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मेरी बगिया हरी भरी

मेरी बगिया हरी भरी

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जहाँ एक और लोग मेरा मेरा करते हैं वहीं कुछ लोग हैं जो समाज को आगे बढ़ाने के लिए न जाने कितने त्याग और समर्पण की भावना रखते हैं। मैं बात कर रही हूँ एक ऐसी महिला की जिसने जीवन में न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखें मगर वह फिर भी ऊपर उठती गई। उनके अंदर विश्वास व प्यार सब के प्रति, बेजुबान जानवरों के प्रति, अपनी प्रकृति के प्रति था।

एक ऐसी हस्ती, वैसे मैं हस्ती उन्हीं महिलाओं को कहती हूँ जिनकी वजह से किसी का जीवन सँवर गया या कोई गलत काम नहीं हुआ। जिनका नाम वैसे मैं नाम नहीं केवल उनका काम ही जानती हूँ, मिली नहीं मगर उनकी बगिया के फूल देखकर लगा लिख लूँ, सतरंगी जीवन की कहानी....

जिनके जीवन की शुरूआत हम सब की तरह समान रही। नादान बचपन और नखरे सहने वाले, हमारे लिए सपने देखने वाले माँ-बाप मगर समय धीरे-धीरे करवट लेता गया और कुछ ऐसी परिस्थितियाँ भी आई कि माँ-पापा का साया नहीं रहा, हाँ मगर एक बड़ा सा परिवार था जिसमें चाचा-चाची, बुआ, बहनें न जाने कितने रिश्ते थे मगर बिना माँ-बाप के बच्चों को केवल सहानुभूति ही मिलती है दया के पात्र समझे जाते हैं। सच्चा प्यार तो केवल माँ बाप ही करते हैं। हालांकि महिलाएँ दिलों की कोमल होती है तो वह दूसरों को भी अपना समझकर वह प्यार अपनापन महसूस कराती है कुछ ऐसी ही मासी थी मेरी।

मासी की कहानी उनकी ही जुबानी-

परिवार मैं हम सब घुल मिलकर ही रहते थे। कभी कोई मुझे प्यार से खाना खिलाता तो कभी कोई कभी कोई घुमाने ले जाता मैं सबको अपना ही समझती थी क्योंकि ना मुझे माँ की पहचान थी या पापा की। मैं सब की काम में मदद भी करती थी। मैं कभी ऊपर तो कभी नीचे, कभी दाएँ वाले घर में तो कभी बाजू वाले घर में किसी न किसी काम में मदद करती ही मिलती थी।

मेरे चेहरे पर कभी उदासी एवं गुस्सा नहीं रहा। मैं देखने में सुंदर व गोरी थी। मेरी प्यारी गाय की तरह

मेरे बाल लंबे थे जिनकी मैं देखभाल नहीं कर पाती थी। और कोई मेरे इन बालों की देखभाल भी नहीं करता था।इसलिए मेरे बाल हमेशा कटवा देते, कटवाते नहीं, मुंडन करा देते थे। बड़ा बुरा लगता था बिना बालों के चेहरा। कुछ दिन आईने में खुद को भी हम कभी-कभी नहीं पहचान पाते थे। मगर मेरे स्पर्श को, मेरी आवाज को, मेरी गाय बड़ी जल्दी पहचानती थी ।

जब मैं बहुत थक जाती थी, अकेली होती, उदास होती तो उसके पास जाकर ही रोती थी, शायद इसलिए गाय को भी माँ कहते हैं। सच में उसे मैं हर बात माँ की तरह बताती थी और वह चुपचाप सुनती थी। वह प्यार से मेरी तरफ देखती भी, चाटती भी,वह मुझे बहुत प्यार करती थी।

मेरी प्रारंभिक शिक्षा तो हो गई मगर फिर मजबूत कंधों के अभाव में मैं ज्यादा नहीं पढ़ सकी। हाँ, मगर मुझे पढ़ने का बहुत शौक था। मेरी शादी की बातें होने लगी। पहले शादियाँ जल्दी हुआ करती थी, मैंने कुछ नहीं सोचा, ना कुछ बोला। वैसे उस जमाने में लड़कियों से पसंद-नापसंद भी नहीं जानी जाती थी। सबकी सहमति से मेरा विवाह हो गया। सब मुझे बेटी कहते हैं लेकिन एक मायका न था मेरा।

मेरी शादी एक संस्कारी परिवार में हुई। वह आध्यात्मिक, हालांकि सुविधा का काम पहले से कुछ ज्यादा था। पति की आय सामान्य थी। मैंने खुद ही कुछ चीजों का त्याग किया ताकि मैं परिवार को खुश रख सकूँ। बहुत नई चीजें सीखी शादी के बाद, लेकिन मैंने शादी से पहले ही नॉनवेज खाना छोड़ दिया और मैं भी पूजा पाठ ज्यादा करने लगी क्योंकि मुझे पता था एक ऐसे परिवार में जाना है। मैं खुद को उसके अनुसार डालने लगी। मेरी शादी समान नहीं रही। शुरुआत अच्छी थी मगर संघर्ष करना पड़ा।

न जाने क्यों परिवार के एक सदस्य, बड़े ससुर जी ने मुझे अलग कर दिया। मैं अपनी बुजुर्ग सास, जिन्हें हमेशा कमर में दर्द रहता था, एक विधवा ननद और पति के साथ थी। मुझे तीनों की बहुत देखभाल करनी पड़ती थी। ईश्वर ने मेरे हिस्से में सेवा ज्यादा लिखी थी और कुछ समय तक आर्थिक परेशानियां भी जिसके चलते मन को मार कर गुजारा करते थे। मैंने घर के आस-पास कुछ सब्जियों के पौधे लगाए। वे धीरे धीरे बढ़ने लगे और एक बगिया बन गई जहां की सब्जियों से मेरा काम चल जाता था। मैं कभी-कभी दूसरों को भी देने लगी हमारी आमदनी कुछ बढ़ गई मगर मेरी अपनी माँ की कमी थी मतलब मेरी गाय की।

कुछ पैसे इकट्ठे कर हमने गाय भी खरीदी फिर वह दो से तीन, तीन से चार और छह हमें आमदनी भी ज्यादा होने लगी हमारे जीवन में कुछ सुधार हुआ और बचत भी ज्यादा होने लगी।

मगर मेरी शिक्षा अधूरी थी इसलिए मैं हमेशा चाहती थी कि मैं अपने परिवार बच्चों को शिक्षित करूँ। मेरे बच्चे हमेशा मेरे काम में मदद करते थे। मेरी तीनों बेटियाँ बहुत ही समझदार वह होनहार है और मेरा बेटा श्रवण कुमार, यह सब मेरे असली संपत्ति है उस जमाने में स्कूल की शिक्षा मुश्किल होती थी मगर मेरी बेटी कॉलेज भी गई, शिक्षा प्राप्त की। वह हमारे गाँव की पहली लड़की थी जो साइकिल से कॉलेज जाती थी। उसे देखा देखी ही सही, कुछ परिवारों में लड़कियाँ आगे बढ़ी लोगों ने विरोध किया। कई बातें सुनी है मगर मैं अपनी बेटी पर पूरा विश्वास करती थी इसलिए मुझे लोगों की बातों से कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

मैं अपनी बचत का कुछ हिस्सा या यूँ कहे कि मैं बचत ही दूसरो के लिए करती थी। कुछ आसपास के गरीब जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए करती थी। मैंने कई बच्चों को शिक्षित करना चाहा जिसके लिए मैंने उनकी हर तरह से मदद की और कई सालों तक कई बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य का खर्च मैंने अपने बचत से किया। हाँ, मगर यह बात मैंने अपने परिवार को नहीं बताई। शायद बता बता कर दान नहीं किया जाता। कहते हैं दान इस तरह करो कि दूसरे हाथ को भी न पता चले। मैं दिखावे से वैसे भी दूर रहती हूँ। आज वो सब बच्चे किसी न किसी रूप में समाज को आगे बढ़ाने साथ ही मेरी बच्चे भी जो आज लोगों के लिए एक प्रेरणा का काम कर रहे है।

मुझे बड़ा गर्व होता है कि मैंने जितना सोचा था उससे भी कई गुना ज्यादा होनहार, समझदार है मेरी बगिया के फूल। पहले जब भी मुझे समय मिलता था, अपने घर के कामों को जल्दी निपटा कर मैं आसपास के लोगों को कामों में मदद करती थी। कभी किसी की सगाई, कभी किसी के बच्चा होता था, कभी किसी की शादी, कई बार तो पापड़ बनाने या अन्य कामों के लिए भी लोग मुझे बुलाते थे। इतना अपनापन होता था निःसंकोच एक दूसरे के घर हम काम करते थे जिसके कारण परिवार के लोग मुझे, या यूँ कहे सबकी मदद के लिए हमेशा जाने की आदत के कारण गुस्सा भी करते थे, मगर मैं फिर भी हमेशा निःस्वार्थ काम करती रही।

मैं अपने परिवार का संबल और प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से बिना प्रसिद्धि के लोगों का जीवन बनाना चाहती हूँ। इसलिए जब भी किसी की शिक्षा या अन्य किसी प्रकार की आर्थिक जरूरत हो मैं हमेशा तैयार रहती हूँ। आज भी, वैसे उम्र के इस पड़ाव में केवल अच्छे कर्म को ही जीवन की उन्नति का आधार मानती हूँ। यह पैसे धन दौलत यही रह जाएगा लेकिन जब भी लोग या परिवार मुझे याद करे तो एक मदर टेरेसा की तरह, वैसे मैंने जीवन में इतना संघर्ष कर लिया कि बच्चों के लिए एक प्रेरणा हूँ।

जमाना बदल गया, उस बगिया की सब्जियाँ, वह गौशाला नहीं, गाय नहीं, अब बंगले हैं, छोटे से गार्डन हैं, मगर वह यादें हैं और साथ ही एक गाय, जिसे न जाने कितनी बार हम दूर छोड़कर आए, भगाया, मारा, मगर वह नहीं जाती, माँ है न, छोड़कर नहीं जाएगी।

कहते है जिसके पास जो होता है वही देता है। मेरे पास किताबी ज्ञान नहीं, मैंने वेद नहीं पढ़े, मगर मैं वेदना पढ़ सकती हूँ। इसलिए मेरे दो हाथ आशीर्वाद व मदद के लिए हमेशा सबके साथ रहेंगे। आप सब मेरी बगिया के फूल हो हरे भरे।।


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