बंद खिड़की भाग 4
बंद खिड़की भाग 4
बंद खिड़की भाग 4
अड़ोस-पड़ोस में पूछताछ करने पर यह बात पता चली कि मृतका का पति सुबह सवेरे ही काम पर चला जाता था, फिर दोपहर को एक बजे लौटता और खाना खाकर दो बजे फिर काम पर लौट जाता उस दिन भी उसे यही रूटीन फॉलो करते देखा गया था और उसके पास कोई मोबाइल भी नहीं था जिसपर उसे इस दुर्घटना की सूचना दी जा सकती। वह कहाँ और क्या काम करता था इसकी भी किसी को जानकारी नहीं थी तो उसके लौटने की प्रतीक्षा के अलावा कोई चारा नहीं था। तुकाराम ने एक कॉन्स्टेबल को वहाँ तैनात किया जो मृतका के पति को आते ही थाने ले आए और खुद वहाँ से थाने के लिए रवाना हो गया। तुकाराम ने पुलिस स्टेशन जाकर अपने वरिष्ठ अधिकारी इन्स्पेक्टर राम सालवी को पूरी घटना की जानकारी दी और आगे के लिए निर्देश की प्रतीक्षा करने लगा। सालवी साहब बोले, तुकाराम! उस औरत के आदमी से बातचीत करो और फोरेंसिक रिपोर्ट आने दो। अगर मामला सुसाइड का निकला तो कोई बात नहीं पर अगर कुछ गंभीर बात निकलती है तो देखेंगे।
यस सर! तुकाराम ने तत्परता से कहा और उनके केबिन से बाहर निकलकर एक कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर में कॉन्स्टेबल मृतका गायत्री के पति को ले आया। वह एक झोलझाल-सा पचास साल का आदमी था जिसके मैले वस्त्र बता रहे थे कि वह किसी मेहनत मशक्कत के कार्य द्वारा ही अपनी दो जून की रोटी जुगाड़ पाता होगा। रो-रो कर उसके पपोटे सूज गए थे। तुकाराम ने अपनी व्यवसाय सुलभ संशयपूर्ण दृष्टि से मुआयना किया और बोला, अब जो हो गया उसपर किसी का जोर नहीं है अब शांत हो जाओ और मेरे कुछ सवालों के जवाब दो! वह सचमुच चुपचाप तुकाराम की दिशा में देखता हुआ खड़ा हो गया।
तुम्हारा नाम?
दिगंबर घोसालकर, साहेब
तुम कहाँ के साहब हो? तुकाराम ने कड़क कर पूछा तो वह हड़बड़ा कर बोला, नाही नाही साहेब! मी तुम्हाला साहेब म्हटले आहे (नहीं नहीं साहब, मैंने आपको साहब कहा है)
बर! बर! क्या काम करते हो?
साहेब! मैं एक छोटी सी कंपनी में मशीनों की मेंटेनेंस देखता हूँ
ओके! आज सुबह क्या तुम्हारा बीवी से झगड़ा हुआ था?
नहीं नहीं साहेब! उसने ख़ुशी-ख़ुशी मुझे टिफ़िन बनाकर दिया था , कोई झगड़ा नहीं हुआ था।
तो फिर उसने ख़ुदकुशी क्यों की?
देवा शपथ साहेब! मुझे नहीं मालूम उसने ऐसा क्यों किया।
तुका को वह सच बोलता लगा। उसने पूछा, तुम्हारी बीवी मंगलसूत्र और चूड़ियाँ पहनती थी कि नहीं?
होय साहेब! इसी दीवाली पर मैंने उसे सोने की दो चूडियाँ बनवाई थी और मंगलसूत्र तो वो शादी के बाद से ही पहनती आई है।
तुकाराम के माथे पर बल पड़ गए। आखिर मरनेवाली के गहने कहाँ गए! कोई आत्महत्या करने जा रहा हो तो गहने क्यों उतारेगा? और वो भी नोंच कर!
तुकाराम ने गहन सोच में डूबे हुए ही दिगंबर को जाने को कहा और एक हवलदार को उसकी कंपनी का पता लिख लेने को कह दिया। अगले दिन वहाँ जाकर दिगंबर के बयान की सत्यता भी तो जांचनी थी।
अगले दिन क्या हुआ?
क्या दिगंबर की बातों में कोई झोल था?
कहानी अभी जारी है...
पढ़िए भाग 5