डूबे हम उस समुन्दर मे इस कदर,
डूबे हम उस समुन्दर मे इस कदर,
डूबे हम उस समुन्दर मे इस कदर,
भूल गए हम
जीना,मरना,
अपनों को ,
अपने आपको...
वो रंगीन शामे,
वो दर्दभरी रातें...
कड़वाहट निगल कर
ज़िन्दगी का फर्जी लुत्फ़ उठाना
अच्छा लगता था...
गम भुलाने का इक बहाना था वो -
शायद...
होश जब आया,
तो अपने बिछड़ गए थे,
और हम शराबी बन चुके थे...
नस नस थी खून को प्यासी,
बुझा दी शराब ने जो...
रोम रोम मे था नशा उस जहर का,
न राह की खबर थी,
न कब्र का ठिकाना...
दिन रात,
रात दिन,
नशा ही नशा,
उस अमृत का...
न मिला नशा तो करते थे पिटाई,
या मांगते थे उधार...
दोस्त कहते, "रोको इस ज़ालिम को",
"प्यारी है, ज़िन्दगी तो न बनो ग़ुलाम इसके..."
हम न माने और चलते रहे
बेपता कब्र की ओर,
हमने .
बदलने की कोशिश की जरूर,
रहे नाकाम लेकिन...
दिल रो कर मांगता दुआ उस रब से,
"मुआफ कर तेरे बन्दे को, ऐ खुदा,
रहेम कर मेरे मौला...”
हुई रेहेम खुदा की हम पर,
भेजा इक ‘मसीहा’,
बदलने ज़िन्दगी हमारी...
घुमाई छड़ी ‘मसीहा’ ने,
इस कदर जादू की,
रूठ गयी शराब हमसे,
हुआ नाराज नशा हमसे,
और बदल गए हम,
शराबी से इंसान...