सेफ्टी वाल्व
सेफ्टी वाल्व
प्रेशर कूकर गैस पर चढ़ा कर अनु पति अविनाश पर बरस पड़ी।
"अब तो तुम्हारी शक्ल देख कर भी गुस्सा आता है, आखिर हो तो उन्हीं का खून। किस मनहूस घड़ी में तुम मेरी सीढ़ी चढ़े।" कूकर के तापमान के साथ उसका पारा भी चढ़ता जा रहा था।
"मैं तो हर रिश्ते में ठगी गयी। सबने मेरा इस्तेमाल ही किया। क्या माँ-बाप, क्या सास-ससुर, क्या भैया-भाभी और ननद नंदोई जी ने तो बंटाधार ही कर दिया, चुगली कर कर के घर से ही निकलवा दिया और रही-सही कसर तुमने घर छोड़ कर पूरी कर दी, कोई तकाज़ा भी नहीं किया, जो उन्होंने बाद में ठिकाने लगा दिया।"
अविनाश ने टालते हुए कहा "अब जब हमने सब कुछ अपने दम पर बना लिया है तो क्यों पुराने गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो।"
"मुर्दे पुराने हैं तो क्या हुआ, ज़ख्म तो हरे हैं, अपने घर वालों के खिलाफ तो कुछ सुन ही नहीं सकते न, सही है। मैं तुम्हारे लिए अपना खून भी बहा दूं तो क्या हुआ? मैं तो गैर हूँ न, घुटना तो पेट की तरफ ही मुड़ेगा न।" अनु ने फिर कुरेदा।
पहली और दूसरी की तरह इधर तीसरी बार भी सीटी बजने पर सेफ्टी वाल्व से निकल रही भाप से ढक्कन कमर हिला-हिला कर नाच रहा था फिर बैठ जा रहा था, जैसे वो अवांछित वाष्प के निकल जाने से खुद की और कूकर की सलामती के लिए प्रसन्न तो था मगर डरा भी हुआ था। गैस बंद कर दी गयी।
"बस कूकर जरा ठंडा हो जाने दो, फिर खाना लगाती हूँ।" इस बार अनु की आवाज़ में कुछ ठंडक लगी।
अविनाश को लगा जैसे वो स्वयं इन वाष्परूपी ज़ख्मों के ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा हुआ एक ढक्कन है, अगर वो नाच सकता है तो भड़ास निकलते वक्त मैं क्यों नहीं। भोजन के पश्चात वो भी कमर हिलाते हुए बाय कह कर निकल लिया।