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Mamtora Raxa Narottam

Fantasy

2.6  

Mamtora Raxa Narottam

Fantasy

जादुई छड़ी

जादुई छड़ी

7 mins
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सूरज अपने सुनहरे किरनों का प्रकाश फैला रहा है, लोगो की बढ़ रही चहल-पहल धीरे-धीरे वातावरण की खामिशियों में बाधा डाल रही हैं| शहर के बीचोबीच स्थित छोटे से सुंदर बंगले में काफी उत्साह और चहल-पहल का माहौल है, सब मिलकर कहीं जाने की तैयारियों में जुटे हैं| रमनजी का यह परिवार शहर का आदर्श और सुखी-संपन्न परिवार माना जाता है|

घर के सभी सदस्य कर्मनिष्ठ है, ६८ साल की आयु में भी रमनजी शरीर और मन से लोहे की तरह मजबूत है| रमणजी घर के मुखिया है, उनकी छत्रछाया में पूरा परिवार खुश है| उनकी पत्नी पुष्पलताजी का व्यकित्त्व भी जैस्मीन की तरह सुगन्धित है, बहु सुनयना भी एक आदर्श बहू होने का सारा कर्तव्य निभाती है|

छुट्टी होने से दादा–दादी की इच्छा पूरी करने के लिए सब चोटीला के पहाड़ पर माताजी के दर्शन के लिए जाने तैयारियाँ कर रहे हैं, सब सामान गाड़ी में रखकर दादा-दादी, पुत्र तुषार और पुत्रवधू सुनयना, पोता सौरभ और पोती शैली सब माताजी की जय बोलकर दर्शन के लिए चल पड़े| हँसते गाते मार्ग में आनेवाले हरियाले पहाडों के सुन्दर नज़ारो को देखते हुए सब चोटीला आ पहुँचे| चोटीला आते ही ड्राईवर ने गाड़ी साइड में पार्क की, पहाड़ों की खूबसूरती और शीतलता देखकर सब का मन प्रफुल्लित हो उठा| पहाड़ भी जैसे हरी चुनरियाँ ओढ़कर इन सब का स्वागत कर रहा हो ऐसा प्रतित होता था| 

“चलो सब पहाड पर चले” कहकर शैली-सौरभ अनूठे उत्साह के साथ तेज गति से पहाड़ों की सी सीढियाँ चढ़ने लगे|

“हाँ–हाँ चलो” कहकर तुषारजी और घर के बाकी सब भी पीछे-पीछे सीढियाँ चढ़ने लगे, शैली और सौरभ काफी आगे निकल गए, रमनजी और पुष्पलताजी धीरे–धीरे सीढियाँ चढ़ रहे हैं| पर्वत पर थोड़ी दूर पहुँचते ही सुनयना को थकान सी महसूस होती है, वह और तुषारजी पर्वत की छोर पर बसे एक घने वृक्ष के नीचे आराम से लेट गए| वृक्ष की शीतल छाया में सुनयना को मीठी नींद आ जाती है, इसी नींद में वह एक स्वप्न में खो गई|

सुनयना को सपने में वही वृक्ष दिखाई देता है, जिस वृक्ष के नीचे वह सोई थी, सहसा वृक्ष में से एक आवाज़ सुनाई देती है,

“मै इस वृक्ष की आत्मा हूँ, मैं पिछले सौ साल से इसी वृक्ष में रहती हूँ, मेरी छाया में हज़ारों लोग आराम करते हैं, लेकिन आज तक मैंने किसी के सामने अपना रहस्य नही खोला, आप सच्चे दिल के इंसान लगते हैं, इसलिए मै अपना रहस्य आपको बताती हूँ, मेरे पास एक जादुई छड़ी है! इसे तीन बार गोल-गोल घुमाकर ‘ओम ह्रीं,क्रीम चामुण्डाय नम:’ बोलने से यह इच्छा मुताबिक़ काम कर देगी, यह जादुई छड़ी मै आपको देना चाहती हूँ| क्या आप इस छड़ी को स्वीकार करोगी?”

सुनयना स्तब्ध खड़ी वृक्ष की बात सुनती रही|

“जादुई छड़ी! मुझे यकीन नही होता|”

“मै सच कहती हूँ, क्या तुम इसे स्वीकार करोगी?”

पलभर उसे अजीब उलझन महसूस हुई, इस छड़ी को ले लूँगी तो साँस-ससुर क्या कहेंगे? इसी उलझन में सुनयनाने छड़ी स्वीकार कर ली|

“सुनयना...” तुषार जोर से चिल्लाया, सुनयनाने की आँखे खुल गई, उसने आसपास देखा, वहाँ पर एक छड़ी दिखाई देती है, सुनयनाने सोचा ये वही छड़ी है जो सपने में मुझे वृक्ष ने दी थी|

“हाँ–हाँ तुम आगे चलो” कहकर सुनयना ने तुषार से छिपकर वह छड़ी ले ली|

आखिर सब माताजी के दर्शन करके वापस घर लौटते हैं|

 

घर आते ही सुनयना के हाथ में छड़ी देखकर तुषार ने तुरंत पूछा,

“यह छड़ी कहाँ से लाई?”

“श्श्श ...आहिस्ता बोलो आहिस्ता, कोई सुन लेगा तो गजब हो जाएगा, यह छड़ी कोई सामान्य छड़ी नही है, यह एक जादुई छड़ी है|”

“क्या! जादुई छड़ी! पागल तो नही हो गई?”

“मै सच कह रही हूँ यह छड़ी मुझे उस वृक्ष ने दी है, इसे तीन बार गोल–गोल घुमाकर ‘ओम ह्रीं क्रीम चामुण्डाय नम:’ बोलने से यह इच्छा मुताबिक़ काम कर देती है|

“मुझे इस बात पर बिलकुल यकीन नही है|”

“चलो हम तसल्ली कर लेते हैं, वैसे भी मुझे ज़ोर की भूख लगी है, कुछ खाना है,” कहकर सुनयना ने छड़ी को तीन बार हवा में गोल-गोल घुमाया और बोली “ओम ह्रीं क्रीम चामुण्डाय नम:रोटी सब्जी हाजिर हो|”

कुछ ही क्षण में ही रोटी सब्जी हाजिर हो गए, तुषार की आँखे फटी-सी रह गई! खुशी के मारे सुनयना उछल पडी, “आज से मै अपने सारे काम इस छड़ी से करवाउंगी, लेकिन इस बात को तुम घर में किसी को मत बताना|”

“अब हुआ ना यकीन? चलो रोटी सब्जी खालो”

तुषार हक्का-बक्का सा रह गया, दोनों चुपचाप रोटी सब्जी खाने लगे|

अब सुनयना अपने सारे काम जादुई छड़ी से करवाने लगी, वह हर रोज़ आराम से टी.वी. देखने लगी, उनकी साँस से यह बात छिपी नहीं थी|

एक दिन साँस ने टोकते हुए कहा, 

“बहू टी.वी.देखना कम करो, देख तेरा वजन भी कितना बढ़ गया है..”

“अरे, मम्मी तुम्हे वक्त पर खाना मिल जाता है न? तुम मेरी फ़िक्र मत करो|” यह कहकर सुनयना ने मम्मी को समजा दिया|

अब जादुई छड़ी सुनयना की असीस्टंट बन गई, अब वह किसी भी काम करने में बोर होने लगी, वह आरामप्रिय हो गई, उसका वजन काफी बढ़ गया, घर की सीढियाँ चढने में भी उसे थकान लगने लगी| सहसा एक दिन सुनयना की तबियत एकदम खराब हो गई, उसे चक्कर आने से वह सोफे पर ही फिसल पड़ी, सुनयना को इस हालत में देखकर तुषार घबरा गया, रमनजी और पुष्पलताजी भी चिंतित हो गए| डॉक्टर को बुलाया गया, ब्लड की जाँच हुई, मधुमेह पोजेटिव आया| सुनयनाजी अब डायाबिटीज और हाई बी.पी. की मरीज़ बन गई|

पुष्पलाताजी को यह बात समझ नहीं आ रही थी की बहू सुनयना घर का काम कब निबटा लेती है, इसी उलजन में उसने बेटे तुषार को सुनयना के बारे में शिकायत की|

“तुषार, सुनयना को क्या हो गया है? बस पूरा दिन टी.वी.ही देखती रहती है|”

मम्मी की बात सुनकर तुषार सोच में पड़ गया, मम्मी की बात सही है जब से जादुई छड़ी मिली है, सुनयना एकदम बेकार बैठे अपना समय बिताती है, लेकिन मम्मी को जादुई छड़ीवाली बात कैसे कहूँ, एक न एक दिन सच सामने आएगा ही, इससे अच्छा है कि अभी से मम्मी को यह बात बता देता हूँ|

मम्मी बात दरअसल ये है कि सुनयना को एक वृक्ष ने जादुई छड़ी दी है, उस जादुई छड़ी को तीन बार गोल–गोल घुमाकर ‘ओम ह्रीं क्रीम चामुण्डाय नम:’ बोलने से वह इच्छा मुताबिक़ काम कर देती है, सुनयना अपना सारा काम उस छड़ी से करवा लेती है|

“क्या! जादुई छड़ी! तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है न?”

“मै सच कह रहा हूँ, मम्मी तुम्हे यकीन न हो तो चलो मै आपको वह छड़ी दिखाता हूँ|”

तुषार सुनयना से छिपकर छड़ी ले आता है, और मम्मी-पापा को दिखाता है, उसने छड़ी की सच्चाई बताने के लिए तीन बार गोल–गोल घुमाकर कहा “ओम ह्रीं क्रीम चामुण्डाय नम:" कमरे की सफाई हो” और ज्यो की त्यों ही कमरे की सफाई हो गई!

रमनजी और पुष्पलताज़ी चोकन्ने से रह जाते हैं! कुछ देर मन ही मन सोचकर रमणजी बोले,

“कुछ भी हो लेकिन इस छड़ी की वजह से ही सुनयना आलसी हो गई और उसकी तबियत भी खराब हो गई, इसलिए मै नही चाहता कि यह छड़ी ज़्यादा दिन तक इस घर में रहे|”

“तो क्या करे इस छड़ी का?” पुष्पलताजी ने कुछ चिंतित स्वर में कहा|

“इसे हम इसी वक्त नदी में डालने जाते हैं|”

“लेकिन सुनयना को पता चलेगा तो भारी हंगामा होगा”

“मम्मी, पापा बिलकुल सही कह रहे हैं, सुनयना से मै निपट लूँगा|”

पुष्पलताजी और रमनजी छड़ी लेकर नदी की ओर निकल पड़े| घर के बरामदे में परेशानी में डूबी सुनयना को देखते ही तुषारने पूछा “क्या सोच रही हो?”

“जादुई छड़ी कहीं नहीं मिल रही| समज में नहीं आ रहा छड़ी गई कहाँ?”

तुषार को लगा सुनयना को सच बता देना चाहिए, उसने सुनयना को सच बताते हुए कहा,

“सुनयना, तुम्हारी बीमारी की असली वजह यह छड़ी ही है, इस छड़ी के आने के बाद तुम बिलकुल आलसी हो गई हो, इसलिए इस छड़ी को मम्मी और पापा ने नदी में डाल दी है|”

“क्या!”

“बात समझने की कोशिश करो, सुनयना”

“लेकिन, घर का सारा काम कौन करेगा?”

“क्यों, जब छड़ी नहीं थी, तब घर का काम कौन करता था?”

सुनयना कुछ देर चुपचाप सोचती रही फिर बोली,

“बात तो तुम बिलकुल सच कह रहे हो, सचमुच इस छड़ी के आने बाद मैं आलसी हो गई हूँ|”

“चलो मुझे घर का सारा काम खुद निबटाना है|”

“फ़िक्र मत करो सुनयना, आज से मैं भी घर काम में तुम्हारी मदद करूँगा|


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