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वड़वानल - 26

वड़वानल - 26

4 mins
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सुबह ग्यारह बजे तक सर एचिनलेक का कार्यक्रम चल रहा था। कमाण्डर इन चीफ के बाहर निकलने तक किंग की जान में जान नहीं थी। सुबह इतना बड़ा हंगामा हुआ था,    उसके    बावजूद    सारे नियत कार्यक्रम: डिवीजन इन्स्पेक्शन,  विभिन्न प्रश्नों के सन्दर्भ में चर्चा आदि निर्विघ्न पूरे हुए। सुबह की    घटना के बारे में कमाण्डर इन  चीफ  को  कोई  सन्देह  भी  नहीं  हुआ।  किंग  अपनी  विजय  पर  प्रसन्न  था।

किंग    ने    कमाण्डर    इन    चीफ    सर    एचिनलेक    की    कार    को    गेट    से    बाहर    निकलते देखा और वह अपने चेम्बर में घुसा, कैम्प निकालकर हैंगर पर उछाल दी और पैर  ताने  कुर्सी  पर  पसर  गया।  अब  उसे  थोड़ा  अच्छा  लग  रहा  था।  उसे  याद आया,   सुबह   चार   बजे   घर   का   टेलिफोन   बज   उठा   था।

‘‘गुड मॉर्निंग सर...’’ सब लेफ्टिनेंट रावत बोल रहा था। नींद के नशे में किंग को एक मिनट के लिए समझ ही में नहीं आया कि रावत क्या कह रहा है,   और   जब   समझ   में   आया   तो   वह   उछल   पड़ा।   उसका   मुँह   सूख   गया।

‘‘मैं  वहाँ  आ  रहा  हूँ।  समूची  बेस  का  कोना–कोना  छान  मारो।  पूरे  ‘तलवार’ की  युद्ध  स्तर  पर  सफाई  करवाओ।  अगर  मुझे  कोई  चीज़ नजर आई  तो  देखना!’’

‘‘अब तो सब कुछ सही–सलामत पार हो गया है। अब इन बास्टर्ड्स को अच्छा  सबक  सिखाना  पड़ेगा।’’  उसे  याद  आया,  सुबह  ही  तो  रावत  ने  किसी को रंगे हाथों पकड़ा था। ‘‘उस साले को भी अब सबक सिखाता हूँ। ये साले रावत जैसे लोग हैं इसीलिए तो हम यहाँ टिके हैं, वरना...रावत जैसों की थोड़ी पीठ थपथपाई, उन्हें थोड़ा लालच दिया कि वे कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाएँगे।   समय   आने   पर   अपने   स्वार्थ   के   लिए   बाप   को   भी   ख़त्म   कर   देंगे।’’

‘‘बशीर, बशीर–––’’ किंग ने अपने कॉकसन को बुलाया। सफेद झक वर्दी में बशीर भागकर हाज़िर हो“Call sub Lt. Rawat.''

''May I come in, Sir?'' तीसरे ही मिनट में रावत हाज़िर हो गया। वह किंग के बुलावे की राह ही देख रहा था।

''Please, welcome Rawat, welcome! You have done a splendid job! Well done!''

रावत   मन   ही   मन   खुश   हो   गया। तीन–तीन बार दोहरे होते   हुए   उसने   आभार

प्रदर्शित   किया   और   शेखी   बघारने   लगा।

‘‘मैंने तय ही कर लिया था, सर, कि उस गद्दार को पकड़कर ही रहूँगा। साम्राज्य से गद्दारी ? नमक का फर्ज अदा नहीं करते ? हरामी, साला, भागने की कोशिश कर रहा था। मगर मैं फुर्ती से आगे बढ़ा और उस साले का गिरेबान पकड़ लिया। दो–चार लातें खाने के बाद गिड़गिड़ाने लगा। अब बैठकर रो रहा होगा।’’

‘‘मुझे तुम्हारी मर्दानगी के बारे में सुबह ही पता चल गया था। मैंने कमाण्डर इन चीफ से इस बारे में बात भी की।’’ किंग रावत को चने के झाड़ पर चढ़ा रहा था। ‘‘तुम्हारा रिकमेंडेशन भेजने के लिए कहा है। शायद आठ–दस महीनों में... अगला   प्रोमोशन।’’

''Thank you, sir! very kind of you, sir.'' बीच–बीच  में  रावत  बुदबुदा रहा था।

‘‘दत्त  को  तो  तुमने  पकड़ा  ही  है,  फिर अब अगले काम का श्रेय औरों को क्यों जाए ? अब तुम ही सारी खोजबीन करके इस केस की जड़ तक पहुँचो। तुम यह काम करोगे, इसका मुझे यकीन है, क्योंकि तुम अपनी ज़िद के पक्के हो। इतनी कारगुजारी कर लोगे तो शायद और एकाध इनाम...’’ किंग ने लालच दिखाया.

''Thank you, Sir! It will be a great honour for me to carry out your orders, sir!'' रावत के शब्दों में चापलूसी और मुख पर बाज़ी जीतने की प्रसन्नता थी।दत्त  को  सुबह  पकड़ते  ही  रावत  ने  अपने  साथ  वाले  पहरेदारों  को  हुक्म दिया,  "Put him behind the bars.''

गार्डरूम के निकट वाली जेल में दत्त सींखचों के पीछे डाल दिया गया और संगीनधारी   सैनिकों   का   उस   पर   पहरा   बिठा   दिया   गया। 

‘पोस्टर्स चिपकाने के काम मे इतनी बेसब्री से काम नहीं लेना था।’ दत्त सोच रहा था। ‘अब चारेक घण्टे की अच्छी नींद मिलनी चाहिए। रावत ने अगर अभी ही  सवालों  की  बौछार  कर  दी,  तो  मुश्किल  हो  जाएगी... शायद अनचाही  बात मुँह  से  निकल  जाए...’  पिछले  चार  दिनों  की  मानसिक,  शारीरिक  और  दिमागी मेहनत से दत्त बेहद थक चुका था। उसकी सोचने की ताकत ही समाप्त हो गई थी। उसने फर्श पर स्वयं को झोंक दिया और उसकी आँख कब लग गई यह पता   ही   नहीं   चला।

दत्त की आँख खुली तो दोपहर का एक बज रहा था। क्वार्टर मास्टर द्वारा बजाए घण्टे की आवाज से ही उसकी नींद खुली थी। पलभर को तो उसे समझ में ही नहीं आया कि वह कहाँ है। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई। करीब नौ बाइ छह  की  वह  कोठरी  बड़ी  तंग  थी।  आठ  फुट  की  ऊँचाई  पर  लोहे  की  सलाख और   जाली   लगा   एक   झरोखा   था।   रोशनी   आने   का   बस   वही   एक   मार्ग   था। मोटी–मोटी  सलाखों वाले दरवाजों ने बाहर की दुनिया से उसका सम्पर्क तोड़ दिया था। वह उठकर बैठ गया और उसका सिर चकराने लगा। उसे ध्यान आया कि बड़ी तेज भूख लगी है। दरवाजे के निकट भोजन की थाली नजर आई और वह खाने पर टूट पड़ा। पेट में चार निवाले जाने के बाद उसे कुछ आराम महसूस हुआ।

‘ये   चार   संगीनधारी   सन्तरी   किसलिए ?’   उसने   अपने   आप   से   पूछा।

‘मुझसे सरकार को खतरा ? मैं कब से इतना शक्तिशाली हो गया ?’ उसने स्वयं  से  पूछा।

‘अब  आने  दो  रावत  को  और  पूछने  दो  सवाल।  बिछा  ही  देता  हूँ  साले को,’   वह   बुदबुदाया   और   रावत   की   राह   देखने   लगा।

सब ले. रावत को काफी काम निपटाने थे। दत्त के साथ ड्यूटी कर रहे सैनिकों को उसने सबसे पहले बुलाया और उनके बयान लिये। दोपहर तक यह बयानबाजी चलती रही। शाम के बाद उसने दत्त की अलमारी से मिले कागजात, डायरियों,   नोटबुकों   आदि   की   जाँच   आरम्भ   की।

‘‘क्या हाल है दत्त का ?’’ दूसरे दिन सुबह आठ बजे से बारह बजे तक ड्यूटी   करके   लौटे   यादव   से   मदन   पूछ   रहा   था।

‘‘अरे, सन्तरी ड्यूटी पर दो हिन्दुस्तानी और दो गोरे सैनिक रखे गए हैं। दत्त से बात करना तो दूर, उसके पास भी नहीं जाने देते।’’ यादव फुसफुसाया।

‘‘क्या आज उसे जाँच–पड़ताल के लिए सेल से बाहर निकाला गया था ?’’ मदन  ने  पूछा।

‘‘नहीं रे, सुबह से उस तरफ किसी ने झाँका भी नहीं। दत्त को गिरफ्तार किया है,  शायद यह बात भी वे भूल गए  हैं। सुबह की चाय और नाश्ता भी उसे नहीं दिया गया। ड्यूटी से वापस आते हुए उसे खाना देकर आए हैं सुबह से बस पड़ा था। खाना देते समय उसे करीब से देखा, चेहरा एकदम उतर गया है। हमेशा  की  हँसी  बुझ  गई  है।” यादव

‘‘इस अकेलेपन के कारण शायद वह अपना आत्मविश्वास खो बैठे। यदि उसके मन को यह बात सताने लगे कि  वह  अकेला  है,  तो  वह  तो  टूट  ही  जाएगा, मगर अपना प्लान भी खत्म हो जाएगा।’’ मदन सोच रहा था। ‘‘कुछ तो करना ही   होगा।’’   और   उसने   शेरसिंह   की   सलाह   लेने   की   सोची।

दोपहर को जब ये तीनों बाहर जाने के लिए रेग्यूलेटिंग ऑफिस के पास फॉलिन हुए तो बोस को वहाँ न देखकर   उन्होंने   राहत   की   साँस   ली।

 ‘‘बैरेक  में  मैंने  बोस  को  देखा  था।  मुझे  लगा  कि  शायद  वह  हमारे  पीछे–पीछे आएगा।’’   तलवार   से   बाहर   निकलकर   गुरु   ने   बताया।

‘‘फिलहाल शेरसिंह का ठिकाना परेल में है। तुझे कॉमरेड जोशी का घर तो मालूम है ना,   वहीं से   हमें पता मिलेगा।’’   मदन   ने   जानकारी   दी।

‘‘हम लालबाग तक बस में जाएँगे। बस स्टॉप के पास ही जोशी का घर है। संकेत–वाक्य है : हम 64 नम्बर की बस से आए हैं और 46 नम्बर से वापस जाएँगे।’’

मदन ने कहा, ‘‘अरे, देख, वह बोस!’’ पीछे मुड़कर देख रहे गुरु को बोस नज़र आया था।

‘‘पीछे   मुड़कर   न   देखो,   चलते रहो। बस से लालबाग जाना है। हरेक अपना– अपना टिकट खरीदेगा, अलग–अलग स्टॉप पर उतरेगा। हरेक के उतरने में दो–दो स्टॉप की दूरी रहेगी। टिकट दादर तक का लेना। बोस जिसके पीछे होगा, वह उसे चकमा देता रहेगा,   बाकी दोनों अलग–अलग कॉमरेड जोशी से   मिलकर शेरसिंह का पता प्राप्त करेंगे। जो सबसे पहले पता लेगा वह शेरसिंह से मिलेगा, दूसरा नजर रखेगा।’’ खान ने हल्की आवाज में सूचनाएँ दीं। दादर वाली बस सामने से आती दिखाई दी। तीनों ने दौड़कर बस पकड़ी। बोस ने जब तीनों को बस में चढ़ते देखा, तो लपककर चलती बस में चढ़ गया और चढ़ते–चढ़ते बुदबुदाया, ‘‘मुझे धोखा देकर खिसक रहे थे क्या ? मैं तुम्हें छोडूँगा नहीं। मेरी कम्बल–परेड की थी ना,   देखते रहो उसका बदला मैं कैसे लेता हूँ।

‘‘तीनों का पीछा करूँगा, वे किससे मिलते हैं यह पता करूँगा और उन्हें सबक सिखाऊँगा, यह सोचकर निकला था, मगर ये दोनों बीच में ही क्यों उतर गए ? अब मैं किसका पीछा करूँ ?’’ बोस सोच रहा था। ‘‘ये तीनों फिर से कही न कहीं मिलेंगे जरूर। अब इस खान को नहीं छोड़ना चाहिए, उसी के पीछे रहना है; ’’   उसने   निश्चय   किया।

बॉम्बे सेंट्रल के निकट उतरकर सबसे पहले मदन लालबाग की मजदूरों की बस्ती में पहुँचा। कॉमरेड जोशी अपने कमरे में ही थे। यह कमरा ही उनका दफ़्तर था। मदन उनसे पहली बार मिल रहा था।

‘‘कौन चाहिए ?’’   कड़े शब्दों में मदन का स्वागत किया गया।

‘‘कॉमरेड जोशी।’’

‘‘मैं   ही   हूँ।   क्या   काम   है ?’’

मदन ने काम के बारे में जानकारी दी और शेरसिंह का पता पूछा। उसका संकेत–वाक्य बतलाया। जोशी को विश्वास नहीं हो रहा था। मदन ने दो–चार बार विनती की, तब शेरसिंह के पास किसी आदमी को भेजकर निर्णय लेने का उन्होंने निश्चय किया। जब मदन शेरसिंह के पास जाने के लिए निकला तो कॉमरेड जोशी  ने  उसके  कन्धे  पर  हाथ  रखकर  समझाते  हुए  कहा,  ‘‘गुस्सा  मत  करो।  पार्टी के और हाथ    में लिये काम के हित की दृष्टि से यह पूछताछ,  यह अविश्वास...करना पड़ता है।... जाने से पहले एक सूचना दे रहा हूँ। ‘जमना’ के टेलिग्राफिस्ट राठौर और  ‘नर्मदा’  के  कुट्टी  से  मिल  लो।  वे  तुम्हारी  ही  राह  के  मुसाफिर  हैं।  यदि तुम   लोग   इकट्ठे   हो   गए   तो   फायदा   ही   होगा।’’

‘‘दत्त द्वारा उठाया गया कदम बिलकुल योग्य एवं समयोचित था।’’ मदन की  बात  सुनने  के  पश्चात्  शेरसिंह  शान्ति  से  अपनी  राय  दे  रहे  थे। ‘‘बगावत के लिए, ऐसा कुछ होना जरूरी था। इसके परिणाम दो–चार दिनों में स्पष्ट होंगे। किंग तथा अन्य अधिकारी दत्त से अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने की, उसके साथियों  को  पकड़ने  की  कोशिश  करेंगे।  दत्त  के  ऊपर  थर्ड  डिग्री का इस्तेमाल किया जाएगा। दूसरी ओर से दत्त को भी इन सबका बगावत के लिए उपयोग करने का मौका मिलेगा।’’

‘‘वह  कैसे ?’’  मदन  ने  पूछा।

‘‘दत्त अपना गुनाह मान ले। सारी जिम्मेदारी खुद पर ले ले। नौसेना के कानूनों के अनुसार दत्त पर देशद्रोह का, सरकार का तख़्ता पलटने का और इसी प्रकार के दो–चार आरोप लगाए जाएँगे। पूछताछ समिति या एकदम कोर्ट–मार्शल भी हो सकता है। दत्त को इस सबके लिए तैयार रहना होगा। वह दृढ़ निश्चय करे कि न तो कुछ बोलेगा, न ही कोई जानकारी देगा। पूछताछ करने वाले अधिकारियों के सामने बार–बार उलझनें पैदा करके उन्हें संभ्रमित करना चाहिए। इन  उलझनों  को  सुलझाने  में  उनका  समय  बरबाद  होगा  और  तुम  लोगों  को  तैयारी करने  का  वक्त  मिल  जाएगा।  दत्त  इस  बात  की  माँग  करे  कि  उसे  राजनीतिक कैदियों को मिलने वाली सुविधाएँ दी     जाएँ,     वह ये ज़ाहिर करे कि वह एक राजनीतिक कैदी है।’’   शेरसिंह   ने   मोटे   तौर   से   व्यूह   रचना की कल्पना दी।

मदन  के  सामने  अब  एक  ही  प्रश्न  था  कि  शेरसिंह  का  सन्देश  दत्त  तक  किस तरह   पहुँचाया जाए। 

‘‘क्या आज तेरी सेल–सेंट्री की ड्यूटी है ?’’ मदन ने यादव से पूछा। दत्त तक सन्देश पहुँचाने के लिए विश्वासपात्र व्यक्ति की ज़रूरत थी।

‘‘मैं कह नहीं सकता, क्योंकि ड्यूटी से सिर्फ दस मिनट पहले सूचना दी जाती  है। बारह  बजे  दोपहर  से  चार  बजे  शाम  की  ड्यूटी  करने  के  बाद  सुबह चार से आठ वाली ड्यूटी पर मुझे भेजेंगे ही, इसका कोई भरोसा नहीं।’’ यादव ने स्पष्ट किया।

सन्धि  की  राह  देखने  के  अलावा  मदन  के  पास  और  कोई  चारा  न  था।


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