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मरता ज़मीर

मरता ज़मीर

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इन्सानियत मरती जा रही है, गरीब हो या अमीर। ऐसा नहीं है कि गुनाह शहर में होते हैं...शर्मसार करने की घटना जो मन से जा ही नहीं रही...

ये कहानी एक कस्बे की है जहाँ एक परिवार में रमेश जी अपनी पत्नी और अपने दो बेटों के साथ रहते थे। रमेश जी अपनी सरकारी नौकरी में खुश थे। बड़े प्यार से बच्चों का पालन पोषण करते थे, ना उन्हें ज्यादा की इच्छा थी। बस खुशी से गुजर बसर हो रहा था। बेटे बड़े हो गये। पढ़ने से जी चुराते। रमेश जी और उनकी पत्नी हमेशा समझाते पर दोनों पर कोई असर नहीं था। बड़े होने पर रमेश जी ने जैसै तैसै दोनों बेटों का विवाह कर दिया। दोनों सोहन और मुकेश कुछ नहीं करते थे। बस घर से ही रूपये लेते, इधर-उधर उड़ा देते। रमेश जी से अब सारी जिम्मेदारी उठानी मुश्किल हो गयी पर बेटों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता। बहुएँ भी परेशान थी पर उनके पति कुछ सुनने को तैयार नहीं थे।

बेटे, माँ-बाबा को जवाब देने लगे थे। रमेश जी भी थकहार कर चुप होने लगे।

आस-पड़ोस भी दुखी हो जाता बच्चों को देखकर। रमेश जी और उनकी पत्नी का व्यवहार से सब खुश रहते।

अब सबकी जिम्मेदारी उठानी अपने तनख्वाह मे गुजर नहीं हो रही थी। फिर बेटों से मन भी हटने लगा था। कोई इज्जत नहीं करते थे। अब रमेश जी के रिटायरमेन्ट का समय भी आने लगा था।

रमेश जी बडे़ बेटे को जोर देने लगे नौकरी के लिये। रूपये कम पड़ते थे। उन्होंने अपने दोनों बेटों को बहुत समझाया कि अब उनका रिटायरमेंट पास है अब घर की परिवार की सदस्य ज्यादा हो गए हैं तो उनकी कमाई से घर चलाना मुश्किल है। आगे भी परिवार बढ़ेगा इसके लिए दोनों बेटों को नौकरी करनी जरूरी है।

बेटों ने उनकी एक नहीं सुनी और वह पैसे छीन कर ले जाते थे और बाहर जाकर उड़ा देते थे पत्नियां भी उन दोनों की बहुत दुखी थी। छोटे बेटे की पत्नी काफी नाराज होकर और मायके वालों ने भी दबाव पड़ने लगा छोटा बेटे को समझ में आ गया और उसने नौकरी ढूंढ ली और वह अपनी पत्नी के साथ अलग रहने ले चला गया।रमेश जी और उनकी पत्नी को कोई मलाल नहीं था क्योंकि घर में बहुत तंगी थी और बच्चों ने इज्जत करनी छोड़ दी थी। वह चाहते थे कि अलग रहे। उनके पास थोडा़ बहुत बचता वो बीमारी में सारा पैसा खर्च हो जाता था। उनकी बीमारी के लिए भी पैसे कम पड़ जाते थे।

बड़ा बेटा सोहन कुछ सोचने समझने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था रमेश जी और उनकी पत्नी ने बड़ी बहू कविता को समझाया कि वह भी ऐसा ही करें जैसे छोटे बेटे की बहू ने दबाव डालकर है पर कविता की बात सुनने को सोहन बिल्कुल तैयार नहीं था। आखिर उसने उन्हें सोहन को छोड़ने का निश्चय कर लिया थक हारकर सोहन अपने दोस्त के पास पहुँचा। दोस्त के पापा और सोहन के पापा एक ही दफ्तर में काम करते थे। पिछले साल ही उनका स्वर्गवास हो गया था। सोहन ने अपना हाल अपने दोस्त को बताया कि घर में झगड़े बढ़ते जा रहे हैं। उसको कुछ बहुत जल्दी ही नौकरी चाहिए। दोस्त बचपन का था तो उसने जो बताया (आपको वह पढ़ कर आंखों में शर्म महसूस हो जाएगी पर इंसानियत गिर गई है हाल फिलहाल में यह घटना सामने आई)

दोस्त ने उसको बताया कि उसकी पिता का अगले साल रिटायरमेंट उसके बाद उनको पेंशन मिलेगी जो कि दोनों भाइयों में बँट जाएगी अगर उनका स्वर्गवास हो जाता है तो वह नौकरी उसको मिल जाएगी यह सुनकर सोहन थोड़ा चौंक गया और उसने पूछा क्या अंकल को और कह कर रुक गया।

दोस्त ने कहा कि वह बूढ़े हो गए थे और उन्हें जाना ही था ।यह सोचकर सोहन वहां से उठकर और घर आ गया और उसने अपनी पत्नी कविता को यह सब बातें बताई। कविता का गुस्से से चेहरा लाल हो गया और वह उसके दोस्त को बहुत बुरा भला कहने लगी और उसने चेतावनी दी सोहन को कि यह ख्याल अपने दिमाग में भी ना आए और वह कह कर अपने काम करने चली।

सोहन के दिमाग में दोस्त ने इस कदर जहर दिया था कि वह रात को 2:00 बजे अपने पिता के पास चाकू लेकर पहुंचा और जैसे ही वह कमरे में पहुंचा तभी रोशनी हो गई और देखा तो उसकी पत्नी कविता पुलिस के साथ खड़ी थी उसने पहले ही पुलिस को बुला लिया था और रोशनी के चलते ही सोहन की माता पिता रमेश जी और उनकी पत्नी उठ बैठे और हाथ में चाकू लेकर देख अपने बच्चे को चौंंक और खूब रोने लगे। जब कविता ने उनको सारी घटना बताई तो उनका यकीन कर पाना अपने बच्चे पर बहुत ही मुश्किल हो रहा था। उन्होंने रोते हुए कहा कि लालच इस तरह सोहन पर हावी हो जाएगा कि वह आज अपने पिता को ही मारने पहुँच गया केवल सरकारी नौकरी के लालच में। कविता ने कहा कि वह अपने सास-ससुर या अपने मायके में रहना पसंद करेगी पर ऐसे ऐसी सोच वाले जो अपने पिता को ही मारने चले थे उनके साथ 1 दिन भी नहीं बता सकती। पुलिस ने सोहन.और उसके दोस्त को पकड़ लिया और उन्हें जेल में डाल दिया उनके ऊपर केस चला।

लेकिन यहां यह बात खत्म नहीं होती यहांँ यह बात दिमाग को सोचने पर मजबूर कर देती है। इंसानियत कहां चली गई जो मां बाप को मारने पर उतारू हो जाते हैं बच्चे। खुद कुछ करना नहीं चाहते। मां बाप की जमीन, जायदाद उनके पैसे पर निगाह रखी रहती है। उनका पैसा उनका है वह अपनी बीमारी हारी में जब भी उन्हें जरूरत पड़ेगी तो उसका प्रयोग करें पर बच्चे आजकल बहुत लालची हो गए हैं। इंसानियत मर गई है।


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