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हिम स्पर्श 54

हिम स्पर्श 54

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“स्वप्न क्या होते है? कैसे दिखते है? उनका रंग कैसा होता है? कहाँ से वह आते है? क्यों आते है? कहाँ चले जाते है? वह अपने साथ क्या लाते है? हम से वह क्या छीन ले जाते है? यह स्वप्न, जैसे कोई पहेली हो। स्वप्न होते है किन्तु देखे नहीं जाते। उसे देखना हो तो बंद कर लो आँखें और यदि आँखें खुल गई तो वह उड़ जाते है। खुली आँखों से उसे क्यों नहीं देख सकते? किसी वस्तु की भांति उसे अनुभव नहीं कर सकते। उसे स्पर्श नहीं कर सकते। उससे स्नेह नहीं कर सकते। उसे चूम नहीं सकते। उसे आलिंगन नहीं दे सकते। उसके साथ खेल नहीं सकते। उसके साथ बात नहीं कर सकते। उसके साथ गीत नहीं गा सकते, नृत्य नहीं कर सकते। क्यों उसे छाती से नहीं लगा सकते? क्यों उसे पकड़ नहीं सकते? क्यों उसे अपनी मुट्ठी में जकड़ नहीं सकते? अंतत: यह स्वप्न है क्या?” वफ़ाई के शब्दों में पीड़ा थी।


“स्वप्न कोई भेद है, कोई रहस्य है। किन्तु स्वप्न सदैव सुंदर होते है। हमें उसे प्राप्त करने का प्रयास करना होगा। इस की यही सुंदरता है कि उसे देखने के लिए आँखें बंद करनी पड़ती है किन्तु वह प्राप्त तो खुली आँखों से ही होता है। स्वप्न चंचल होते है, नाशवंत होते है। वह अल्पजीवी होते है। यदि हम उसे पकड़ने में, उसे धारण करने में चूक जाते है तो वह अदृश्य हो जाते है, छटक जाते है। हमें उस के पीछे दौड़ना होगा। वफ़ाई, हमें उसे पकड़ना होगा। हमारे दौड़ने पर भी यह निश्चित नहीं है कि उसे हम पा सकेंगे अथवा नहीं” जीत ने कहा।


“अर्थात स्वप्न भी प्रीत जैसे होते है। यदि उचित क्षण में उसे पकड़ लिया तो वह तुम्हारा हो जाएगा और यदि वह क्षण चूक गए तो सदा के लिए उसे खो देते है हम। जीत, यह स्वप्न वास्तविक भ्रमणा ही है”


“वास्तविक भ्रमणा क्या होती है? दोनों विरुद्ध होते है” जीत ने पूछा।


“कुछ भ्रमणा वास्तविक रूप से भ्रमणा ही होती है। कुछ वास्तविकता, वास्तव में ही वास्तविक होती है। किन्तु स्वप्न वास्तविक भी होते है, भ्रमणा भी। उनका अस्तित्व होता है इस लिए वह वास्तविक होते है। किन्तु उसे प्राप्त करना कठिन होता है। यही कारण है कि हम मानने लगते है कि स्वप्न का अस्तित्व नहीं होता और वह केवल भ्रमणा ही होती है। वर्षों तक उसके पीछे दौड़ने के उपरांत भी हम उसे पकड़ नहीं सकते। भ्रम का एक आवरण होता है, जिसके हटते ही वास्तविकता हमारे सामने आ जाती है जहां हमारे स्वप्नों का कोई स्थान नहीं होता। तब हमें लगता है कि हम छले गए हो, ठगे गए हो। हमारे ही स्वप्न, हमारी ही वास्तविकता एवं हमारी ही भ्रमणा हमें छल जाते है”


“वफ़ाई, इस तरह छला गया व्यक्ति क्या करेगा?”


“एक तो वह क्रोधित हो जाता है और पूरे विश्व से घृणा करने लगता है, स्वयं से भी। दूसरा...”


“दूसरा क्या?” जीत ने उत्कंठा प्रकट की।


“दूसरा, वह अपने ही रचे जगत को पीछे छोड़ देता है और ऐसे स्थान पर भाग जाता है जहां कुछ भी ना हो। मित्रों को, परिवार को, संपत्ति को, सब को छोड़ देता है”


“कहाँ चला जाता है? किस स्थान पर भाग जाता है?”


“जंगल में, पहाड़ों में, गुफाओं में तो कोई मरुभूमि में” वफ़ाई ने जीत की आँखों में गहरे भाव से देखा। जीत वफ़ाई की उस दृष्टि को सह नहीं सका। उसने मुख केनवास की तरफ घूमा लिया। केनवास अभी भी खाली था, जीत की आँखों की भांति।


“क्या थे तुम्हारे स्वप्न जिसे तुम प्राप्त नहीं कर सके, जिसके कारण तुम सब कुछ छोड़ कर इस मरुभूमि में आ गए?” वफ़ाई ने जीत के मन पर घात कर दिया।


“वह अतीत है, जो पीछे छूट गया है। मैं उसे छोड़ चुका हूँ। वह नष्ट हो चुका है, वह भस्म हो चुका है। हमें उसे छोड़ देना चाहिए, उसका उत्खनन नहीं करना चाहिए।


“क्यों नहीं करना चाहिए?”


“जब हम अतीत को खोदते है तो हमारे हाथ हमारे स्वप्नों की राख, हमारे बीते हुए कल की राख ही हाथ लगती है”


“जीत, फीनिक्स पंछी अपनी ही राख से पुन: जन्म लेता है। हम तो मनुष्य है। फिनिक्ष पंछी से कहीं अधिक सशक्त”


“यही तो भ्रांति है। इस धरती पर सबसे दुर्बल प्राणी मनुष्य ही है”


“तुम सत्य से भाग रहे हो, जीत। वास्तविकता से हम पलायन नहीं कर सकते। हम सबसे भाग सकते है किन्तु अपने ही मन से नहीं भाग सकते। वह सदैव हमारे साथ...”


“मैंने वचन दिया है कि उचित समय आने पर मैं मेरा पूरा अतीत तुम्हारे सामने रख दूंगा। समय की प्रतीक्षा करो, वफ़ाई”


“वह समय कब आएगा?”


“तुम इस मरुभूमि को छोड़ोगी उस से पहले। तुम मुझे छोड़ दोगी उससे पहले”


“अर्थात, तुम्हारे अतीत के उस रहस्य को जानने के लिए मुझे तुम्हारा त्याग करना होगा? क्या यह आवश्यक है? साथ रहते हुए उन क्षणों को बाँट नहीं सकते?”


“वफ़ाई, उचित समय की प्रतीक्षा करो”


“मान लो कि मैं यहीं रह जाऊं सदा के लिए। तो? तो तुम कभी भी मुझे तुम्हारे स्वप्नों की कहानी नहीं कहोगे?”


“मैं नहीं जानता। मुझे इतना ज्ञात है कि सब को जाना होता है। सब किसी ना किसी को छोड़ जाते है। कोई सदा के लिए नहीं रहता। तुम कब तक रहोगी मेरे साथ? एक महीना? दो महीना? अथवा एक साल?”


“जीत, तुम पुन: भ्रांति में फंस गए हो। अपनी धारणा से मेरा आकलन ना करो। हो सकता है कि मैं यहाँ पूरा जीवन रुक जाऊँ। तुम मुझे...” वफ़ाई ने शब्द अधूरे छोड़ दिये, स्मित करने लगी।


“यदि तुम यहाँ सदा के लिए रहना चाहती हो तो इसका अर्थ है कि तुम मेरे अतीत को जानने में रुचि नहीं रखती” जीत भी हँसने लगा।


“तुम्हारे अतीत को जान लेने के बाद तुम्हारे साथ रहना संभव नहीं होगा? मुझे तुम्हारे अतीत से कोई भय नहीं है”


“मुझे ज्ञात है। वफ़ाई तुम पागल हो गई हो, तुम बावली हो गई हो”


“कुछ दिवस पहले तो मैं बावली नहीं थी। किन्तु मुझे स्वीकार करने दो, मैं अब बावली हूँ”


“क्या तात्पर्य है तुम्हारा, वफ़ाई?”


“तुमने मुझे बावली बना दिया है। मुझे कहने दो कि तुमने मेरे बावलेपन को जन्म दिया है। इस के लिए तुम उत्तरदायी हो” वफ़ाई मुक्त मन से हँसने लगी।


वफ़ाई झूले पर से उठी, मार्ग पर दौड़ गई, चीखती गई।


“मैं पागल हूँ, मैं बावली हूँ। हे मरुभूमि तुम सुन लो। मैं बावली हूँ। मैं पागल हूँ। रेत की प्रत्येक कण सुन लो, जान लो। वफ़ाई नाम की एक छोकरी पागल हो गई है, बावली हो गई है...”



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