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28. "मन का बंधन"

28. "मन का बंधन"

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"सगे मामा द्वारा देह व्यापार में धकेली गई मासूम लड़की को मुक्त करा कर नारी निकेतन भेजा गया।"

आज के समाचार पत्रों में छपी ये ख़बर सामान्य खबरों की तरह ही लोगों ने पढ़ कर चंद लम्हों तक अफसोस जाहिर किया और फिर सब पहले की तरह सामान्य हो कर अपने कार्यों में व्यस्त हो गए।

लेकिन आशा के लिए ये महज खबर नहीं बल्कि सुकून भरी खुशी थी। वो जानती थी न जाने कितनी आशाएं तड़प रही हैं देह के उन भयावह पिंजरों में जहां ज़िस्म की मंडी लगती है और ज़िन्दा गोश्त के सौदागर चंद रुपयों की खनक में सारी मानवता को नोंच नोंच कर तार तार कर देते हैं। 

नरक से भी बद्तर हालात में ज़िन्दा लाशें सज संवर कर अपनी अस्मत का सौदा करती हैं। 

तंत्रा टूटती है तो आशा देखती है एक बीस - बाइस साल की भोली भाली, मासूम लड़की सकुचाई सी, आंखें झुकाए उसके सामने खड़ी है। गोल मटोल सुंदर चेहरा जो अब मुरझा कर सुस्त पड़ गया है शायद अपनी ही सुंदरता को कोसता हुआ। इंसानों की इस दुनिया में नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त।

आशा पूछती है, "क्या नाम है तुम्हारा।"

"जी रूपा।"

कहाँ की रहने वाली हो, कौन कौन है घर में,

"मेडम जी .... मैं कौन हूँ, कहाँ की रहने वाली हूँ, मेरा असली नाम क्या है, घर में कौन कौन है ? अब इन बातों का कोई मतलब नहीं। मैं एक ज़िस्म हूँ जिसे हर रात बेचा और खरीदा जाता है, लोग जिसे वेश्या कहते हैं। बस अब यही मेरी पहचान है और यही मेरा परिचय।

"हम्म ..... जानती हो रूपा, न तो पूरी रात रहती है और न पूरा दिन, बारी बारी से ये आते जाते रहते हैं यही प्रकृति का नियम है। रात के बाद सवेरा जरूर आता है। तुम्हारी तरह ही एक लड़की थी पढ़ाई लिखाई में घर के काम काज में होशियार चंचल और हँसमुख दीन दुनिया से बेख़बर बस अपनी अम्मा और बाबू की लाडली। टूटे फूटे घर और गरीबी में भी हँसती मुस्कुराती, सारे गांव में कोयल की जैसे कूदती फांदती, गाती रहती थी। लेकिन होनी को ये मंजूर न था, मासी का बेटा भाई जो शहर में रहता था उसकी ज़िन्दगी में काल बनकर आया। उसके गरीब माँ बाप को आगे पढ़ने और काम दिलवाने के सुनहरे सपने दिखा कर आठवीं क्लास तक पढ़ी आशा को लेकर शहर चला आया और ज़िस्म की मंडी में उसको बेच डाला।

सिर्फ पंद्रह बरस की वो मासूम बच्ची जो कभी अपने घर गांव से दूर नहीं निकली इतनी दूर निकल आई थी जहां दूरियों का कोई माप नहीं होता। न जाने कितने हाथों में उसे बेचा और खरीदा गया और हवस की चलती फिरती दुकान बना दिया। 

शुरु शुरु में उसने अपनी जान लेने की कोशिश भी की लेकिन सफल नहीं हुई। उसे चौबीसों घंटे कड़े पहरे में रखा गया और सांस पर भी पाबंदियां लगा दी गई। 

वो कमजोर लाचार लड़की कितना लड़ती संघर्ष करती और आखिरकार उसने हालात के सामने घुटने टेक दिए और समझौता कर लिया। वो भी बाकी लड़कियों की तरह देह व्यापार का हिस्सा बन गई। लेकिन जैसा मैंने तुम्हें कहा रात के बाद सवेरा जरूर आता है, उसके जीवन में भी आया, एक अच्छे घर का लड़का जो ट्रक ड्राइवर था, आम लोगों की तरह ग्राहक बन कर आया। एक बार दो बार और फिर बार बार आने लगा। वो कम पढ़ा लिखा जरूर था लेकिन इंसानियत के विद्यालय का होनहार छात्र था। एक दिन उसने उस लड़की से पूछा, तुम कौन हो कहाँ की रहने वाली हो, तुम्हारा असली नाम क्या है और वही सब सवाल जो मैनें तुमसे पूछे और जानती हो उस लड़की ने भी वही जवाब दिया जो अभी तुमने दिया।

फिर भी जाते जाते उसने एक सवाल छोड़ दिया, जैसे तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, इसीलिए मैं बार बार सिर्फ तुम्हारे लिए आता हूँ वैसे ही क्या तुम भी मुझे पसन्द करती हो ? क्या तुम मुझसे शादी करोगी ? वो लड़की अवाक रह जाती है मुंह से कोई बोल नहीं फूटता फिर भी वो लड़का उसे बोल कर चला जाता है कि सोच कर रखना मेरा जवाब अबकी बार आऊं तब बताना।

बहुत दिनों के बाद वो लड़का वापस आया आते ही उसने अपने सवाल का जवाब मांगा कि क्या वो भी उसे पसन्द करती है और शादी करना चाहती है ? जानती हो लड़की ने क्या कहा-

हम जैसी लड़कियों की ये दलदल ही हमारी दुनिया है। यहां न कोई अपनी मर्ज़ी से आता है और ना अपनी मर्ज़ी से कोई जा सकता है। जो हो ही नहीं सकता उसके सपने मत दिखाओ। मेरी जैसी लड़की की आप शरीफों की दुनिया में कोई जगह नहीं।

फिर लड़के ने कहा मुझे सिर्फ तुम्हारी हाँ या ना सुननी है और कुछ नहीं, तुम अपना फैसला बताओ बाकी सब मुझ पर छोड़ दो।

लड़की बोलती है- हाँ मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूँ लेकिन अब मुझमें क्या रखा है जो तुम्हें दे पाऊंगी, तुम मुझे भूल कर अपनी दुनिया में लौट जाओ।

"बस तुम्हें जो कहना था तुमने कह दिया, विवाह दो ज़िस्मों का मिलन नहीं, तो आत्माओं का मिलन है जो जन्मजन्मांतर तक साथ रहने का विश्वास जगाता है। प्रेम की ये वो अवस्था है जब दो मन एक होकर नए जीवन का मार्ग चुनते हैं !

मैंने फैसला कर लिया है तुम्हें इस दलदल से निकाल कर रहूँगा। इतने दिन नहीं आने का कारण यही था । मुझे मालूम था तुम भी मुझे चाहने लगी हो इसीलिए मैं इंतजाम में लगा रहा।"

और फिर न जाने कितनी कितनी मुसीबतों और बाधाओं को पार करके वो लड़का उस लड़की को उस गंदगी से निकालने में सफल रहा, आज पूरे बीस साल गुजर गए उस बात को। उन दोनों ने शादी की और अपनी गृहस्थी बसाई। आज वही लड़की तुम्हारे सामने खड़ी है रूपा। हां मेरी बच्ची, मैं ही हूँ वो खुशनसीब जिसने रात के बाद सवेरा देखा है। मेरे दो बेटों की जैसे ही अब तुम भी मेरी बेटी हो। तुम्हारी ज़िन्दगी में भी अब खुशियां आएंगी। देखो वो जो आ रहे हैं ये वही इंसान हैं जिनके प्यार में आज भी मैं सराबोर हूँ।" 

और रूपा, आशा से लिपट कर रो पड़ती है, जैसे कोई बेटी विदा होते समय अपनी माँ से लिपट कर रोती है।


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