पिंजरे का बेख़ौफ़ पंछी
पिंजरे का बेख़ौफ़ पंछी
कुछ व्यक्तिगत कारणों से अमन के अपने जैविक माता-पिता ने उसे अपने घर में कैद कर लिया था। और फिर वे उसे जीवित रहने के लिए कोई नौकरी या व्यवसाय करने की न तो अनुमति कभी देने लगे। और न ही कुछ भी करने कराने के लिए कभी तैयार हुए। परोक्ष रूप से उन्होंने उसे उन्हीं के घर से बाहर फेंकने की योजना भी बना ली थीं। लेकिन समाज की झूठी प्रतिष्ठा की खातिर उन्होंने उसे कभी नहीं मारा और ना कभी घर से बेघर किया।
केवल उन कारणों को मद्देनजर रख आज अमन की खुद की सबसे छोटी जैविक बहन ने भी कुछ खास तवज्जो नहीं दी थी उसे। और उसकी बहन ने, खुद उसे अपने निजी स्वार्थ के कारण मजबूर किया था। कि, वो अपना हिस्सा खुशी खुशी छोड़ दे। और अनैतिक रूप से उससे कुछ कोरे कागज़ात पर हस्ताक्षर भी लिये थे। जिसका आज वो ग़लत तरीके से फायदा भी उठाना चाह रही थी।
आज अपनी गलतियों से अमन उसकी बहन के पिंजरे में कैद एक पँछी की तरह फड़फड़ाता रहा। और वह उसे दिन-प्रतिदिन उकसाती रही कि, वो खुद ही उस पर मुकदमा चलाने की कोशिश करें। या कुछ ऐसा करने पर उतारू हो जाये जिसके बलबूते पर वो अमन को नाकारा करार देकर पुश्तैनी ज़ायदाद से बेदखल कर दे। और पूरी ज़ायदाद की एकलौती वारिस वह खुद ही बन जाएं।
अमनने कल रात एक सपना देखा और उस सपने में वह खुद को यह कहते हुए पकड़ा गया कि,
'बदला' शब्द उसे बेईमान सा लगता है।
इसलिए वह उसे 'एहसान लौटाना' कहना अत्यधिक पसंद करेगा।
और आज वह अपने हिस्सें की ज़ायदाद लेने में क़ामयाब हुआ है। और वो भी अहिंसावादी रणनीति से ही! बिना रिश्ते - नाते तोड़े!
बर्बस, अपनी बात रखना और कहना सिख गया है अब अमन।
और ये सब मुमकिन हुआ उसके अपने दोस्त - हमराज़ सहज की वज़ह से।
जिसने उसे डिफेंसिव मॉड पर रहकर लड़ना और बिन बोलें मुश्किलों से झूझना सिखाया।
अमन आज ईश्वर से और दूसरों से भी एक ही इल्तज़ा करता रहता है कि, 'हे प्रभु! सभी के जीवन में एक ऐसा साथी जरूर देना। जो, ज्वालामुखी की भाँति फटता हो जरूर। पर, जरूरत के वक़्त चट्टान बनकर अपनों की हिफाज़त भी करता हो।'
और अमन आज आज़ाद पंछी की तरह आसमान में बेख़ौफ़ उड़ान भरने को है तैयार।