Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

सपना था, चला गया

सपना था, चला गया

5 mins
7.8K


“ हाँ माँ! बस सामान बैग में रख रहा हूँ। दस बजे के आस-पास निकलूंगा ।”

“ ठीक है, बेटा” यह कहकर माँ ने फ़ोन काट दिया।

मैं जल्दी-जल्दी सामान पैक कर कुछ किताबों को अलमारी में शिफ्ट करने लगा की तभी एक किताब से चार-पांच तस्वीरें फर्श पर बिखर गयी। तस्वीरों का रंग धुएँ जैसा पीला पड़ चुका था। उठाया तो देखा ये तस्वीरें ‘हरीश’ की थी, उनमें से एक में मैं और ‘हरीश’ साथ में थे। उन तस्वीरों को देखकर अपने बचपन के उन पुराने ख्यालों में खो गया।

मैं और हरीश बचपन के बहुत अच्छे दोस्त थे। हरीश हमेशा अपने गाँव के लगभग सभी लोगों की आवाज़ की नकल किया करता था, जिसमे वह अपने दादी की आवाज़ की बहुत अच्छे से नकल करता और दादी भी मजे से कहती, “ तू नहीं सुधरेगा!” और बस इस तरह हम सब कि जिंदगी कट रही थी। 

एक दिन मैं सो के उठा तो देखा, गाँव में मातम सा छाया था और जिधर देखे उधर बस हरीश कि ही बात हो रही थी। मैंने माँ से पूछा तो बताया, हरीश नहीं मिल रहा हैं, कही ग़ायब हो गया है। यह सुनकर मैं तो जैसे हक्का- बक्का रह गया। “माँ, ये कब हुआ?” मैंने पूछा। “ पता नहीं बेटा वह कल से नहीं मिल रहा है ।”

अचानक से मेरा ध्यान टू-टू कर बज रहे फ़ोन पर गया और मुझे ध्यान आया कि मुझे दस बजे घर भी निकलना है। मैंने फ़ोन उठाया। “हाँ माँ बस निकलने वाला हूँ। यहाँ मौसम खराब है। लगता है बारिश होने वाली है। अगर आज नहीं निकल पाऊँगा तो कल निकालूँगा।” माँ ने, “ठीक है” कहकर फ़ोन काट दिया। मैंने जल्दी सामान पैक कर उन तस्वीरों को बैग में डाल दिया। इससे पहले कि निकल पाता, बारिश शुरू हो गयी थी, लगभग एक घंटे तक मूसलाधार बारिश हुई। हर तरफ पानी ही पानी नज़र आ रहा था। मैं बाहर हज़ारी रोड पर निकला और एक ई-रिक्शा वाले से खजुरा चौराहा तक चलने को कहा। खजुरा चौराहा मेरे हास्टल से पांच-छह किलोमीटर दूर था।

“नहीं साब! नहीं जा पाऊँगा हज़ारी रोड का पुल टूट गया है। हाँ पर एक पगडंडी का रास्ता हैं, जहाँ से ई-रिक्शा भी जा सकता है, अगर कोई तैयार हो तो चले जाइये। वहाँ लगभग एक किलोमीटर का झाड़ी-जंगल वाला इलाका मिलेगा, और आगे फिर हज़ारी रोड मिल जायेंगी। 

उसके बगल के ई-रिक्शा वाले ने कहा, “साब! मैं चलूँगा पर पैसा ज्यादा लगेगा।” मैंने कहा, “ठीक है चलो।” मैं ई-रिक्शा में अपना बैग रखकर चल दिया।

लालपुर का झाड़ी-जंगल वाला रास्ता लगभग दो किलोमीटर आगे चलते ही आ गया था। जैसे ही हम जंगल के बीच पहुंचे मुझे एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनाई दी। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पता, ई-रिक्शा को चार-पांच लोगों ने आगे से घेर लिया। मैं जैसे ही बाहर निकला पीछे से किसी ने सर पर डंडे से मार दिया और मैं बेहोश हो गया। उसके बाद क्या हुआ पता नहीं।

जब मैं होश में आया तो अपने आप को पेड़ से बंधा पाया और मेरा सारा सामान बिखरा पड़ा था। और एक आदमी मेरी उन पुरानी तस्वीरों को बड़े गौर से देख रहा था। जैसे ही उसने मुझे होश में देखा तो बड़ी कड़क आवाज में पूछा- “ कौन है बे तू और ये तस्वीरें किसके है और तेरे पास कैसे आयी? “

मुझे ऐसा सवाल सुनकर कुछ समझ नहीं आया मैं सिर्फ इतना कह पाया, “ ये मेरे दोस्त हरीश कि तस्वीर हैं।” उसने बड़े आश्चर्य से पूछा, “तू सतीश है क्या?”

“हाँ पर तुम्हें कैसे मालूम!”“मैं ही तो हरीश हूँ।”

मैं आश्चर्यचकित था, मैंने अपने आप को चिकोटी काट के देखा कही ये सपना तो नहीं, पर ये हकीक़त था। हम दोनों गले मिले।

“तू ये सब क्या करने लगा हैं?” मैंने पूछा।

“यार मुझे यहाँ के डकैतों ने ही पकड़ लिया था और मुझे अपने साथ गिरोह में शामिल कर लिया। और अब मैं चाहूं भी तो पुलिस मुझे नहीं छोड़ेगी। यहाँ लोग मुझे नागराजन डाकू के नाम से जानते है, और अब मैं इस गिरोह का मुखिया हूँ। 

मैंने कहा, “ठीक है! पर चलो एक बार अपने माँ-बाबूजी से मिल तो ले। वो आज भी तेरी राह देख रहे हैं।” 

वो तैयार हो गया। अब हम दोनों उसी ई-रिक्शा से चल दिए, कुछ देर बाद हज़ारी रोड मिल गया, और खजुरा चौराहा पहुँचकर जौनपुर के लिए बस पकड़ ली।

घर पहुँचने पर मेरे साथ एक दूसरे व्यक्ति को देखकर सब एक ही सवाल कर रहे थे, ये कौन हैं, और मैं सबको एक ही जवाब दे रहा था, “ ये हरीश है”, पर मेरी बात को कोई कैसे मानता। हरीश के गायब हुए दस साल हो गाये थे। पर जब उसने दादी की आवाज़ नकल कर के दिखाई तो उसके घर वालों के साथ सबको यकीन हो गया। 

कहते है सुख ज्यादा दिनों का साथी नहीं होता और यही हुआ, पुलिस हरीश को पकड़ ले गयी। मैं थाने गया तो पुलिस ने उसे इस शर्त पर छोड़ दिया कि अगर ये कहीं भी गया तो फिर मैं जिम्मेदार होऊंगा। मैंने भी हामी भर दी। मैं और हरीश गाँव से होकर जाने वाली नहर के पुल पर बैठ गए और फिर पुरानी बचपन के बातें याद करने लगे, तभी हरीश ने मेरी बात काटते हुए कहा, “यार! मेरी ज़िंदगी यहाँ नहीं कट पाएंगी।” और यह कहकर उस नहर में कूद गया। और एक बड़ी तेजी से धम से आवाज़ आई और मेरी चीख के साथ मेरी आँखें भी खुल गयी। 

सामने देखा तो हरीश गेट खट-खटा रहा था। और कह रहा था, “घर नहीं चलना है क्या?”

मैंने तुरंत बिस्तर से उठ कर उसको गले से लगा लिया। उसने बड़े आश्चर्य से पूछा, “क्या हुआ?”

“सपना था चला गया।”  


Rate this content
Log in

More hindi story from Durgesh Chaudhary

Similar hindi story from Drama