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दिल्ली नोएडा डायरेक्ट यानी डीएनडी

दिल्ली नोएडा डायरेक्ट यानी डीएनडी

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                दिल्ली नोएडा डायरेक्ट! जी हाँ, सही सुना आपने, दिल्ली नोएडा डायरेक्ट यानी डीएनडी।वैसे तो 26 अक्टूबर तक तो डीएनडी फ्लाई-वे के नाम से अपनी छटा बिखेर रही थी, जिस पर पांव रखते ही निजी और सार्वजनिक गाड़ियों से सवारी करने वाला हर शक्स बस यही सोचता था कि बस पाँच मिनट में दिल्ली, कहने का मतलब डीएनडी पर पहूँते ही एक लोकोक्ति "अब दिल्ली दूर नहीं" अनायास ही सार्थक हो जाती थी। परन्तु आज सम्भव नहीं है, अगर आप सोच रहें हैं कि आप पाँच मिनट में दिल्ली पहुँच जायेगें तो भूल जाइए साहब।

अब डीएनडी के बुरे दिन शुरू हो गए। अब तो डीएनडी का हाल नेशनल हाईवे 29 से बद्तर हो गया है। जिस राह पर चलकर आप नोएडा से दिल्ली पाँच मिनट में पहुँचते थे अब उसी राह पर आपको पाँच की जगह पचास मिनट या ऊपर भी लग सकते है, या उससे और भी ज़्यादा का समय। आज का आलम ये हो चुका है कि पुछिये मत साहब...। जो कल डीएनडी पर कार का पहिया चढ़ाने से डरते थे आज धड़ल्ले से लेकर भागते नज़र आते है। कल जो गाड़िया चालीस-साठ की रफ्तार से दौड़ती थी आज वो अस्सी नब्बे और उसके भी ऊपर भागती नज़र आती है, पर वहीं तक जहाँ तक खुला-खुला नज़र आता है। फिर आता है एक अवरोध।

अवरोध! वो भी साधारण नहीं, नदी को जैसे ही पार करेंगे वैसे ही एक जमघट नज़र आयेगा गाड़ियों का जो आपकी सरपट दौड़ती गाड़ियों का पहियाँ बाँध कर रखेगा वो भी तब तक, जब तक आप डीएनडी छोड़कर दिल्ली में प्रवेश न कर जाये।। उस जमघट के पनघट पर जब पहुँचेंगे और थोड़ा वक्त बितायेंगे तो आप यही सोचकर मन मसोस के रह जायेंगे कि "इससे जल्दी तो हम पैदल ही पहुँच जाते।" अब यह सब लगभग दस दिन देखने के बाद हर व्यक्ति कहता नज़र आ रहा है कि "यार टोल पूरी तरह से माफ नहीं करना चाहिये था कम से कम इस जाम से निजात तो थी।" 

इस जद्दो-जहद में एक बात सच यह है कि टौल जब लेते थे तब तक डीएनडी साफ सुथरा और स्वच्छ दिखता था। दिल्ली नोएडा के बीच पसरा लगभग पाँच-छ: कि.मी. का रास्ता लगता ही नहीं था कि दिल्ली नोएडा का है। अलग ही रौनक और चहल पहल थी। परन्तु जब से एमसीडी के हाथ में गया है तब से न उतनी स्वच्छता दिखती और ना ही सुन्दरता। यकीनन कुछ दिन में वो अन्य राजमार्गों की तरह साधारण मार्गों में तब्दिल हो जायेगा। चेकपोस्टें बस आपको अपने अतीत को याद दिलाती रहेंगी।

एक ज़रूरी बात, जितने भी लोग पहले ऑफिस, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल या अन्य ज़रूरी जगहों पर समय से पहुँचने के लिए डीएनडी से जाना उचित समझते थें अब उसी नियमित समय पर पहुँचने के लिए उनको लगभग एक घंटे पहले निकलना पड़ेगा और इस समय को आप बढ़ाते ही जाईएगा, कम करने की सोच आपकी मुर्खता होगी क्योंकि ना वो गाड़ियाँ कम होंगी, और ना ही उससे गुज़रने वाले लोग। दिन प्रतिदिन ये संख्या बढ़ती रहेगी। विकास पथ पर भारत विकासशील देश है तो साहब विकास तो करेगा ही। फिर कम करने और स्थिर करने की सोच कैसे?

अच्छा चलता हूँ, नमस्कार जी! ये तो अपनी व्यक्तिगत रही। बस आप से साझा करने का मन हुआ, तो आप से जुड़ गया, मात्र जानकारी देने हेतु। हो सकता है मैं गलत होऊं। पर साहब एक बार आप भी जायज़ा लीजिए इस सफर का और कुछ साझा कीजिए इस लुभावने दृश्य का। अच्छा! फिर से नमस्कार। धन्यवाद। जय हिन्द, जय हिन्द की माटी।


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