी दोस्ती उनके रिश्तों में झगडे का कारण ना बन जाये। मैंने नव्या को ब्लॉक कर दिया वो मुझे मैसेज करती की क्या हुआ बात क्यों नहीं कर रहा लेकिन मैं रिप्लाई नहीं करता था। कुछ दिनों तक उसके मैसेज का सिलसिला चलता रहा। मैं उन्हें देख कर नजरंदाज कर देता और अकेले में रोता। पूरे 1 साल बीत चुका था और नव्या आज भी मेरे दिल में थी। उसे भुला पाना मेरे लिए नामुमकिन था। मेरे कॉलेज की परीक्षा चल रही थी और सेण्टर घर से बहुत दूर आते थे। तो अपने दोस्तों के साथ मैं बस स्टैंड पर बस के इंतजार में खड़ा हुआ था। थोड़ी देर बाद वहां नव्या अपनी बहन और भाई के साथ आयी। नव्या और उसकी बहन के एग्जाम भी चल रहे थे। इतने में एक बस भी आ गयी। बस भरी हुई थी तो मेरे कुछ दोस्त उसमे चले गए और नव्या वही थी तो मैं भी वही रुक गया। फिर जब अगली बस आयी तब हम उसमे चढ़े। मैं नव्या को सबकी नजरों से बच कर देख रहा था। एक साल बाद वो दबा हुआ अहसास फिर बाहर आ गया। आँखें आंसुओ को बाहर आने की इजाजत मांग रही थी लेकिन मैंने उस वक़्त अपने आप को संभाला।


कुछ ही देर मैं हम कॉलेज पहुंच गए। सब अपना एग्जाम रूम ढूंढने लगे और मैं भी अपना रूम ढूंढ कर रूम में पहुंचा। रूम में घुसते ही पहली बैंच पर नव्या बैठी हुई थी। मैं उसे देख कर घबरा गया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया। पेपर मेरे हाथ में था लेकिन मैंने अभी तक पेन नहीं उठाया था। मेरा पूरा शरीर पसीने में तर-ब-तर हो गया था। आधा टाइम निकल चुका था और मैंने अभी तक कुछ नहीं लिखा था, बस नव्या को देखते जा रहा था। मैं उठ कर पानी पीने बाहर गया। मैंने पानी पिया और कुछ वक़्त बाहर ही रहा। वापस आकर मैंने अपना पेपर लिखना शुरू किया और देखते ही देखते टाइम निकल रहा था। जैसे ही मेरा पेपर पूरा हुआ तो मैंने नव्या की बेंच की तरफ देखा तो नव्या जा चुकी थी। मैंने अपनी कॉपी दी और बाहर नव्या को ढूंढा लेकिन वो नहीं दिखी।


इसके बाद मेरा उससे बात करने का मन हुआ। मैंने उसे मैसेज किया पहले तो उसने मुझे बहुत डांटा और मुझे अच्छा लग रहा था। उसने कहा की जब मैंने उसे ब्लॉक किया तो उसे बहुत दुःख हुआ। उसे मेरी कमी खलने लगी। दूसरी तरफ उसके और राहुल के रिश्ते में भी उतार चढाव शुरू हो गए थे। वो भी इस हद तक की नव्या से सहन नहीं हो रहे थे। जब भी नव्या उससे बात नहीं करती तो राहुल प्रज्ञा को बोलता की उससे बात कर और मुझे बता वो ठीक है न। उसकी हद से ज्यादा परवाह नव्या के लिए मुसीबत खड़ी करने लगी। वो जब उससे बात करती तो राहुल उसे अपनी तबियत या और ऐसी बातें बोलता जिससे नव्या मजबूरी में भी उससे बात करती। नव्या के मन से राहुल का प्यार कम होता जा रहा था। राहुल उसकी कोई बात नहीं मानता था और ना ही उसकी किसी इच्छा या बात को अहमियत देता था। उस दिन नव्या ने अपने सारे दुःख परेशानी मुझे बताई। मैंने अपने इस बरताव के लिए माफ़ी मांगी और कहा कभी नहीं जाऊंगा ऐसे।


नव्या मेरे साथ सुकून और महफूज महसूस करने लगी। वो मुझसे खूब बातें करने लगी। उसे मुझसे बातें करना अच्छा लगने लगा और हम पूरी पूरी रात बातें करने लगे। अब ये रिश्ता मेरे और नव्या के लिए दोस्ती से कुछ ऊपर हो चुका था। मुझे लगा की शायद नव्या भी मुझसे प्यार करने लगी है तो मैंने सोचा की मैं अपनी फीलिंग उसे बता दूँ।

खुद से टूटी फूटी लाइन्स की तैयारी करके अपने दिल की बात नव्या के सामने रख दी और कहा नव्या मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और अब तुम्हारे साथ के बिना मैं आगे नहीं बढ़ सकता क्या तुम मेरी साथी बनोगी?

उस वक़्त शायद हमारे रिश्ते को समझ नहीं पायी की ये सिर्फ दोस्ती है या कुछ और। तो उस वक़्त नव्या ने मेरे प्यार को मना कर दिया। लेकिन मैं उस ना से उसके सामने बिलकुल कमजोर नहीं हुआ और बोला अरे मैं तो मजाक कर रहा था और बात को वही संभाला। दूसरी तरफ एक अलग ही आग में मैं जल रहा था और रोते रोते कब आँख लग गयी अहसास नहीं हुआ। अगले दिन जब उठा तो सोचा की उसका दोस्त हूँ यही मेरे लिए बहुत है। और थोड़ा वक़्त और बीत गया।


एक रात हम दोनों बातें कर रहे थे तब हमारे बीच कुछ भावनात्मक बातें होने लगी। उन बातों का प्रभाव हम दोनों पर पड़ा और हम रोने लग गए। मैंने फिर अपने प्यार का इजहार किया तो उसने भी भावनाओ में आकर मेरे प्यार को अपना लिया। लेकिन मैं जानता था की नव्या ने ये फैसला अभी भावनाओं में आकर लिया है। इसलिए मैंने उसे वक़्त दिया की सही गलत सब देख कर फैसला ले।


और फिर वो दिन आया जब नव्या ने मुझे चुना। मेरा एक तरफा प्यार नव्या को समझ आ गया और उसने कहा की तुम्हारा प्यार मुझे देर से समझ आया लेकिन समझ आ गया है और मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।


उस दिन मुझे प्यार की ताक़त समझ आ गयी और समझ आया शाहरुख खान का वो डायलॉग की किसी चीज को शिद्द्त से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में जुट जाती है।


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