डायरी
डायरी
पेज नंबर 114 तक तो मैं पढ़ चुकी थी कहीं भी मेरा जिक्र नहीं हुआ, इतने भी क्या निर्दयी इंसान थे जिंदगी से तो चले गए कम से कम डायरी में तो मेरे नाम का कुछ ही भर जिक्र कर जाते। 11 साल हो गए है शहीद हुए उनको, पर आज भी दिल जैसे उनकी प्रतीक्षा में बेकरार है हर दिन डायरी में कुछ नया तलाशती हूँ, पर सिवाय देश की वफ़ादारी के कुछ नहीं मिलता, जब ये शहीद हुए थे पूरी आर्मी टीम घर आयी हुई थी मुझे ज़रा भी होश नहीं था, मैं तो सदमे में जा चुकी थी। कुछ दिन बाद जब होश संभाला तो सासू माँ और ननद को अपने आसपास पाया और दीवार में टंगी मेरे पति की तस्वीर जिस पर शहीद अशोक सिंह नाम लिखा था तस्वीर में भी वो मुस्कुराते हुए देख रहे थे, मैं भी उन्हें देख मुस्कुराने लगी पर जब वो सतत ही मुस्कुराने लगे तब मैं घोर तिमिर की गहराई में डूब गई जहाँ मुझे घुटन, रुदन और अकेलेपन का एहसास हुआ और मैं जोर जोर से रोने लगी शहीद अशोक मुझे भी अपने साथ ले चलो फिर मेरी स्थिति दिनों दिन बदहाली के कगार पर थी मेरे आँसुओं की ग्रंथि भी सुख चुकी थी तब मेरी ननद सीमा ने मुझे एक डायरी थमाते हुए उसे पढ़ने का कहा कि ये भैया की निशानी है। वो इसे लिखते थे मैंने डायरी को अपने हाथ में लिया और तब से एक ही पेज को सैकड़ों बार पढ़ती हूँ आज तक 114 पेज पर तो मेरा जिक्र नहीं हुआ अब आगे पढ़ती हूँ पेज नम्बर 115 समय जब कलम को हाथ से छुआ वो तकरीबन 6 बजकर 10 मिनट लिखा था
लिखा था मेरे सोलमेट (मैंने आश्चर्य से पढ़ा)।
मेरे जीवन का वो महत्वपूर्ण क्षण जो मैंने तुम्हारे साथ व्यतीत किये, वो अनमोल सफर जिसपर रात के समय तुम डरती हुई मेरा हाथ पकड़ लेती थी, तुम बहुत अच्छी लगती थी तुम्हारे स्वर बहुत मधुर है, तुम गज़ल की जब धुन छेड़ती हो तुम्हारे चेहरे के हाव भाव उस गज़ल को जीवित करने की जिजीविषा उत्पन्न करने लगते, तुम्हारे चेहरे के वो डिम्पल जब मैं तुम्हें बोलता था ये तो गड्ढे है तुम्हारे चेहरे पर, फिर तुम गुस्से से तिमतिमायी शक्ल से मेरी ओर देखने लगती थी तब जब एक नारी इतने रौद्र रूप में मुझे देखेगी तो मैं कितना ही बड़ा ताकतवर सिपाही क्यों न हो मुझे डर लगने लगता था। आज तुम्हारी बहुत याद आती है कि मैंने तुमसे ये कहा था कि मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगा फिर यूं तुम्हें अकेले छोड़कर आना एक निर्दोष आत्मा के साथ छलावा करने के समान है लेकिन अब तुम चिंता मत करो जब दो साल के बाद तुम मुझे देखोगी न तो तुम मुझ पर अपना पूरा नेह समर्पित कर दोगी पूरा गुस्सा खत्म कर दोगी क्योंकि मैं 1 महीने की छुट्टियाँ मनाने आ रहा हूं तुम मेरा इंतज़ार करना मेरी जीवन संगिनी मेरी सोलमेट।
आज आँसुओं की बाढ़ फिर से आ गयी थी कितने कम दिनों का साथ था हमारा। पर यादगार वो पल जो हमने साथ में बिताए अविस्मरणीय है चिरकाल के लिए...
मान गयी आपकी वफ़ादारी देश के लिए भी और मेरे लिए भी पर अगले जन्म में जीवन भर तक साथ निभाना ये अधूरा साथ बर्दाश्त नहीं होता शहीद अशोक सिंह (रोती हुई फिर से बेहाल हो गयी)।