लघुकथा--- सुन्दरता
लघुकथा--- सुन्दरता
"घर में पधारो गजानंद जी मेरे घर में पधारो" मेरे घर की डोर बेल बजी। जाकर गेट खोला तो देखा एक अपरिचित महिला मेरे घर के दरवाजे पर सजी-धजी खड़ी मुस्कुरा रही थी। नमस्ते कहकर अंदर आने लगी। प्रत्युत्तर मैं मैंने भी उनसे नमस्ते आंटी कहकर अंदर बुला लिया।
मम्मी कहां है बेटा ? आंटी ने कहा।
मैं जवाब देती उससे पहले मेरी मम्मी भी हाल में आ गई।
नमस्ते-नमस्ते। और कैसे आना हुआ राहुल की मम्मी ?
मेरी मम्मी ने कहा। आंटी बोली बस भावना से मिलने आ गई थी।अच्छा-अच्छा आइए ना। आओ बेटा भावना। बैठो। तुमसे कुछ पूछना था ? तुम्हारी सहेली सोनम के बारे में जानना चाहती हूं। मेरे बेटे को तुम तो नहीं जानती होंगी लेकिन तुम्हारी मम्मी जानती है। मेरा बेटा सरकारी नौकरी में है।
राहुल के लिए लड़की देख रही हूं। हमारे परिचित ने तुम्हारी सहेली सोनम के बारे में बताया था। सुना है उसका रंग सांवला है ? मैंने कहा-हां।आंटी बोली इसलिए उसका अब तक है रिश्ता जमा नहीं। मैंने कहा लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है 'आंटी'। मेरी मम्मी बोली राहुल भी तो सावला है ना। आंटी झट से बोली हां राहुल तो अपने पापा पर गया है। मेरा लड़का तो बहुत होशियार है एक ही तो लड़का है मेरा। मेरी बेटी तो मुझ पर गई है।
बहुत बड़ा ससुराल है उसका मैं तो अपने रंग की गोरी चिट्टी बहू लाऊंगी। ताकि सब देखते रह जाए। मैं और मेरी मम्मी उनके बच्चों की तारीफ सुनते रहे। आंटी मेरी सहेली सभी क्लासों में अव्वल आती रही है। उसकी सरकारी नौकरी है गीत, लेखन कार्य में निपुण होने के साथ-साथ उच्च अध्ययन कर रही हैं। लंबे-लंबे बाल है उसके। ज्यादा ऊंची है ,ना ठिगनी। न ज्यादा मोटी है न दुबली है। हां सिर्फ रंग उसका सांवला है। मेरी मम्मी बोली-राहुल की मम्मी सोनम बहुत अच्छी है -लड़की है। इतना कहा ही था कि आंटी बोली पड़ी - उससे क्या होता है भावना की मम्मी। मैं तो अब उस लड़की को देखने नहीं जाऊंगी। आंटी ने कहा ।मैं तो मेरे लड़के के लिए गोरी-नारी और सुंदर बहू लाऊंगी। चाय की चुस्कियां लेती हुई और गोरे और काले का भेद बता कर आंटी चली गई। लेकिन मैं और मम्मी एक दूसरे को देखते ही रह गए।
क्या तन की सुंदरता मन की सुंदरता से ज्यादा है ?
क्या तन की सुंदरता स्थाई हैं ?