अनोखा कन्यादान
अनोखा कन्यादान
ट्रिन ट्रिन ट्रिन !
हैलों, हां चाची, कैसे हो आप लोग ?
हम ठीक हैं रिया, तुम्हारे लिए एक सरप्राइजिंग न्यूज़ हैं, मैं अभी नहीं बताउंगी, कल-परसों तक तुम्हारे पास कार्ड पहुंच जाएगा, कार्ड मिलते ही जितना जल्दी हो सकें, तुम जबलपुर आ जाना ।
क्या बात हैं चाची, कुछ तो बताइये ना- मेरा दिल बैठा जा रहा हैं ।
अरे घबराओं मत, एक खुशखबरी हैं, कार्ड मिलते ही समझ जाओगी, – चाची बोली
ओ के बाय, कहकर चाची ने फोन रख दिया ।
दो दिन बाद ही जब रिया ऑफिस से घर पहॅुची ही थी कि सासू मां ने एक वेडिंग कार्ड हाथों में दिया,
देख तो किसकी शादी का कार्ड हैं, अब इन बूढ़ी आंखों से नज़र आना बिल्कुल बंद हो गया - सासू मां बोली ।
मैने कार्ड खोला, देखा तो आंखें खुली की खुली रह गई । प्रिया की शादी ! प्रिया की... ओह माय गॉड !
किसकी शादी है रिया, ये प्रिया कौन हैं ? - सासू मां ने पूछा
मन ही मन रिया ने सोचा कि इनको ऐसी बात बताना मतलब दुनिया जहां की परंपराओं, आस्थाओं और पुरातनपंथी मानसिकताओं की तर्जे रोज सुबह शाम सुननी पड़ेगी, बेहतर हैं कोई भी बात बताकर फुर्सत हो जाये ।
मांजी आप उनको नहीं जानती, बरसो पहले मेरे मायके के पड़ोस में रहा करते थे, उसकी बिटिया की शादी का कार्ड हैं - रिया बोली
तो इसमें इतना हैरान होने वाली कौन सी बात हैं, हर मां-बाप अपनी बेटी की शादी करते हैं- सासू मां बोली
रिया बोली- अरे नहीं मांजी, हैरानी वाली कोई बात नहीं, बहुत पुरानी पहचान हैं हमारी, प्रिया इतनी बड़ी हो गई, कि इसकी शादी की बात चल पड़ी, पता ही नहीं चला समय कैसे निकल गया ।
रिया, लड़कियां तो होती ही पराया धन हैं, कब तक मां-बाप घर पर बिठा के रखेंगे, कुछ उंच-नीच हो, उससे पहले ही अपने घर जाकर गृहस्थी संभालें, वही अच्छा है ।
रिया ने सासू मां से आगे बहस करना मुनासिब नही समझा और पर्स उठाकर अपने कमरे की ओर जाते हुए बोली- ठीक कहती हैं मांजी आप, चलो मैं चेंज करके अभी आती हॅू । अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेटकर रिया इनविटेशन कार्ड को ध्यान ने पढ़ने लगी । प्रिया वेड्स अजिंक्य...जबलपुर का ही रहने वाला हैं अजिंक्य । चलो अच्छा हैं एक ही शहर में रहेगी प्रिया, कम से कम जब मन हो तब चाचा-चाची उससे मिलने जा तो सकते हें । सच कितना प्यार करते हैं वो प्रिया को, और प्रिया भी कहॉ रह पाती हैं चाचा-चाची के बिन एक भी दिन । पर क्या कर सकते हैं, अपने जीते-जी, प्रिया को एक अच्छे जिम्मेदार हाथों में सौपना ही तो चाचा-चाची का सपना था ।
ओह माय गॉड, शादी तो दस दिन बाद ही हैं, इतनी सारी तैयारियां फटाफट निपटानी होंगी, सबसे पहले तो समित को कह कर जबलपुर के लिए रिजर्वेशन कराना होगा । बैग पैक करना होगा । हालांकि शादी और रिसेप्शन एक ही दिन हैं यानि सुबह ही सारे कार्यक्रम निपट जाएंगे और शादी भी गायत्री मंदिर मे ही हैं, यानि कम ही लोगों को बुलाया होगा । चलो जबलपुर जाकर सब पता चल ही जाएगा । रिया मन ही मन बातें करती चली जा रही थी ।
रिया ने फटाफट खाना बनाकर तैयार किया ही था कि समित ऑफिस से आ गया ।
वो चेंज करने बेडरूम में आया तो पीछे-पीछे रिया आई और धीरे से बोली- समित, जबलपुर में प्रिया की शादी हैं,
कौन प्रिया,
अरे मैने आपको नहीं बताया था कि हमारे मायके के पड़ोस में चाचा-चाची हमारे पड़ोस में रहा करते थे, उनकी ही...
ओ हो, ये तो बड़ा ही अच्छा हुआ, चाचा-चाची ने तो बहुत ही अच्छा काम किया, प्रिया की शादी का फैसला करके ।
हां समित, पर मांजी को पुरानी कहानी बिल्कुल मत बताना, वैसे मैने उन्हें बताया ही दिया हैं कि मेरे पड़ोस में चाचा-चाची रहा करते थे, उनकी बेटी की शादी हैं । जिस भी तारीख का रिजर्वेशन मिल रहा हो, प्लीज करवा लेना जल्दी । तुम मेरे साथ चलोगे ना,
मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकूंगा रिया, मेरे ऑफिस में ऑडिट हैं । ऑडिट निपटते ही मैं तुरंत जबलपुर पहॅुच जाउंगा । कल-परसों जब भी एवेलेबल होगा, मैं तुम्हारा रिजर्वेशन कर देता हॅू । समित बोला
चलो, फ्रेश होकर पहले खाना खा लो – रिया बोली ।
रिया ने खाना सर्व किया । वाह क्या गर्मागरम कोफ्ते बनाएं हैं रिया, मजा आ गया, बस थोड़ा तेल कम डालती ना तो और भी अच्छी लगती सब्जी, वैसे मैं ये नहीं कह रहा कि ठीक नहीं बनी – समित बोला
कोई बात नहीं समित, मेरे जाने के बाद फिर 6-8 दिन बबली के हाथ के खाने का मज़ा लेना, वो रोज़ तुमको तुम्हारी पसंद की लज़ीज डिशेज बनाकर खिलाएगी वो भी बिना तेल के ।
अरे बबली काहे को बनाएगी, मैं खिलाउंगी न अपने बेटे को अच्छी-अच्छी चीजें बनाकर- मां जी बोली ।
समित को रिया को छेड़ने में मज़ा आ जाया करता, ये बात रिया बहुत अच्छे से जानती थी, इसीलिए वो बुरा भी नहीं मानती थी । समित ने रिया का जबलपुर जाने का रिजर्वेशन करा दिया था । रिया ने अगले ही दिन ऑफिस में 10 दिन की छुट्टी की अर्जी लगा( दी ।
रिया के जाने का समय आ गया । समित उसे ट्रेन में बिठा आया । ट्रेन चल पड़ी थी । रिया के मन में बरसों पुरानी यादें गहराती चली गई । पर इस शुभ समय वह उन यादों को बिल्कुल भी ताज़ा करना नहीं चाहती थी । वह तो अपने चाचा-चाची के इस निर्णय पर गर्व महसूस कर रही थी । सोचते-सोचते उसे नींद आ गई । सुबह पांच बजे ट्रेन जबलपुर पहॅुची । चाचा उसे स्टेशन पर लेने आए थे । उन दोनों को संवाद की आवश्यकता नहीं थी । शायद आंखों ही आंखों में एक-दूसरे के दिल की बात समझते हुए, दोनों की आंखें भर आई थी, पर दोनों ने ही अपनी भावनाओं पर कंट्रोल किया ।
कैसे हैं चाचा, कहकर प्रिया ने चाचा के पैर छुये ।
ठीक हॅू बेटी, ला सूटकेस मुझे दें
नहीं चाचा, ये एकदम हल्का हैं, मैं ही पकड़ लूंगी ।
दोनों घर पहुंचे, उन्हें देखते ही चाचा की बेटी यशी दौड़ते हुए बाहर आई और रिया का बैग उठाते हुए कहा- दीदी, कैसी हो, हम सब आपका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे !
अंदर चाची और प्रिया ने रिया को देखते ही गले लगा लिया ।
इधर-उधर की बातें करते हुए सबने मिलकर गर्मागरम वड़ा पाव और चाय का आनंद लिया । फिर चाची बोली- रिया, तुम और यशी प्रिया के लिए मेकअप का सामान और साडि़यों के मेचिंग की एक्सेसरीज़ खरीद लाना, फिर कल – परसों प्रिया को पार्लर भी ले जाना ।
नहीं मां, मुझे नहीं कराना ये सब । आपको तो पता हैं ना, मुझे ये सब कराने का मन बिल्कुल भी नहीं हैं- प्रिया बोली
अरे नहीं-नहीं क्या लगा रखा हैं । मैं चलूंगी तुम्हारे साथ पार्लर, यदि जाने का मन नहीं हैं तो घर पर भी बुला सकते हैं, ब्यूटीशियन को- रिया बोली
जैसा ठीक समझों, तुम तीनों मिलकर डिसाइड कर लेना, रिया तुमको ही प्रिया के ये सारे काम संभालने हैं बेटा – चाची बोली
जी चाची, आप चिंता मत कीजिए, मैं और यशी सब संभाल लेंगे ।
नाश्ता करके थोड़ा आराम करने के बाद रिया बोली- चाची, आप मुझे प्रिया की साडि़यों के मेचिंग के ब्लाउज दे दीजिए, मैं और यशी बाज़ार जाकर मेचिंग चूडि़या, बिंदी वगैरे ले आयेंगे ।
चाची और प्रिया उसकी साडि़यां लेने चले गये ।
प्रिया पूरे घर में घूम-घूमकर कुछ खोजने की कोशिश कर रही थी । पर पुरानी स्मृतियों के सारे चिन्ह चाचा-चाची ने निपुण कलाकार की तरह ठीक उसी तरह मिटा दिए थे जिस तरह एक कुशल चित्रकार अपनी पुरानी पेंटिंग को रंगीले खूबसूरत इंद्रधनुषी रंगों से सजाकर, पुराने दाग-धब्बों को मिटाकर, एकदम नए रूप में प्रस्तुत करता हैं । आश्चर्य की बात थी कि इतने कम समय में पूरे घर का इंटीरियर ही बदल गया । शायद समय के साथ खुद को ढाल लेने में ही समझदारी है । सच भी हैं, पुरानी और मन को टीस से भर देने वाली यादों को जितना जल्दी हो सकें, भुलाकर भविष्य का स्वागत करने के लिए खुद को तैयार करना ही जीवन हैं ।
रिया ! रिया ! बेटी कहां खोई हैं, कबसे आवाज़ लगा रही हॅू । ये ले बेटा, सारे ब्लाउज रख दिए हैं बैग में, तुमको और कुछ याद आये तो ले आना - कहकर चाची जल्दी से दरवाजे की ओर मुड गई । शायद दोनों की नज़रें मिलती तो दिल के पुराने जख्म हरे हो जाते । प्रिया और यशी की मौजूदगी में चाची और रिया दोनों ही माहौल को गमगीन नहीं करना चाहते थे । इसीलिए रिया ने भी चाची को नहीं रोका ।
यशी तैयार होकर आई और बोली- चलिए रिया दी, चलें बाज़ार हम दोनों
प्रिया भी चलेगी हमारे साथ, चलो प्रिया, जल्दी ही लौट आएंगे, क्यो चाची ले जायें ना प्रिया को भी
नहीं दीदी, मेरा जी नहीं कर रहा हैं जाने का- प्रिया बोली
अरे क्या करेगी घर पर, जाओ तुम भी रिया के साथ । लौटते में जो मन करें, खा लेना तुम तीनों, बड़े फंवारे के पास कमानिया गेट पर बडकुल की खोवे की ज़लेबिया मिलती हैं, खाकर आना, लेकर भी ।
अरे चल ना प्रिया, जल्दी चेंज कर आ ना – यशी बोली
तैयार होकर तीनों ऑटो से चूड़ी गली पहॅुची, वहां दुकान पर रिया और यशी प्रिया के लिए चूडि़यों का सेट बनवा रही थी, पर प्रिया निर्विकार सी पास रखी कुर्सी पर बैठी ना जानें किन खयालों में गुमसुम सी बैठी थी ।
अरे इधर आ ना प्रिया, देख ये धानी रंग की चूडि़या तेरे हाथों पर खूब सजेंगी- रिया बोली
दीदी, आप पसंद कर लीजिए, आप जो लेंगी, मैं पहन लूंगी – प्रिया बोली
अच्छा मुझे पहन के दिखा अपने हाथों में ये मेरी मनपसंद रानी कलर की चूडि़या - यशी बोली
यशी और प्रिया को खुश करने के लिए भारी मन से प्रिया हाथों में चूडि़यां पहनकर दिखाती हैं ।
छोटी-मोटी खरीददारी करके तीनों कमानिया गेट के पास बड़कुल की दुकान से एक किलो खोवे की जलेबिया पैक कराके लार्डगंज थाने के थोड़ा आगे आई सी एच में जाती हैं ।
क्या खाओगी प्रिया – रिया पूछती हैं
दी, कुछ भी मंगा लीजिए, वैसे मुझे ज्यादा भूख नहीं लगी हैं ।
देखों प्रिया, मैं चाचा-चाची के सामने तुमको कुछ नहीं कह सकती, पर तुम पर अपना अधिकार समझते हुए मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हॅू, यदि तुम बुरा ना मानो तो
- रिया बोलू
अरे दीदी, आप कैसी बात कर रही हैं, आप मेरे लिए बड़ी बहन से भी बढ़कर हो । बोलिये ना आप क्या कहना चाहती हो- प्रिया बाली
प्रिया, बीती ताही बिसार दें, ये हम सब जानते हैं, जो बात हमारे वश में नहीं हैं, उसे याद करके अपने भविष्य को खराब या दुखदायी करना कहां की समझदारी हैं । चाचा-चाची ने देखो कैसे दिल पर पत्थर रखकर खुद को संभाला हैं । बस और बस तुम्हारी खातिर, ये हम सब बहुत अच्छी तरह जानते हैं ।
हां दीदी, मैं जानती हॅू, पर क्या करूं, दिल पर जोर नहीं चलता मेरा...
चलाना पड़ेगा प्रिया, बस तुम खुश रहो, हंसती रहोगी तो चाचा चाची भी खुश रहेंगे ना ।
अपनी आंखों की कोरों से बहते आंसू पोंछने की नाकाम कोशिश करती, प्रिया बोली- दीदी, आज बस एक बार, बस एक बार रो लेने दो, रो लेने दो दीदी, बस एक बार... - प्रिया बोली
उसके हाथों को थाम यशी और रिया की आंखों से भी झरझर पानी बहने लगा ।
रिया ने जल्द ही खुद को संभाला फिर दोनो को वॉश बेसिन में मुंह धोकर आने को कहा और फिर मसाला डोसा, कटलेट और इडली आर्डर किया ।
खाते-खाते रिया बोली- अब हममे से किसी के भी चेहरे पर उदासी नहीं दिखनी चाहिए, सब खुश रहेंगे और शादी को भी एन्जॉय करेंगे । ओ के ?
ओ के ! - यशी बोली
हां दीदी, आप सही कह रही हैं, मैं भी खुश रहूंगी – प्रिया बोली
फिर कॉफी पीकर तीनों ऑटो से घर की ओर चल पड़ी ।
चाची हम सबको खुश देखकर बहुत प्रसन्न हो गई । दिखाओं मुझे तुम लोगों ने क्या – कया खरीदा । अरे वाह, क्या सुंदर चूडियां हैं, खूब फबेगी हमारी प्रिया पर । कहती हुई चाची प्रिया की बलैया लेने लगी ।
भावविभोर होकर प्रिया ने उनको गले ही लगा लिया । तीव्र गति से समुंदर में उठते सैलाब की तरह आंखों की कोरों के बाहर बह निकलने को आतुर आंसुओं को बड़ी ही मशक्कत से थामें रख प्रिया ने हंसते हुए मां के हाथों को अपने हाथों में थामते हुए कहा- मां मैं कितनी किस्मत वाली हॅू कि मुझे आप जैसी मां मिली,
ना बेटी, हम किस्मत वाले हैं कि तुम जैसी बेटी मिली हमें । चांद का टुकड़ा हैं हमारी प्रिया । यूं ही मुस्कुराती रहना बेटी, तुमको खुश देख दिल को तसल्ली मिलती हैं ।
बस भी करों ये मां बेटी का प्यार, हम दोनों भी हैं घर में – यशी रिया का हाथ थामकर मम्मी के पास आते हुए बोली ।
चारों मिलकर हंसी – ठिठोली करने लगी ।
शादी की तैयारियां जोरों पर थी, चाचा पंडित जी और पार्टी आदि की व्यवस्था में जुटे थे, वहीं चाची घर वालों को न्यौता देने, शादी की रस्मों आदि की तैयारियों में लगी थी । शादी के दो दिन पहले समित के आ जाने से चाचा जी को थोड़ी राहत महसूस हुई ।
बिना तामझाम, बिना लेन –देन, बिना दिखावे के बेहद सादगी से प्रिया और आजिंक्य की शादी संपन्न हुई, बेहद खूबसूरत जोड़ी लग रही थी दोनों की ।
विदाई के समय प्रिया के साथ-साथ सभी जार-जार रोते रहे । सबके दिल की हर एक धड़कन प्रिया और आजिंक्य के सुखी वैवाहिक जीवन के लिए ईश्वर से दुआएं मांग रही थी ।
प्रिया के विदा होते ही, रिया ने चाची को अंक में भर लिया और दोनों अपने-अपने दिल के गुबार को बाहर निकालने के लिए फूट-फूट कर रोनी लगी,
चाची आप सचमुच महान हो चाची । आपकी बराबरी दुनिया के कोई जन्मदाता भी नहीं कर सकते – रिया बोली
अरे कोई महान नहीं बेटी, हम दोनों से दिल से प्रिया को बेटी माना, यशी के बराबर ही प्यार किया हैं प्रिया- चाची बोली ।
अपने बेटे के न रहने के दर्द को सीने में दफ़न कर बहू को बेटी मानकर उसका कन्यादान करना एक सामान्य माता-पिता के बस की बात नहीं हैं चाची, आप दोनों के चरणों में ही चारों धाम हैं । सच प्रिया बहुत भाग्यवान हैं जिसे आप जैसे सांस-ससुर के रूप में मां-पिता मिले – रिया ने कहा
हमारा बेटा नहीं रहा, इसमें प्रिया का क्या दोष । फिर हमारी जिंदगी का क्या भरोसा, आज हैं कल नहीं । यशी की शादी की बात भी चल ही रही हैं । आज नहीं तो कल अपने घर चली जाएगी । यशी से भी ज्यादा जिम्मेदारी प्रिया की थी हमारे कंधे पर । फिर 26 साल के वयस में वैधव्य सहन करना उसके लिए कोई साधारण बात नहीं । हमने बहुत सोच-समझ के यह फैसला लिया और आजिंक्य जैसा अच्छा लड़का हमने उसके लिए जीवनसाथी के रूप में चुना और उसका कन्यादान कर दिया । हालांकि प्रिया को रजामंद करना बहुत कठिन था, जैसे-तैसे वह मानी । बस ईश्वर से यहीं प्रार्थना हैं कि प्रिया और आजिंक्य का जीवन खुाशियों से भरा रहें – दिल में उमड़ते घुमड़ते सैलाब को थाम चाची बोली ।
चाची, हम सबकी दुआएं प्रिया और आजिंक्य के साथ हैं, चाचा-चाची आपने समाज में आज एक नई पहल शुरू की हैं । क्या किसी ने सोचा भी होगा कि कोई अपनी ही बहू का कन्यादान भी कर सकता हैं, ‘’एक अनोखा कन्यादान’’ । आजीवन अंधकारमय और ‘’विधवा’’ जैसे अभिशप्त जीवन से मुक्ति दिलाने का नया आगाज़, बहू को भी एक स्त्री या बेटी समझने, उसके हिस्से का जीने का अधिकार और प्यार प्रदान करने की नई पहल । काश हर बेटे के माता-पिता अपनी बहू के प्रति ऐसा ही दृष्टिकोण बनाने की कोशिश करें, कब आएगा समाज में ऐसा बदलाव, कब जागेगी चेतना कब ? कब ? आखिर कब...?