भीख़
भीख़
शहर के एक इलाके में एक प्राइवेट फर्म था ! बहुधा कर्मचारी काम करते थे उस कंपनी में ! उसी ऑफिस के बाहर ही एक चाय का टपरा था जहाँ उस कंपनी का हर कर्मचारी आकर न केवल चाय का आस्वादन करता था अपितु निंदा-रस का भी मज़ा लेते थे ! उसी फर्म के बाहर ही एक भिखारी भी बैठा करता था जिसका जीवनयापन उस कम्पनी के कर्मचारियों से एवं अन्य लोगों की भीख से चलता था ! उन्हीं कर्मचारियों में से एक कर्मचारी जो था बहुत ही अकड़ा हुआ था नहीं भाई मांड के पानी में नहीं डुबाया था उसे वो अपने बॉस लोगों का काफी मुँह-लगा था तो उसमें वही अहम् था जो नेता के चमचे में नेता जी के कारण होता है !
ख़ैर उस अकड़चंद का रोज़ाना का एक ही नियम था और वो था उस भिखारी को प्रताड़ित करना ! वो उसे "फुकरा", "कामचोर", "करम-फूटा", इत्यादि कहकर सम्बोधित करता था परन्तु वो भिखारी चित्त-प्रसन्न व्यक्ति था जिसे इन फिकरों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था !
आज इस कंपनी के कर्मचारियों का वेतन-वृद्धि एवं पदोन्नति का दिन था और उस गर्वोन्मत्त व्यक्ति को यकीन था कि बरसों से अपने वरिष्ठों की जो उसने चाटुकारिता की, जिसके कारण उसने कई छोटी-मोटी वेतनवृद्धि और पदोन्नतियां पायीं थीं, उसी के परिणामस्वरूप जिस विभाग में वो काम करता था उसे उसका विभागाध्यक्ष बनने का मौक़ा मिलेगा !
हर शख़्स भी इसी यक़ीन में था कि उनकी अब शामत आने वाली है क्यूँकि विभागाध्यक्ष ये "मैनेजमेंट का चमचा" बनेगा और मज़ाक-मज़ाक में की गयी बातें अब नीचे से ऊपर तक बेधड़क जाएगी !
इतने में सभी कर्मचारियों के संगणकों (कम्प्यूटरों) पे एक आणविक-पत्र (ई-मेल) आया और उसमें व्यक्तियों को विभिन्न पदों पे सूचीबद्ध किया गया था ! विभाग के लोगों ने जब अपने विभागाध्यक्ष का नाम पढ़ा तो उनके अंदर का "चमचे का मालिक बनने वाला" भय वैसे ही लगा जैसे छोटे बच्चे को भयभीत करने के लिए "बाबा आ जाएगा" का भय दिखाया जाता है ! सूची में विभागाध्यक्ष "चमचा" नहीं अपितु एक योग्य व्यक्ति को बनाया गया था !
अब उसका गर्व वैसे ही टूट चुका था जैसे ही जान-सामान्य के समक्ष एक राजनैतिक पार्टी द्वारा दिखाया गया अच्छे दिनों का स्वप्न ! वो अब ज़मीन पे आ चुका था, उसे अब अपना भविष्य वैसे ही अंधकारमय दिख रहा था जैसे १५० वर्ष पुरानी भारत की एक राजनैतिक पार्टी को लग रहा है ! उसे अपने पीछे वैसे ही ठहाके सुनायी दिए जैसे एक शहज़ादे को अपने पीठ के पीछे अपने ही पार्टी के लोगों से सुनायी देते हैं !
वो अपना सिर पकड़े ऑफिस के बाहर जाकर बैठ गया और जैसे ही बगल में देखा तो वही भिखारी बैठा हुआ था जिसे वो हिक़ारता था ! आज उसे लग रहा था कि इस भिखारी को तो भीख मिल जाती हो उसे चाहकर भी नहीं मिली ! वो भिखारी ख़ुश था और वो दुखी !