स्टेटस्
स्टेटस्
समय बदल रहा है और बदल रहा है जिन्दगी बिताने के तरीके। लोग बदलते वक्त के अनुसार अपने जीवन की शैली भी बदल रहे हैं।
एक समय था जब बच्चे धूप में अपने दोस्तों के साथ खेलते थे और वो ही उनको खुशी दे रहा था। गांव में फुटबॉल, क्रिकेट खेलते थे।
पर अब गांव तो सपना बन गया है। पिता, माता को अपनी नौकरी के लिए ना जाने कहाँ कहाँ रहना पड़ता है।
रमेश बाबू उनके परिवार के साथ बाहार रहते हैं। परिवार मतलब पत्नी और दो बच्चे। एक बेटा और एक बेटी।
रमेश बाबू और उनके पत्नी दोनों उच्च पदस्थ कर्मचारी है। घर के सारे काम दो नौकर करते हैं। एक खाना पकाने के काम नाम है मीनु और गोपीचंद घर के अन्य सब काम करता है।
बेटा सोहम् छोटा है ओर बेटी रानु बड़ी है।
एक दिन ४ बज गए थे, फिर भी सोहम् घर नहीं पहुंचा था तो मीनु को फिक्र होने लगी थी। थोड़ी देर बाद रमेश बाबू ओर उनके पत्नी नीलिमा जी घर पहुँचे।
नीलिमा - मीनू चाय लाओ। बड़ी थकान लग रही है।
रमेश - हाँ मेरे लिए भी।
मीनू - साहाब जी सोहम् बाबा अभी तक घर नहीं पहुँचे हैं।
रमेश - अरे वो आ जाएगा। गोपीचंद कार लेकर जाओ तो। देखो कहाँ गया वो।
गोपीचंद - हाँ जी साहाब जी।
गोपीचंद कार लेके गया लेकिन बाबा को स्कूल के बाहर ना पाकर वापस चला आया।
गोपीचंद - साहब जी माफ करे। बाबा तो नहीं मिलें मुझे।
तभी सोहम् घर पर आया।
रमेश - सोहम् कहाँ था अब तक घर आने का कोई वक्त भी होता है कि नहीं।
सोहम् - दोस्तों के साथ खेल रहा था।
नीलिमा - कहाँ ......?
सोहम् - वो पास में है ना, एक बार बताया तो था आपको।
नीलिमा - वो रिक्शा वाला .....?
सोहम् हाँ।
रमेश - तुम्हारी अक्ल घास चरने गई है क्या ......? अपने स्टेटस् का कुछ तो ख्याल करो।
विडियो गेम से लेकर सब कुछ तो लाकर दिया है तुम्हें। फिर भी उस बस्ती में जाकर खेलने की क्या जरूरत थी ......?
ओर कुछ चाहिए तो बताओ पर आज के बाद कभी भी उस बस्ती में मत जाना।
मीनू - साहब जी छोड़ दीजिए ना। बाबा तुम आओ तो। खाना खा लो। भूख लगी होगी ।
नीलिमा - हाँ छोड़ दो रमेश ।
सोहम् रुम् में जाकर कपड़े बदला। उसके बाद आ कर बाहर बैठा। मीनू दी खाना लाओ।
कुछ देर बाद खाना खाकर रुम में चला गया।
सोहम् - दीदी तुमने कभी सोचा है ...?
रानु - क्या ..... ?
सोहम् - अगर हम गरीब होते तो कितना अच्छा होता। पता है वो लोग बस्ती में रहते हैं पर खाना सब मिलकर खाते हैं, सब मिलकर कितने हँसी मजाक करते हैं।
और एक हमारा घर है जहाँ --पापा-मम्मा को फुरसत ही नहीं है, हमसे बात करने के लिए।
रानु - अरे ये तो सही है।
ऐसे हर रोज होने लगा। हर रोज सोहम् घर देर आता है फिर डाँट पड़ते हैं।
ऐसे में वो तंग अगर एक दिन घर छोड़ कर चला गया।
एक चिठ्ठी लिखी थी कि यहाँ किसी को शायद मेरे जरूरत ही नहीं। हर वक्त बस स्टेटस् के बात होती है।
यहाँ मत खेलों, स्टेटस् का क्या होगा .... ?
यहाँ मत खेलों, स्टेटस् बिगड़ जाएगा ....।
इसके साथ बात मत करो, उसके साथ बात मत करो।
आखिर ये घर है कि स्टेटस् की दुकान ......?
यहाँ ना पापा को वक्त है ना मम्मा को। जब भी कुछ चाहिए तो मीनू दीदी।
सिर्फ खिलौने से ही मन नहीं भरता है।
इसलिए में जा रहा हूँ।
चीट्ठी पढ़ने के बाद रमेश ओर नीलिमा सच में समझने लगे थे कि वो इतने व्यस्त रहते की अपनी बच्चों को ही देख नहीं रहे हैं।
दोनों निकल पड़े सोहम् को ढूंढने के लिए।
सीधे जा कर बस्ती में पहुंचे।
सोहम्, सोहम्, सोहम्।
कहाँ है बच्चा .....?
तभी उसके दोस्त सोहम् लेकर आया।
सोहम् - आपको कैसे पता चला में यहाँ हूँ ..।
नीलिमा -- हमारे मन ने ।क्योंकि हमारे गलती के अनुभव हो गया है हमें।
ये झूठी स्टेटस् के आड़ में हम इतने व्यस्त हो गये थे कि तुम्हारे लिए वक्त देने के बारे में भूल गये थे।
अब से भूल नहीं होगी।
चल बेटा घर चल ।
सोहम् घर चला गया।