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जिज्ञासा !

जिज्ञासा !

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बहुत देर तक समुंदर के किनारे बैठी रही। समय का पता न चला। चारों ओर देखी तो लगा लोग वापस जा रहे थे।

मैं भी उठकर चल पड़ी होस्टल की ओर। फासला इतना नहीं था तो दस मिनट में पहुंच गई अपनी होस्टल के कमरे। सरिता इंतजार कर रही थी बहुत उत्सुकता से। मैंने पूछा क्या बात है।

वो जल्दी जल्दी बोलने लगी, "अरे रेणु ! तू कहाँ गायब हो गई ? तेरे लिए साढ़े पांच बजे एक लड़का आया तुझे मिलने।"

धत्तेरी की ! तब मुझे याद आया ! कुछ दिन पहले घर से चिठ्ठी आई ये बताते हुए कि मुझे देखने एक लड़का आने वाला था आज के शाम को। वो बात कब की उड़ गई दिल और दिमाग से ! वैसे शादी उतनी जल्दबाजी में करना भी नहीं मुझे !

मैंने आराम से कह दिया, "हाँ, भूल गई। कोई बात नहीं।"

"कोई बात नहीं ! वो एक घंटा बैठा रहा तेरे लिए इंतजार करते-करते। सात बजे की गाड़ी पकड़ना था तो चला गया बेचारा।"

"इसमें क्या ? मुझे क्या फर्क पड़ता ? अब चलोगी या नही डाइनिंग हॉल ? बड़ी भूख लग रही है।" कहकर आगे चलने वाली थी तो सरिता ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया-

"अरे यार, सुन तो ले जरा। इतना खूबसूरत है लड़का ! इंजीनियर। बीस एकड़ जमीन है। गाँव में तीन मंजिल का मकान है। उसकी दीदी शादी के बाद अमेरिका चली गई। उसके पति डॉक्टर है। उसको दो बच्चे हैं। इस लड़के की माँ बचपन में संगीत सीखाती थी। बाप पंचायत प्रेसीडेंट है। इसके एक रिश्तेदार एम. एल. ए. है। इसके मामा की कपड़े की बड़ी दुकान है हैदराबाद में।"

सुनते-सुनते मैं हैरान होने लगी। सोचने लगी कि इस बीस साल की लड़की में कितनी जिज्ञासा और शक्ति है इतनी खबर रखने की ! मुझे पता है ये लोगों के बारे में पूरी तरह पता रखने की बहुत दिलचस्प है मगर बिल्कुल एक अजनबी से इतनी जानकारी ! हँसी आ रही थी। बहुत मुश्किल से रोक पाई।

सरिता ने फिर शुरू किया अपना भाषण, उसी उत्सुकता से, उसी आदमी के बारे में !

"हाँ, मैं कहना भूली गई रेणु ! वो कह रहा था उसको हरा रंग पसंद है। मीठी चीज बहुत पसंद है। आइसक्रीम भी बहुत खाता है। वो कह रहा था ! काफी गोरा रंग का है। बहुत सुंदर आवाज और क्या खूबसूरत आँखे रेणु ! एकदम हीरो लग रहा था ! सुधाकर उसका नाम !"

पूरी तरह मग्न होकर कहती जा रही थी। मुझे और हँसी आई ! क्या बेवकूफी है यह, या नादानी ! मगर बहुत मनोरंजन सा भी लगा। बिल्कुल !

पता नही, अंत में ऐसा क्यों कहने को मन लगा, मगर कह ही दिया, "अच्छा सरिता, एक काम करें ! तुम ही उस से शादी क्यों नही करती ?"

सरिता चौंक गई और बड़ी-बड़ी आँखों से देखने लगी। उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया !

"अब चलो, खाना खाए।" बस, इतना कह कर मैं आगे बढ़ने लगी।


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