पैसा और प्यार
पैसा और प्यार
नीता अपने पति से नाराज़ थी। उसके पति अमर ने रविवार को उसे एवं उनके बच्चों को पिकनिक ले जाने का वादा किया था, पर अब वह अपने वादे से पीछे हट गया है। उसे दफ्तर में कुछ काम निकल आया था। नीता इस बात से काफ़ी हताश थी और मुँह फुला कर बैठी थी।
अमर परेशान था। उसे सोमवार सुबह तक रिपोर्ट बना कर अपने बाॅस को देनी थी। अगर वह अपना काम पूरा कर पाता है तो उसकी तरक्की निश्चित थी। अगर नहीं तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता। अमर चिन्ता में पड़ गया। काम करना उसके लिए ज़रूरी था। उतना ही ज़रूरी अपनी प्यारी पत्नी नीता को खुश रखना था। वह न बाॅस को नाराज़ कर सकता था न पत्नी को। उसे कोई ऐसा रास्ता निकालना था कि उसका काम भी हो जाए और नीता का भी दिल खुश हो जाए। वह सोच में पड़ गया। सोचते सोचते उसने अपना हाथ अपने दिल पर रख दिया। उसकी शर्ट की जेब में उसका बटुआ रखा हुआ था। उसे देखते ही अमर को एक उपाय सूझा और उसका चेहरा खिल उठा।
उसने अपना बटुआ नीता के हवाले कर दिया और उसे बच्चों के साथ शाॅपिंग करने भेज दिया। पति का बटुआ हाथ में आते ही नीता के बुझे हुए चेहरे पर रौनक आ गयी। वह सारे गिले-शिकवे भूल कर खुशी-खुशी शाॅपिग करने निकल पड़ी। अब अमर भी खुश था। वह शान्ति से अपना काम कर सकता था। कहते है पैसै से प्यार खरीदा नहीं जा सकता परन्तु प्यार के रास्ते में आने वाली कई अड़चनों को पैसा सुलझा सकता है। अब अमर की समझ में यह बात आ गयी थी कि पत्नी को खुश रखने में पति का बटुआ कितनी अहम भूमिका निभाता है!