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गौरी

गौरी

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रास्ते के उस पार था वो फूल और एक हवा का झोंका टकराया। अगले ही पल ज़मीन पर तड़पता रहा जब एक पैर ने उसे कुचल दिया।

“अरे देखकर चलो भाई !" उस फूल ने आवाज़ दी। मगर अंजान चप्पलों ने कान न दिए।

गौरी, एक बारह साल की बच्ची, किचन में बर्तन माँज रही थी। और फिर, उसे जाना था बाज़ार। मालकिन की पेट भरी डाँट सुनकर वो घबरा गई।

“कितना टाइम लगाती है सफाई में ? जल्दी कर, वरना तुझे आज खाना नहीं मिलेगा।"

दोपहर के दो बज चुके थे। घर के मोती को रोटी मिली, गौरी ने खुद अपने हाथों से दी। उसी में से एक टुकड़ा चखते हुए गौरी सब्जी खरीदने निकली। गौरी को तितलियों से बड़ा प्यार था। चलते-चलते हमेशा की तरह वो तितलियों से बात करती।

“तुम आज़ाद हो, कितनी खुश हो !” - गौरी हँसते हुए बोली।

तब अचानक से उसके कदम उस ज़ख्मी फूल पर पड़े।

“माँ !" फूल दर्द से चिल्लाते हुए।

गौरी चौंक - सी गई जब उसने ये सुना।

“तुम बोलते भी हो ?” - गौरी ने पूछा।

“यहाँ बोलते सब है बच्ची, मगर सुनना कोई नहीं चाहता। मेरी किस्मत में ये रोना ही लिखा है।" - फूल ने मायूस होकर बताया।

हाथों में सँभालते हुए गौरी ने फूल को मुट्ठी में उठाया और बोली, “मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। आज के बाद से तुम्हें और तुम्हारे साथियों को किसी के पैरो तले दबने की ज़रूरत नहीं।"

गौरी ने वहाँ मुस्कराते सभी फूलों को अपने साथ समेटा और दौड़ते हुए मंदिर चली। उसने उन फूलों को भगवान के चरणों में समर्पित किया और दुआ मांगी,

“इन्हें खुश रखना।"

फूलों की ख़ुशी आसमान को छूती हुई। दोपहर के तीन बज चुके थे। गौरी डरी-सहमी बाज़ार से घर पहुँची। मालकिन की एक फटकार ने गौरी के बदन को झंझोड़ दिया। वो रोई, चिल्लाई, आस-पास लोग जमा हुए, मगर किसी ने कुछ नहीं कहा।

उस रात गौरी ने दर्द भरी आह भरी,

"माँ..."

खिड़की पर बैठी तितली ने ये सब देखा।

सुबह ने उम्मीद को जगाया, और गौरी रोज़ की तरह घर के काम काज में लग गई। आज फिर बाज़ार जाना हुआ। गौरी ने इतना मार खाया था कि उसे चलने में तकलीफ हो रही थी। वो एक झाड़ के नीचे आराम करने बैठ गई। एक फूल उस डाल से गौरी के गोद में आ गिरा। गौरी उसे देख मुसकुराई।

“आओ, मैं तुम्हें भगवान को अर्पित करती हूँ।" - गौरी ने कहा।

एक और फूल गिरा। गौरी ने फिर मुस्कुराया। जैसे ही गौरी आगे बढ़ने उठी, ढेर सारे फूलों ने गौरी के आस-पास कूदना शुरू किया। जब गौरी ने ऊपर झाड़ की तरफ देखा तो ख़ुशी से पागल हो गई। अनगिनत तितलियां वहाँ उड़ रही थी और फूलों की जैसे बरसात हो रही थी।

उनमें से एक फूल ने कहा,

“तुम हमें अवश्य भगवान के चरणों में डालना, मगर अपनी ज़िन्दगी के कीमत पर नहीं।"

गौरी ने सारे फूल समेटे और मंदिर पहुँची। उसने वो सारे फूल नजदीक के एक व्यापारी को बेचे। बदले में उसने सौ रुपए कमाए। नम आँखों से वो भगवान के पैरो पर गिरी।

एक आवाज़ आई,

“जिस किसी ने, जब-जब माँ को पुकारा है, वो कभी खाली हाथ नहीं गया।"

उस दिन घर को कोई आया और मालकिन को हथकड़ियों में बांधकर ले गया। गौरी अब फूलों के साथ खुश है...।


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