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अम्मा

अम्मा

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बूढ़ी देह, हल्की झुकी कमर, गौर वर्ण, मध्यम कद ! आज भी खूबसूरती की मिसाल !

"हाय अम्मा तुम कितनी सुन्दर हो आज भी !" रूपाली अम्मा के गले झूल कर कहती।

"चल हट मुई ! अब कहाँ मैं सुन्दर रही !"

अम्मा पीछे धकेलते हुए मुस्करा कर जवाब देती।

"सच्ची अम्मा ! अपना गोरा रंग मुझे दे दो !"

रूपाली कस कर अम्मा को पकड़कर रीस से कहती।

"तू जवानी में देखती मुझे !" कहते-कहते अम्मा सचमुच कहीं पीछे चली गई जवानी के दिनों में। आँखों में एक चमक सी कौंधी और यकायक लुप्त ही गई।

"बड़े काजू बादाम खाते थे हम ! तेरे दादा की दुकान पर पठान आया करते ! मुठठी भर भर मेवे धर जाते बच्चों के हाथों पर !" अम्मा खोई सी बोली।

"मुठठी भर-भर !" रूपाली की आँखे आश्चर्य से फैल गई।

"हाँ और नहीं तो क्या !" अम्मा अपने चिर परिचित अंदाज में बोली।

"इतना सस्ता जमाना रहा होगा ना तब ! अच्छा अम्मा उस समय सोना क्या भाव रहा होगा ?"

"पचास रुपए तोला !" अम्मा ने सिर पर दुपट्टा ठीक करते हुए कहा।

"बसss !" आँखे फाड़े रूपाली के मुँह से निकला।

"और नहीं तो क्या !" फिर वही खूबसूरत अंदाज में जवाब आया !"

तो हमारे लिये क्यूँ न ढेर सा खरीद कर रख लिया !"

रूपाली ने अम्मा की ठोड़ी अपनी ओर घुमाते हुए कहा। "चल मर जाणी ! इत्ता पैसा थोड़े होता था हमारे पास। शुकर शुकर गुजारा भर होता था बस !" आँखे तरेर कर अम्मा ने घूर कर ऐसे देखा मानो कोई बम सिराहने रख दिया हो उनके।

"हाय अम्मा ये तो बड़ी नाइंसाफी की बात हुई !" नाटकीय अंदाज में रूपाली ने मुँह बिचकाते हुए कहा तो अम्मा बोली- "सोने के नाम पर मेरे खुद के पास एक कोका ही तो है बस !"

"शायद अनजाने ही अम्मा के मर्म को छू लिया मैनें !" रूपाली ने मन ही मन सोचा और झट बात का रुख मोड़ते हुए बोली- "और वो रजाई ! जो तुम सीने से लगाये रहती हो हरदम ! वो कितनी पुरानी है !"

कितनी पुरानी क्या ! मेरे दहेज की ही तो है !"

अम्मा की आँखों में यादों के सुर्ख डोरे तैर गये हो जैसे !

"दहेज की !" रूपाली अचकचा कर हिसाब लगने लगी- यानी कितनी पुरानी !

"हाँ नही तो क्या !" वही लहजा फिर से हवा में लहराया।

"अम्मा ! सच बोलो तुम्हारी उम्र कितनी होगी अब !"

सवालों के जवाब ढूंढती सी रूपाली ने पूछा तो अम्मा ने झट जवाब दिया- "75 साल !"

"ओ होs ! वो तो तुम पिछले बीसियों सालों से यही कहती आ रही हो !" रूपाली ने सिर पकड़ कर हँसते हुए कहा तो अम्मा ने डपट दिया- "चल नामुराद !"

"कम से कम सौ बरस की तो होगी अब ! देखो काले बाल भी आने लगे फिर से ! सुना है काले बाल और दाँत फिर से आने लगते हैं सौ की उम्र के बाद !"

आज रूपाली भी अभिमन्यु के चक्र की तरह अच्छे से घेर कर बैठ गई अम्मा को पर अम्मा तो अम्मा है ना ! उन्हें पता है कैसे निकलना है घेरे से ! "अब बस कर वेल्ली बातें ! जा मेरे लिये खाना ले आ, भूख लग आई !"

"अच्छा बोलो ! आज क्या खाओगी मेरी प्यारी अम्मा !" लाड़ से रूपाली ने अम्मा के नर्म गालों को छूकर पूछा तो अम्मा ने भी उसी लाड़ से अपने पोपले मुख की ओर इशारा करते हुए कहा - "एक कटोरी गर्म मसाला तरी वाला और आधी रोटी ले आ ! तरी में डुबो डुबो के खाऊँगी।

मेरे दाँत अब साथ जो नहीं देते !"


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