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Nikita Vishnoi

Drama

5.0  

Nikita Vishnoi

Drama

खूबियां

खूबियां

3 mins
563


फिर क्या बात है कि ऑफिस से लेकर ग्राम के प्रधान भी आपको पसंद करते है, जबकि मेरा बैंक बैलेंस तो आपकी तुलना में बहुत अधिक है, आपसे पहले मैं हर चीज़ को खरीदने की क्षमता रखता हूँ मेरे पास क्या कुछ नही है तो भी ये भिखमंगे लोग आपको ही इतना तवज्जों क्यों देते है औकात ही क्या इन लोगो की, चाहूं तो मैं खड़े -खड़े भी इनको खरीद सकता हूं, पर मुझे ये लोग चाहिए ही नही, न इनका कोई स्टेटस है और न ही कोई इनमें मैनर्स, ये दो कौड़ी के लोग है वक़्त आने पर सब मेरे पास ही दौड़ कर आएंगे।

तब देखता हूँ सालो ! को एक एक करके।

मूछों पर ताव देते हुए अनिरुद्ध ने मानस से कहा

मानस ने बस एक ही बात कही अनिरुद्ध से की देख अनि, एक बात बहुत पहले किसी सज्जन इंसान से सुनी थी मैंने, की

"बुलंदी तो एक पल का तमाशा है

तुम जिस शाख पर बैठे हो वो टूट भी सकती है"

समय आने पर तुम्हे सब पता चल जाएगा अनि ये दुनिया बहुत फेरबदल करवाती है तू ज़रा एहतियात बरत ले, मुनासिब होगा तेेरे लिए हाऊ इर्रिटेटिंग पीपल बोलकर अनि ने मानस की बात को नकारते हुए ऑफिस की फ़ाइल को तेजी से झपटते हुए नो दो ग्यारह होना उचित समझा।

वक़्त करवट ले ही रहा था अपनी रफ्तार से ।

धीरे धीरे अनि के व्यवसाय में मंदी नज़र आने लगी थी उसके प्रॉडक्ट मार्केट में नापसंद किये जाने लगे, पूरा व्यवसाय बहुत ही अल्पावधि में ठप्प हों गया अनिरुद्ध टेंसन में आ गया था। उसे न रात में नींद आती न दिन में चैन बड़ी असमंजस, दुविधा में दिन निकल रहे थे। कर्ज भी बहुत बढ़ गया था अब तो अनि पूरी तरह से रोड़ पर ही आ गया था जिन लोगो को अनि दुत्कार कर भगा देता था आज अनि उन्ही के दरवाजे पर आश्रय की उम्मीद खोजने लगा किसी ने अनि की मदद नही की, लेकिन गांव के एक वृद्ध व्यक्ति ने अनि को पनाह दी और उस वृद्ध व्यक्ति ने सभी लोगो के सामने ये बात कही की कल तक तूने इन गरीब लाचार, मजबूर लोगो की परिस्थिति का मज़ाक बनाता था आज सब कुछ वैसा ही है वही मजाक वही उपहास वही अनादर वहीं तिरस्कार वैसा ही समय है परंतु किरदार बदल गया है आज उस जगह तू खड़ा है जहाँ एक समय ये मजबूर लोग खड़े थे, तब मानस ने इन सबकी सहायता की, इनका हौसला बढ़ाया तब आज स्थिति ये है कि ये सब आत्मनिर्भर हुए है इनका स्वयं का व्यवसाय है

अनि अपने किये पर बहुत शर्मिंदा था उसने वहां पर उपस्थित सभी लोगो से माफी मांगी और अपने व्यवहार को सुधारने को लेकर एक अवसर की मांग की।

ये थी लोकव्यवहार को जागृत करने की मेरी कहानी, जिसका केवलऔर केवल उद्देश्य एक अच्छे मिलावट से रहित व्यवहार को निर्मित करने से है, यदि हमारा व्यवहार अच्छा है तो निश्चित ही हम बेहतर परिणाम दे सकते हैं, इसके विपरीत तो कल्पना भी खिन्नता प्रकट करने लगती है।


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