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Renu Poddar

Abstract

2.5  

Renu Poddar

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कुसूरवार कौन

कुसूरवार कौन

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तेज़ तेज़ क़दमों से छुपती -छुपाती प्रज्ञा ने अपने घर की डोर बैल बजाई उसकी मम्मी ने दरवाज़ा खोला। वह मम्मी से लिपट कर ऐसे रोने लगी, जैसे कोई छोटा बच्चा रोता है। उसे उम्मीद थी मम्मी उस के आँसू पोछेंगी और बहुत प्यार करेंगी पर मम्मी तो बुत सी बनी रही। उसने ही अलग होते हुए पूछा, क्या हुआ मम्मी ?आपकी बेटी उस दल दल से भाग कर आ गयी आप खुश नहीं हो ? उसकी मम्मी ने पूछा, "कहाँ चली गयी थी तू"? हम सब तेरी तलाश कर कर के थक गए लोग तो पता नहीं कितना उल्टा सीधा बोलने लगे थे। हमने तो आस ही छोड़ दी थी।

प्रज्ञा ने कहा कॉलेज के पहले दिन मैं घर का रास्ता भूल गयी थी और चलते चलते मैं एक सुनसान जगह पहुँच गयी, तभी एक गाड़ी बहुत तेज़ी से मेरे पास आ कर रूकी। उसमे से तीन -चार आदमी उतरे और उन्होंने जबरदस्ती मुझे कुछ सुंघा दिया और गाड़ी में घसीट लिया। मैं बेहोश हो गई और जब होश में आई तो अपने को बहुत ही अजीब माहौल में पायाl उन्होंने मेरी बोली लगवाई और मुझे एक आदमी के साथ भेज दिया। उस दिन से मैं एक ज़िंदा लाश बन गयी थी। जिसे रोने का भी हक नहीं था। रोज़ मैं एक सामान की तरह बेची और खरीदी जाने लगी।

आज वो लोग, हमें कहीं शिफ्ट कर रहे थे तो गाड़ी में मैंने घर के पास की मार्किट देखी और मैं मौका मिलते ही वहाँ से भाग गई। प्रज्ञा की मम्मी ने उसे घृणा भरी निगाह से देखा और कहा तू दो महीने कोठे पर रह कर आयी है। तू क्या सोच कर वापिस आयी है ? क्या तुझे लगता है, हमारा यह सभ्य समाज तुझे अपना लेगा ? मुझे माफ़ कर दे, मैं तुझे नहीं अपना सकती। तेरे यहाँ रहने से हमें रोज़ रोज़ दुनिया के ताने सुनने पड़ेंगे। तेरे भाई की शादी भी नहीं हो पायेगी 

प्रज्ञा ने रोते हुए गुस्से में कहा, भाई की शादी, उसे तो मैंने कल उसके दोस्तों के साथ अपने सामने वाले कोठे में जाते हुए देखा था। प्रज्ञा की माँ ने गुस्से में उसे डाँटते हुए कहा चुप कर जवान लड़का है। उसे कितनी बार समझाया है। ज़्यादा कहेंगे तो घर से कहीं चला गया तो हमारा बुढ़ापा कैसे कटेगा l अब तो मानो प्रज्ञा का गुस्सा फूट पड़ा। माँ तुम्हारी इसी सोच ने मुझ जैसी कितनी लड़कियों को जीते जी मारा है। लड़के के लिए सब माफ़ है क्यूँकि वो तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा है और लड़की को अगर जबरदस्ती भी कोई उस नर्क में धकेल दे तो वो तुम्हारे इस सभ्य समाज में रहने लायक नहीं रहती। मैं भी कोई वैश्या बन कर नहीं पैदा हुई थी। जितने कुसूरवार देह व्यपार करने वाले लोग हैं उतने ही कुसूरवार तुम लोग भी हो। अगर उनके पास कोई खरीदार बन कर ही नहीं जायेगा तो वो बेचेंगे कैसे ?

लड़कियों के साथ जो रोज़ रोज़ बलत्कार होते हैं। वह भी इसलिए कि तुम लोग अपने लड़कों को कोई संस्कार ही नहीं देते। उन्हें इस सोच के साथ बड़ा करते हो की आगे चल कर वो ही परिवार के करता धरता हैं। जिससे उन्हें गलत - सही का फर्क ही पड़ना बंद हो जाता है। किसी लड़की के साथ कुछ गलत हो जाता है तो तुम कैंडल मार्च निकाल के क्या साबित करते हो। कोठे पर जाने वाले लड़के की तो शादी हो सकती है। पर कोठे पर रहने वाली लड़की जो वहाँ एक ज़िंदा लाश की तरह रह रही थी। उसे तुम्हारा यह सभ्य समाज नहीं अपनाएगा।

मैं तो अपनी जान पर खेल कर यहाँ इसलिए आयी थी कि मेरा परिवार इस मुश्किल घड़ी में मेरे काम आएगा और माँ तो बच्चे को बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी बाहर निकालती है पर तुम लोग तो मुझे ही गलत ठहरा रहे हो।

जब तक आस पास थोड़े बहुत लोग भी एकत्रित हो चुके थे। प्रज्ञा की माँ और भाई ने उससे माफ़ी माँगी और सब लोगों ने मिलकर कहा "आप लोग घबराइए नहीं आप लोग अकेले नहीं है"l प्रज्ञा ने हम सब की आँखें खोल दी हैं। हम सब मिलकर पुलिस स्टेशन जायेंगे और उन लोगों को पकड़वाने में पुलिस की मदद करेंगे। आज से प्रज्ञा सिर्फ आपकी ही बेटी नहीं है। वो हम सब की भी बेटी है।


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