चरित्र प्रमाण पत्र
चरित्र प्रमाण पत्र
चंचल गाँव की इकलौती लड़की थी जो शहर जाकर पढ़ रही थी।
जैसा की नाम वैसे ही गुण वाली चंचल लेकिन मेधावी बालिका थी वह। गाँव की लड़कियाँ जब शहर जाकर पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी तब चंचल ने खुद ही साइकिल चलाना सीखा और पढ़ने के लिए साइकिल से ही शहर जाती थी। शहर के एक मात्र स्कूल में लड़कों के साथ पढ़ना और शाम को घर भी लौटती थी। उसने समय के साथ ग्रेजुएट की डिग्री ली और फिर उसने पोस्ट ग्रेजुएट भी कर ली। अब वह काम्पीटीशन की तैयारी कर रही थी। एक दिन उसे नई नौकरी का बुलावा आया तो वह खुश थी इतने सालों की मेहनत साकार हो गयी है। नौकरी में उसे चरित्र प्रमाण पत्र व कुछ और कागजात जमा करवाना था। उसे प्रथम श्रेणी के अधिकारी का चरित्र प्रमाण पत्र देना था।
बहुत सोच विचार कर उसने अपने कॉलेज के प्रोफेसर से ही चरित्र प्रमाण पत्र लेना उचित समझा।आखिर वह कॉलेज में अपने परिचित प्रोफेसर के पास गयी, तो कॉलेज के प्रोफेसर ने कहा कि आप शाम को घर आकर मिलो।
चंचल ने सोचा कि अब काम हो गया। वह शाम को जब कालेज प्रोफेसर के घर पहुँची तो कालेज के प्रोफेसर ने उसे इत्मीनान से बैठने को कहा। कुछ अंग्रेजी फैशन की मैगजीन उसके सामने पसरा दी। चंचल ने वे फैशन की मैगजीन को पलटना आरंभ किया तो लगा कि ये मैगजीन कुछ पठनीय नहीं अपितु महिला प्रधान दर्शनीय पत्रिका है। चंचल ने पत्रिका को एक ओर रख दिया। वह घड़ी की ओर भी देख रही थी कि बमुश्किल कुछ मिनटों में वह फ्री हो जायेगी लेकिन प्रोफेसर साहब चंचल से इघर-उधर की बातें करते रहें और उसे निहारते रहे।
चंचल की मजबूरी थी इसलिए वह चुपचाप सवालों के जवाब दे रही थी। पेण्डुलम घड़ी ने घंटा बजाया तो एकाएक चंचल की नजर फिर घड़ी पर चली गयी। प्रोफेसर साहब ने बड़ी बेफिक्री से उसका कागज बनाया और कहा कि कोई और जरूरत हो बेझिझक आ जाना। चंचल ने चरित्र प्रमाण हाथ में लिया और बोली- जी धन्यवाद। चंचल ऑटो से लौट रही थी, तो सोच रही थी कि इस कम पढे़-लिखे ऑटो वाले के साथ ऑटो में बैठने में उसे असुरक्षा के भाव नहीं थे, लेकिन एक पढे़ लिखे प्रोफेसर के वातानुकुलित घर में असहज महसूस कर रही थी। चरित्रप्रमाण के बहाने प्रोफेसर का चरित्र पता लग गया था।