अकल का सौदागर
अकल का सौदागर
पुराने ज़माने में एक बादशाह रहता था। हर रोज़ वह खिड़की के पास बैठकर देखता कि उसकी प्रजा क्या कर रही है। और एक बार उसने देखा, कि लोग एक जगह पर झुंड बनाकर खड़े हैं, और थोड़ी देर बाद वे बिखर गए। बादशाह ने अपने वज़ीर से पूछा:
“ये, उस जगह पर इतने सारे लोग क्यों जमा हुए हैं?”
वज़ीर ने जवाब दिया:
“वहाँ हर रोज़ एक आदमी आता है और अकल बेचता है, और ये जमा हुए लोग उससे अकल ख़रीदते हैं। ”
बादशाह सोच में पड़ गया। “अगर ख़ुदा ने अकल न दी हो”, उसने सोचा, “तो उसे ख़रीदोगे कैसे?” और वह अकल के सौदागर के पास आया और बोला :
“क्या तुम्हारे पास मेरे लिए मुनासिब अकल है?”
“आप कौन हैं?” सौदागर ने पूछा।
“मैं बादशाह हूँ!” पूछने वाले ने जवाब दिया। तब सौदागर बोला :
“अगर आप बादशाह हैं, तो मेरे पास आपके लिए एक सीख देने वाला शब्द है, मगर पहले आपको मुझे एक हज़ार मुहरें देना होंगी। ”
बादशाह ने उसे एक हज़ार मुहरें दे दीं। तब सौदागर बोला :
“कोई भी काम सोच-समझकर करो, अगर सोचोगे नहीं – तो पछताओगे। ”
बादशाह ने इन शब्दों को अपने महल की सारी दीवारों पर लिखवाने का हुक्म दिया, ताकि हर कोई उन्हें पढ़ सके।
एक बार बादशाह ने नाई को बुलवाया। जब नाई बादशाह के पास जा रहा था, तो उसे रास्ते में वज़ीर मिला और पूछने लगा:
“तू किस उस्तरे से बादशाह की हजामत बनाता है?”
नाई ने उसे लकड़ी की मूठ वाला अपना उस्तरा दिखाया।
“ये, इससे,” उसने जवाब दिया।
“बादशाह के बालों के लिए ऐसा उस्तरा होना चाहिए,” वज़ीर ने कहा और नाई को सोने का उस्तरा दिया।
नाई ने अपना वाला उस्तरा कमरबंद में खोंस लिया और हाथ में सोने का उस्तरा पकड़ लिया। मगर जब वह बादशाह के पास आया, तो उसका ध्यान दीवार पर लिखी इबारत की ओर गया। नाई पढ़ा-लिखा था। उसने पढ़ा : “कोई भी काम सोच-समझकर करो, अगर सोचोगे नहीं, - तो पछताओगे... ”
नाई ने अपना उस्तरा निकाला और बादशाह की हजामत बनाने लगा, और सोने का उस्तरा उसके सामने मेज़ पर रख दिया। बादशाह ने गुस्से से पूछा:
“सुन, नाई! शायद, तू सोच रहा है, कि सोने का उस्तरा मेरे लिए ठीक नहीं है? सोने के उस्तरे को मेरी आँखों के सामने रखा, और लकड़ी की मूठ वाले से मेरी हजामत करने लगा?”
“ओ हुज़ूर! आप ही ने तो लिखा है : “कोई भी काम सोच-समझकर करो, अगर सोचोगे नहीं – तो पछताओगे... ” मैंने भी अपना ही उस्तरा इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया, क्योंकि ये सोने वाला तो मुझे वज़ीर ने दिया है, और मुझे उसके रहस्य के बारे में पता नहीं है। ”
बादशाह ने वज़ीर को बुलवाया और बोला:
“फ़ौरन इस उस्तरे से अपनी हजामत बनवाओ!”
नाई ने सोने का उस्तरा उठाया और वज़ीर के सिर के बाल काटने लगा। जब तक वह बाल काटता रहा, वज़ीर की रूह ख़ुदा को प्यारी हो चुकी थी।
पता चला, कि ये वज़ीर बादशाह से बेहद नफ़रत करता था। उसने सोने के उस्तरे को ज़हर में डुबोया और उसे नाई को दे दिया। अगर नाई ने दीवार पर लिखी सीख न पढ़ी होती, तो उसने ज़हर में लिपटे उस्तरे से बादशाह की हजामत कर दी होती।
बादशाह ने नाई की बुद्धिमानी और सूझ बूझ के लिए उसका शुक्रिया अदा किया, उसे इनाम दिया और घर भेज दिया।
जब बादशाह अकल के सौदागर को ढूँढ़ने के लिए गया, तो वह वहाँ था ही नहीं...
वह कहीं ग़ायब हो गया था।