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चर्चा: मास्टर और मार्गारीटा -4

चर्चा: मास्टर और मार्गारीटा -4

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हम कह सकते हैं कि अध्याय 4 से मॉस्को में शैतान की गतिविधियों का आरंभ हो जाता है।

जैसे ही बेज़्दोम्नी ने पहली चीख सुनी, वह निर्गम द्वार की ओर भागा और उसने पत्रियार्शी पार्क की जाली के पास बेर्लिओज़ के कटे हुए सिर को लुढ़कते हुए देखा।उसे मानो पक्षाघात जैसी कोई चीज़ हो गई और वह वहीं पड़ी एक बेंच पर लुढ़क गया। वह हिल नहीं पा रहा था। जैसे ही पहली चीखें कुछ थमीं, उसने निकट ही दो औरतों को इस दुर्घटना के बारे में बात करते सुना-

अप्रत्याशित रूप से दो औरतों की उसके सामने भिड़ंत हो गई और उनमें से एक, तीखी नाक वाली और सीधे बालों वाली, कवि के बिल्कुल कान में दूसरी औरत पर चिल्लाई, “अन्नूश्का, हमारी अन्नूश्का ! सादोवाया सड़क से ! यह उसी का काम है ! उसने किराने की दुकान से सूरजमुखी का तेल खरीदा, एक लिटर, मगर शीशी घुमौने दरवाज़े से टकराकर टूट गई, पूरी स्कर्ट तेल में भीग गई।ओफ, कितना चिल्ला रही थी, चिल्लाए जा रही थी। और वह गरीब, शायद उस तेल पर फिसलकर गिर पड़ा और रेल की पटरियों पर जा गिरा।

बेज़्दोम्नी के दिमाग में मानो घण्टियाँ बजने लगीं ! अन्नूश्का ! सूरजमुखी का तेल ! मीटिंग ! पोन्ती पिलात ! प्रोफेसर !

 औरत की इस उत्तेजित चिल्लाहट में से इवान निकोलायेविच का अस्त-व्यस्त दिमाग सिर्फ एक शब्द पकड़ पाया :“अन्नूश्का।” “अन्नूश्का।अन्नूश्का ?” वह अपने आप से बड़बड़ाया, और उन्मादित होकर इधर-उधर देखने लगा, कुछ याद आ रहा है, क्या है ? क्या है ?।

 ‘अन्नूश्का’ शब्द के साथ ‘सूरजमुखी का तेल’ शब्द भी जुड़ गए, और फिर न जाने क्यों पोंती पिलात। पिलात को उसने दिमाग से झटक दिया और ‘अन्नूश्का’ से प्रारम्भ हुई कड़ी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगा। यह कड़ी अतिशीघ्र पूर्ण हो गई और उसका दूसरा सिरा पागल प्रोफेसर से जा मिला।

इवान बेज़्दोम्नी इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि प्रोफेसर को बेर्लिओज़ की मृत्यु के बारे में सब कुछ पता था।।शायद उसीने तो इस दुर्घटना की प्लानिंग नहीं की ! ! ? ?ओह, गलती हो गई ! उसने ठीक ही कहा था, कि मीटिंग होगी ही नहीं, क्योंकि अन्नूश्का ने तेल गिरा दिया है। और देखिए, अब मीटिंग हो ही नहीं सकती ! यह तो कुछ भी नहीं : उसने साफ-साफ कहा था कि एक औरत बेर्लिओज़ का गला काटेगी ! हाँ, हाँ ! ट्राम औरत ही तो चला रही थी ! यह सब क्या है ? आँ ?

इस बात में कोई सन्देह नहीं रह गया कि वह रहस्यमय परामर्शदाता बेर्लिओज़ की हृदयविदारक मृत्यु का पूरा विवरण अच्छी तरह जानता था। कवि के दिमाग में दो विचार कौंध गए। पहला : वह बेवकूफ़ कदापि नहीं ! यह सब बकवास है !” और दूसरा : कहीं यह सब उसी का पूर्वनियोजित षड्यंत्र तो नहीं था !”मगर किस तरह !

 “कोई बात नहीं ! यह हम जान लेंगे !”

 वह उस बेंच की ओर आया जिस पर कुछ देर पहले प्रोफेसर के साथ बैठा था, और उसने उसी लम्बे, पतले, चौखाने की कमीज़ वाले आदमी को प्रोफेसर के साथ बैठे देखा, जिसने बेर्लिओज़ को बाहर का रास्ता बताया था। अब उसने ऐनक पहन रखी थी जिसका एक काँच टूटा हुआ था ! 

कॉयर मास्टर, चौख़ाने वाला लम्बू, प्रोफेसर की बगल में उस जगह पर बैठा था जहाँ कुछ देर पहले इवान निकोलायेविच बैठा था। अब उसकी नाक पर अनावश्यक चश्मा था जिसकी एक आँख में काँच ही नहीं था और दूसरा तड़का हुआ था। इसके कारण चौख़ाने वाले महाशय अब और ज़्तादा घिनौने प्रतीत हो रहे थे। उससे भी ज़्यादा, जब उन्होंने बेर्लिओज़ को रेल की पटरियों का रास्ता दिखाया था।

ठण्डे पड़ते हुए दिल से इवान प्रोफेसर के पास पहुँचा और उसके चेहरे को ध्यान से देखने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस चेहरे पर पागलपन का कोई लक्षण न पहले था और न अब है।

 “बताइए, सही-सही, आप कौन हैं” इवान ने डूबती हुई आवाज़ में पूछा।

विदेशी मुड़ा और उसने कवि की ओर ऐसी दृष्टि डाली मानो वह उसे पहली बार देख रहा हो। फिर बुरा-सा मुँह बनाकर बोला, “समझा नई।रूसी बोलना।” 

“ये समझ नहीं रहे हैं।” उसके पास ही बैठे कॉयर मास्टर ने बीच में टपकते हुए कहा, हालाँकि उससे किसी ने भी प्रोफेसर के शब्दों को समझाने के लिए नहीं कहा था।

 “बनिए मत !” इवान ने गरजते हुए कहा और उसे अपने तालू में ठण्डक महसूस होने लगी, “अभी-अभी तो आप इतनी अच्छी तरह से रूसी में बातें कर रहे थे। आप न तो जर्मन हैं और न ही प्रोफेसर ! आप एक कातिल और जासूस हैं ! दस्तावेज़ !” तैश में आकर इवान चिल्ला पड़ा।

रहस्यमय प्रोफेसर ने अपने टेढ़े मुँह को और भी टेढ़ा करके कन्धे उचकाए “महाशय !” गन्दा लम्बू फिर बीच में टपक पड़ा, “आप क्यों पर्यटक को तंग कर रहे हैं ? इसके लिए आपको कड़ी सज़ा मिलेगी !” और उस सन्देहास्पद प्रोफेसर ने भोला-सा चेहरा बनाया और मुड़कर इवान से दूर जाने लगा। इवान को लगा जैसे वह अपना संयम खो रहा है, लम्बी साँस लेकर वह लम्बू से बोला, “ऐ महाशय, इस अपराधी को पकड़ने में मेरी सहायता कीजिए ! आपको यह करना ही होगा।”लम्बू तेज़ी से उठा और कूदकर दहाड़ा, “कौन अपराधी ? कहाँ है ? विदेशी अपराधी ?” लम्बू की आँखें मानो खुशी से मटकने लगीं, “यह ? अगर यह अपराधी है, तो सबसे पहले हमें ज़ोर से चिल्लाना होगा : ‘सिपाही !’ वर्ना वह भाग जाएगा। चलो, एक साथ चिल्लाएँ। एकदम !” और लम्बू ने अपने जबड़े खोले।

परेशान इवान ने उस मसखरे लम्बू का कहना मानकर ज़ोर से आवाज़ लगाई ‘सिपाही !’ मगर लम्बू ने सिर्फ मुँह खोले रखा, कोई आवाज़ नहीं निकाली। इवान की अकेली, भर्राई हुई चीख का कोई ख़ास अच्छा परिणाम नहीं निकला। दो ख़ूबसूरत-सी लड़कियों का ध्यान अलबत्ता उसने आकर्षित किया, और इवान ने उनके मुख से सुना, “शराबी !" 

“तो तुम उसके साथ मिले हुए हो ?” इवान तैश में आकर चिल्लाया, “क्या तुम मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो ? छोड़ो मुझे," इवान दाहिनी ओर झुका और लम्बू भी दाहिनी ओर, इवान बाएँ तो उस दुष्ट ने भी वैसा ही किया।

 “तुम ज़बर्दस्ती मेरे पैरों में क्यों अड़मड़ा रहे हो ?” जानवरों की तरह चिल्लाया इवान, “ठहरो, मैं तुम्हें ही पुलिस के हाथों में दे देता हूँ," इवान ने उस दुरात्मा को कालर से पकड़ने की कोशिश की मगर वह झोंक में आगे चला गया। उसकी पकड़ में कुछ भी नहीं आया। लम्बू मानो पृथ्वी के भीतर गड़प हो गया। इवान कराह उठा, उसने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई और कुछ दूरी पर घृणित विदेशी को पाया। वह पत्रियार्शी नुक्कड़ की ओर निकलते हुए दरवाज़े के पास पहुँच गया था। वह अकेला नहीं था, रहस्यमय और ख़तरनाक लम्बू भी उसके पास पहुँच गया था। इतना ही काफ़ी नहीं था : इस मण्डली में एक तीसरा भी था – न जाने कहाँ से टपक पड़ा एक बिल्ला। सूअर की तरह विशाल, कौवे या काजल की तरह काला, अति साहसी घुड़सवार की मूँछों जैसी मूँछों वाला। ये तीनों कुटिल पत्रियार्शी की तरफ जा रहे थे। बिल्ला अपने पिछले पैरों पर चल रहा था। यह व्यक्ति उपन्यास के महत्त्वपूर्ण पात्रों में से एक है।

 अब हम देखेंगे कि किस तरह इवान उनका पीछ करता है।

इवान इस त्रोयका का पीछा कर रहा है।प्रोफेसर, पतला लम्बू, और एक विशालकाय बिल्ला जो न जाने कब और कहाँ से आकर उनके साथ मिल गया था।

 इवान इन पापियों के पीछे लपका लेकिन वह समझ गया कि उन्हें पकड़ पाना असम्भव है।

तीनों कुटिल एक पल में नुक्कड़ पर पहुँचकर अगले ही पल स्पिरिदोनव में नज़र आए। चाहे जितनी तेज़ी से इवान अपनी रफ़्तार बढ़ा रहा था, मगर उनके बीच की दूरी कम नहीं हो रही थी। कवि समझ नहीं पाया कि कब वह स्पिरिदोनव रास्ते से निकीत्स्की दरवाज़े तक पहुँच गया। यहाँ आकर हालत और भी ख़राब हो गई। यहाँ बड़ी भीड़ थी। उनके धोखे में इवान किसी और व्यक्ति पर झपट पड़ा जिसके कारण उसे काफ़ी डाँट पड़ी। दुष्टों ने अब डाकुओं जैसी चाल चली – वे यहाँ-वहाँ तितर-बितर हो गए। लम्बू बड़ी सहजता से चलते-चलते अर्बात चौक की ओर जाती बस में चढ़ गया। इस तरह वह वहाँ से खिसक लिया। उनमें से एक को खो देने पर इवान ने बिल्ले पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। देखा, वह विचित्र बिल्ला ‘ए’ ट्राम-गाड़ी के फुटबोर्ड पर चढ़ गया और निर्लज्ज की भाँति धक्का मारकर एक चिल्लाती हुई औरत को अपने स्थान से हटाकर उसने डण्डे को पकड़ लिया, और महिला कण्डक्टर को उमस के कारण खुली खिड़की में से दस कोपेक का सिक्का देनेबिल्ले के ऐसे व्यवहार को देखकर इवान इतने सकते में आ गया कि पास ही एक किराने की दुकान से मानो वह चिपक गया और महिला कण्डक्टर का बर्ताव देख उसकी हालत पहले से भी ज़्यादा खस्ता हो गई।उसने बिल्ले की ओर सिर्फ देखा जो ट्राम में चढ़ा चला आ रहा था और क्रोध में काँपती हुई बोली, “बिल्लियाँ नहीं ! बिल्लियों के साथ नहीं ! नीचे उतरो, वर्ना पुलिस को बुलाऊँगी !”

आश्चर्य की बात यह थी कि न महिला कण्डक्टर को, न ही मुसाफिरों को वास्तविकता समझ में आ रही थी : बिल्ला ट्राम गाड़ी में घुस गया यह तो आधी ही विपदा वाली बात थी, विचित्र बात तो यह थी कि बिल्ला टिकिट के पैसे दे रहा था ! यह बिल्ला न केवल पैसे वाला बल्कि अनुशासनप्रिय भी प्रतीत हो रहा था। महिला कण्डक्टर की पहली ही चीख सुनकर उसने आगे बढ़ना बन्द कर दिया और फुटबोर्ड से उतरकर ट्राम के स्टॉप पर बैठ गया। वह अपनी मूँछों को इस दस कोपेक वाले सिक्के से साफ करता रहा, लेकिन जैसे ही कण्डक्टर के घंटी बजाते ही ट्राम चली, बिल्ले ने तत्क्षण वही किया, जो ट्राम से नीचे उतारा गया आदमी करता है, जिसे उसी ट्राम में जाना अत्यावश्यक होता है। बिल्ले ने ट्राम के तीनों डिब्बों को गुज़र जाने दिया। फिर आख़िरी डिब्बे की पिछली कमान पर कूदकर अपने पंजों से बाहर निकली हुई एक नली को पकड़ लिया और चल पड़ा ट्राम के साथ, इस तरह उसने पैसे भी बचा लिए।

कुछ छोटी-छोटी बातों की ओर ध्यान दीजिए।

बिल्ला ट्राम में घुसकर कण्डक्टर को टिकट के पैसे दे रहा है; कण्डक्टर ने सिर्फ इतना ही कहा कि बिल्लियों को ट्राम में सफर करने की इजाज़त नहीं है, मगर किसी ने भी।किसी ने भी इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया कि यह बिल्ला कण्डक्टर को पैसे दे रहा था !

प्रोफेसर का पीछा करते-करते इवान ने न जाने क्यों सोच लिया कि हो न हो प्रोफेसर बिल्डिंग नं। 13 के फ्लैट नं। 47 में है। यह एक ऐसी बिल्डिंग थी जो क्रांति से पहले कुलीन वर्ग के व्यक्ति की थी और जिसे क्रांति के बाद सार्वजनिक आवास में बदल दिया गया था। बिल्डिंग के भीतर की गई तोड़-फोड़, धूल, गन्दगी, आम-रसोईघर जिसमें ईसा की एक कागज़ की तस्वीर और एक मोमबत्ती लटक रही थी,।।गुसलखाने में साबुन के फेन में लिपटी नहाती हुई औरत जो गलती से भीतर घुस आए इवान को अपना प्रेमी समझ बैठी और उसे झिड़कते हुए बाहर जाने के लिए कहने लगी, क्योंकि उसके पति के घर लौटने का समय हो चुका था। सभी खिड़कियों से झाँकते एक से नारंगी शेड वाले लैम्प, एक ही तरह का संगीत, एक चिल्लाती हुई, गुस्से भरी आवाज़ जो ‘एव्गेनी अनेगिन’ से एक प्रेम गीत गा रही है (यह गुसैल, चीखती हुई आवाज़ उपन्यास में कई बार, अनेक जगहों पर सुनाई देती है !)।आपको 20 के दशक के मॉस्को के दर्शन हो जाते हैं !    फिर होती है एक दिलचस्प बात।

जब इवान यह सोचकर मॉस्को नदी में छलांग लगाता है कि प्रोफेसर उसीमें है।

 अत्यंत अल्प समय में ही इवान निकोलायेविच को मॉस्को नदी तक जाती हुई पत्थर की सीढ़ियों के पास देखा जा सकता था। इवान ने अपने कपड़ॆ उतार दिए और उन्हें एक भले से दाढ़ी वाले को थमा दिया। सफ़ेद ढीले-ढाले फटे कुरते में अपने मुड़े-तुड़े जूते के पास बैठा वह अपनी ही बनाई सिगरेट पी रहा था। हाथों को हिलाकर, जिससे कुछ ठण्डक महसूस हो, इवान एक पंछी की तरह पानी में घुस गया। पानी इतना ठंडा था कि उसकी साँस रुकने लगी। उसके दिमाग में यह ख़याल कौंधा कि शायद वह पानी की सतह पर कभी वापस लौट ही नहीं सकेगा। मगर वह उछलकर ऊपर आ गया और हाँफ़ते हुए और भय से गोल हो गई आँखों से इवान निकोलायेविच ने नदी किनारे पर लगे फानूसों की टेढ़ी-मेढ़ी, टूटी-फूटी रोशनी में पेट्रोल की गन्ध वाले पानी में तैरना आरंंभ किया। जब गीले बदन से इवान सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उस जगह पहुँचा, जहाँ उसने दाढ़ी वाले को अपने कपड़े थमाए थे, तो देखा कि उसके कपड़ों के साथ दाढ़ी वाला भी गायब है। ठीक उस जगह, जहाँ उसके कपड़े रखे थे, केवल धारियों वाला लम्बा कच्छा, फटा कुरता, मोमबत्ती, ईसा की प्रतिमा और दियासलाई की डिबिया पड़ी है।

क्षीण क्रोध से, दूर किसी को अपनी मुट्ठियों से धमकाते हुए, इवान ने वह सब उठा लिया। अब उसे दो प्रकार के विचारों ने परेशान करना शुरू किया : पहला यह कि उसका ‘मॉसोलित’ का पहचान-पत्र गायब हो गया था, जिसे वह कभी अपने से अलग नहीं करता था; और दूसरा यह कि इस अवस्था में वह कैसे बेरोकटोक मॉस्को की सड़कों पर घूम सकेगा ? ख़ैर, कच्छा तो है।किसी को इससे भला क्या मतलब हो सकता है, मगर कहीं कोई बाधा न खड़ी हो जाए।

उसने लम्बे कच्छे की मोरी से बटन तोड़ दिए, यह सोचकर कि ऐसा करने से कच्छा गर्मियों में पहनने वाली पैंट जैसा दिखने लगेगा, फिर उसने ईसा की प्रतिमा, मोमबत्ती और दियासलाई की डिबिया उठाई और अपने आप से यह कहते हुए चल पड़ा, ‘ग्रिबोयेदोव चलूँ ! इसमें कोई सन्देह नहीं, कि वह वहीं पर होगा।

’पानी बेहद ठण्डा था, नदी के पानी में आने जाने वाले स्टीमरों के कारण तेल बिखरा हुआ है, इवान के कपड़े चोरी हो जाते हैं, सिर्फ वह मोमबत्ती और ईसा की तस्वीर वहाँ छोड़ दी जाती है, और वह किसान, जिसे इवान ने अपने कपड़े थमाए थे, अपना ढीला ढाला कुर्ता और ऊँची-ऊँची पतलून वहाँ छोड़ जाता है। इवान के सामने इन कपड़ों को पहनने के अलावा कोई और चारा नहीं था। वह कमीज़ पर सामने की ओर पिन से ईसा की तस्वीर टाँक लेता है और दूसरे हाथ में मोमबत्ती पकड़ लेता है। इस वेशभूषा में वह चल पड़ता है ग्रिबोयेदोव भवन की ओर रहस्यमय प्रोफेसर की तलाश में।

क्या हम ऐसा समझ सकते हैं कि तेल मिश्रित पानी में नहाने के बाद इवान का शुद्धीकरण हो गया है ? उसने ईसा की तस्वीर को अपना लिया है, क्या उसका बाप्तिज़्मा हो गया है ? कुछ लोग इस बात पर विचार कर सकते हैं, मगर हम सिर्फ इस बात पर गौर करेंगे कि इवान की सोच में, उसके नज़रिए में परिवर्तन आ गया है। अब वह काफी चीज़ों को जानने लगता है जिन पर पहले उसका ध्यान नहीं जाता है, जिन्हें वह कोई महत्त्व नहीं देता था।

अगले अध्याय में मॉस्को के साहित्यिक जीवन के बारे में काफी कुछ जानकारी दी गई है।


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