Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

इण्डियन फ़िल्म्स 1.7

इण्डियन फ़िल्म्स 1.7

8 mins
291


मैं और वोवेत्स फ़ोटो प्रिंट करते हैं।

 सन् 1988 में मैंने फ़ोटोग्राफ़ी सीखी। ये, बेशक, कमाल की बात थी, मगर इसमें कुछ मुश्किलें थीं। बात ये थी कि उस समय ऐसे कोई फ़ोटो स्टूडियोज़ नहीं थे, जिनमें फ्लैश की सहायता से एक सेकण्ड में फ़ोटो प्रिन्ट हो कर निकल आए, दूर दूर तक नहीं थे। फ़ोटोग्राफ़ बनाने के लिए ज़रूरत थी फ़ोटो एनलार्जर की, लाल लैम्प की, रील से फ़िल्म दिखाई दे इसलिए एक बेसिन की, फिक्सर की, डेवेलपर की, फ़ोटोग्राफ़िक पेपर वगैरह की। सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी टाइम की – ये सब करने के लिए। मेरे पास एनलार्जर को छोड़कर बाकी सब कुछ था, मगर एनलार्जर के बिना तो काम चल ही नहीं सकता था, और वो खूब महँगा भी था। मम्मा-पापा ने वादा किया था कि मुझे एनलार्जर देंगे, मगर सिर्फ नए साल पे, और यहाँ तो मई का महीना आ चुका था। मैं इंतज़ार नहीं कर सकता था, और अगर मेरा दोस्त वोवेत्स न होता, तो कुछ भी नहीं हो सकता था। 

“चल, मेरे घर में फ़ोटो प्रिन्ट करेंगे ?” एक बार वोवेत्स ने मुझसे कहा। “मेरे पास सब कुछ है, और डेवेलपर भी।”

पहले तो मुझे वोवेत्स की बात पे ज़रा भी यकीन नहीं हुआ। ये बताना पड़ेगा, कि मेरा दोस्त काफ़ी अजीब है। मिसाल के तौर पे, कुछ समय पहले उसने कहा था, कि “ भविष्य से आए मेहमान” वाली एलिस – उसकी गर्ल फ्रेण्ड है। और सर्दियों में उसने मुझे अपनी नौ मंज़िला बिल्डिंग की वेल्क्रो खुरचने से मना कर दिया, क्योंकि बिना वेल्क्रो के उसे सर्दियों में बेहद ठण्ड लगेगी, क्योंकि वो पहली मंज़िल पे जो रहता है और ज़्यादातर वेल्क्रो उसीकी बाल्कनी के नीचे है। और ये भी, कि वोवेत्स अपने जूतों में लेसेज़ के बदले कोई नीला तार बाँधता है। वोवेत्स ने कई बार ये भी कहा था कि शहर के किसी स्कूल में कुंग-फू सिखाता है, जिसका कि वो ‘प्रमाणित मास्टर’ है, क्योंकि बहुत बचपन में वो चीन में पढ़ता था, जब बिल्कुल ही छोटा था। इस बात से भी बहुत शक होता था, क्योंकि, एक बार हमारी कन्स्ट्रक्शन साइट पे बड़े बदमाश लड़के हमारे सामने आ गए, तो मैं तो उनसे फ़ाइट करना चाहता था, जबकि मैं कोई मास्टर-वास्टर नहीं हूँ, मगर वोवेत्स भाग गया। हालात को भाँपकर वो बड़ी फ़ुर्ती से वहाँ से भाग निकला, अपनी एडियों को चमकाते हुए, जिससे उसका भारी-भरकम बेडौल जिस्म बुरी तरह हिल रहा था।

मतलब, अजीब था मेरा दोस्त, उसके बारे में कुछ कह नहीं सकते। उसपे यकीन करना मुश्किल था, और मैंने पूछा:

“तू गप तो नहीं मार रहा है ? सही में है डेवेलपर तेरे पास ?”

“कसम खाता हूँ। ज़ुबान देता हूँ।” 

“तो फ़ोटो कब प्रिन्ट करेंगे ?” 

“चाहे तो कल सुबह आ जा मेरे यहाँ, नौ बजे, रील्स, फ़ोटो-पेपर ले आना, और बस, प्रिन्ट कर लेंगे।”

“ओके, पक्का !” मैं ख़ुश हो गया और दूसरे दिन सुबह-सुबह मैं चल पड़ा वोवेत्स के घर, रील्स और फ़ोटो-पेपर लेकर।

वो बगल वाली नौमंज़िला बिल्डिंग के दूसरे प्रवेश द्वार की पहली मंज़िल पे रहता था, और मैं ख़ुश-ख़ुश उसके यहाँ जा रहा था – क्योंकि मेरे सीधे-सादे कैमेरे – 'स्मेना' से खींचे गए सारे फ़ोटो अब सचमुच के फोटोज़ में बदलने वाले थे।

“आ जा,'' वोवेत्स ने दरवाज़ा खोला। “सिर्फ किसी भी बात पे हैरान न होना और बेवकूफ़ी भरे सवाल मत पूछना। प्रिन्टिंग बाथरूम में करेंगे। लाल लैम्प है, तो तू परेशान न होना, सब कुछ सही-सही हो जाएगा।”

मगर किसी भी बात पे हैरान न होना काफ़ी मुश्किल था। बात ये नहीं थी कि वोवेत्स के क्वार्टर में सब कुछ बेतरतीब था, बस ऐसा लग रहा था कि हर कमरे में, कॉरीडोर में और किचन में भी कई सारे शहीद-मृतक घुस आए हों, इतनी बेतरतीबी से चीज़ें फ़िकी हुई थीं। पलंगों और दीवानों की टाँगें ही नहीं थीं। और हर कमरे में (कुल दो कमरे थे) इस सब ख़ुशनुमा माहौल में, एक-एक काली बिल्ली बैठी हुई थी।

“दोनों के बदन पे पिस्सू हैं,'' वोवेत्स ने पहले ही आगाह कर दिया।

बड़ा अजीब लग रहा था। मेरा मन मुझसे कह रहा था, कि इस क्वार्टर में कुछ भी हो सकता था, अच्छा भी, और अच्छा नहीं भी। वैसे उम्मीद तो अच्छा न ही होने की थी। चारों ओर की हर चीज़ जैसे ख़तरनाक उत्तेजना से लबालब थी। कुछ देर के लिए तो मैं भूल ही गया कि यहाँ क्यों आया हूँ।

“कुछ खाएगा ?” वोवेत्स ने पूछा।

 “नहीं !” मैं करीब-करीब चिल्ला पड़ा। वो किस तरह का खाना खाता था – सिर्फ ख़ुदा ही जानता है, और वैसे भी एक भी आदमी इस घर में कुछ खाने या पीने का ख़तरा मोल नहीं लेगा। “नहीं,” मैंने दुहराया, “चल, फ़ोटोग्राफ़्स प्रिन्ट करते हैं।”  

“चल, चल,” न जाने क्यों वोवेत्स हँस पड़ा।

“तू गंदगी पे ध्यान मत दे, मेरे यहाँ हमेशा ऐसा ही रहता है। मैं छोटी-छोटी बातों पे अपना दिमाग नहीं खपाता हूँ। अब मुझे याद आया, कि वोवेत्स ने एक बार मुझसे कहा था, जैसे उसके पास बैंक में पंद्रह हज़ार पड़े हैं, और मैंने पूछ लिया:

 “तेरे पास तो बैंक में पंद्रह हज़ार पड़े हैं, मगर सारे पलंग तो बिना टाँगों के हैं ?”

“ऐसा ही होना चाहिए,” वोवेत्स ने भेदभरे अंदाज़ में जवाब दिया। “तू क्या पलंग देखने आया है ?”

मैंने सोचा कि वो ठीक कह रहा है और आसपास की चीज़ों पर ध्यान देना बस हो गया, बल्कि अब मुझे काम की ओर ध्यान देना चाहिए।

मगर ये काम हुआ किस तरह – ये एक अलग ही किस्सा है !

जब हम बाथरूम में गए और किन्हीं बेसिन्स और अनगिनत झाडुओं और ब्रशों के बीच, जो वोवेत्स को जान से भी प्यारे नज़र आ रहे थे, लाल बल्ब को जलाकर दूसरी लाईट बुझा दी, तो मेरा दोस्त अचानक बेहद ख़ुश हो गया। कहना पड़ेगा कि ऐसा उसके साथ अक्सर नहीं होता था और, ज़ाहिर था, कि ये किसी अच्छी बात की ओर इशारा नहीं करता था। 

“कुंग-फू दिखाऊँ ?” आँख़ मारते हुए वोवेत्स ने पूछा।

 “प्लीज़, अगली बार ?” मैंने सावधानी से कहा, ये समझते हुए भी कि, मैं चाहे कुछ भी कहूँ, कुंग-फू तो ज़रूर होगा ही होगा। वोवेत्स स्टैण्ड पर खड़ा हो गया, टब के पास पड़े हुए एक छोटे से खाली बेसिन को उल्टा करके (वोवेत्स के क्वार्टर में कमोड और बाथ एक साथ हैं)।

“वोवेत्स, कोई ज़रूरत नहीं है !” मैं चिल्लाया।

“मैं-ए-ए ! ! !” वोवेत्स ने साइड में लात घुमाई, और फ़िक्सर्स समेत बेसिन बाथरूम के फ़र्श पर नज़र आया।                

“ईडियट !” मैं दहाड़ा। “तूने क्या कर दिया ? !”

वोवेत्स गंभीर हो गया।

“दहाड़ मत,'' उसने इत्मीनान से कहा और कुछ देर रुककर, जिसके दौरान उसके चेहरे पर अपराध की भावना दौड़ गई, आगे कहा: “ तूने ज़िंदगी में कितनी बार फ़ोटोज़ प्रिन्ट किए हैं ? ''

 “दूसरी बार कर रहा हूँ,” मैंने ईमानदारी से स्वीकार किया।

“जभी। और मैं पाँच हज़ार बार कर चुका हूँ,” वोवेत्स ने घमण्ड से कहा। “ ऐसा होता है, कि कभी बाइ चान्स फिक्सर गिर जाता है। वो इतना ज़रूरी नहीं है। डेवेलपर तो है !”

मुझे फिर भी गुस्सा आ ही रहा था, क्योंकि मुझे अब अफ़सोस होने लगा था कि मैं वोवेत्स के घर क्यों आया, मगर जल्दी ही हम सीधे काम पे लग गए।

सात मिनट तक तो काम ठीक-ठाक चलता रहा। पाँच फ़ोटोज़ तो करीब-करीब तैयार हो गए थे, बस उन्हें सुखाना बाकी था, मगर फिर कुछ ऐसा हुआ, जिसके लिए ही मैं ये सारा किस्सा बताने के लिए तैयार हुआ। वोवेत्स ने अचानक फ़र्श से कोई धूल भरी चीज़ उठाई और चीखते हुए: “जा नहीं पाएगा ! कैसे भी तुझे ख़तम कर दूँगा ! एक भी कमीना बचकर नहीं जाएगा !” वो किसी गंदगी से धूल हटाने के लिए, बाथरूम के फ़र्श पर पानी बिखेरने लगा।

“तू क्या कर रहा है ? !” मैं बिसूरने लगा।

“तिलचिट्टे, क्या तू देख नहीं रहा ? ! ति-इ-ल-च-ट्टे !”

और धूल झटकना जारी रहा।

मैं तीर की तरह बाथरूम से भागा, क्योंकि मैं इस सबसे बेज़ार हो गया था। वहाँ से एक मिनट तक चीखें आती रहीं, फिर वोवेत्स प्रकट हुआ और जैसे कुछ हुआ ही न हो, इस अंदाज़ में बोला:

“ मास्क पहनकर फ़ोटोग्राफ़्स प्रिन्ट करना जारी रखेंगे। ये लिक्विड ख़तरनाक है।”

मैं न जाने क्यों राज़ी हो गया। वोवेत्स कमरे से दो हरे मास्क्स खींच लाया, और हम फिर से बाथरूम में घुसे। मास्क के कारण साँस लेने में मुश्किल हो रही थी, मगर फ़ोटो प्रिन्ट करने की चाहत अभी भी बाकी थी।

बोलना नामुमकिन था। बर्दाश्त से बाहर ऊमस थी। मगर फिर भी कुछ नए फ़ोटोग्राफ़्स तैयार हो गए थे।

मई का महीना। बाहर धूप और गर्माहट थी, बच्चे साइकिलों पर घूम रहे हैं। निकोलाएव स्ट्रीट पर पुरानी नौमंज़िला इमारत के गंदे क्वार्टर में, पहली मंज़िल पर, बाथरूम में, लाल लैम्प की रोशनी में और डिब्बों से, बेसिन्स से और झाडुओं और मॉपर्स से घिरे हुए, सिकुड़ते हुए और बेहद मुसीबतों को झेलते हुए, मास्क पहने दो लड़के बैठे हैं और फ़ोटोग्राफ़्स प्रिन्ट कर रहे हैं। बेवकूफ़ी है। ऐसा तो चार्म्स की कहानियों में भी नहीं मिलता।

“मास्क उतार दे, मैं मज़ाक कर रहा था,” चालाकी से और बेशरमी से वोवेत्स मुस्कुराया, जब वो समझ गया कि मेरा दम घुट रहा है।

“मज़ाक कर रहा था से क्या मतलब ?'' मैंने मास्क उतार कर पूछा।

“अरे, मैंने सीधा-सादा पानी ही डाला था, सिर्फ कब से कोई मज़ाक नहीं किया था। इतवार को आ जा, अच्छे से प्रिन्ट करेंगे। मम्मा-पापा घर में होंगे, उनके सामने मैं कोई कुँग-फू नहीं दिखाता और मास्क लाने की भी मुझे इजाज़त नहीं है। वे रजिस्टर में लिखे हुए हैं।”

 “डेविल !” मैं गरजा। “और क्या तेरा नाम बाइ चान्स पागलों के डॉक्टर के रजिस्टर में नहीं है ? ! !”    

“प्लीज़, गुण्डागर्दी नहीं। मेहमान नवाज़ी के नियमानुसार मैं तुझे जवाब नहीं दे सकता, मगर अगर कोई चीज़ अच्छी नहीं लगी हो, तो दफ़ा हो जा।

दाँत भींचकर और बिना एक भी लब्ज़ कहे, मैंने अपनी रील्स उठाईं और तीस सेकण्ड में बाहर आ गया।

बहुत बुरा मन हो रहा था। थैन्क्स गॉड, शाम को, जब पापा ऑफ़िस से आए, तो हम जीन-पॉल बेल्मोन्दो की फ़िल्म “अलोन” देखने गए जिसे हम दोनों बहुत प्यार करते थे। उस समय मैंने पक्का इरादा कर लिया, कि अब फ़ोटोग्राफ़्स भी अकेले ही प्रिन्ट करना होगा। और वोवेत्स – मैं उससे अब कभी नहीं मिलूँगा।

एक हफ़्ते बाद मैं फिर से वोवेत्स से कम्पाऊण्ड में बात करने लगा और उसने फिर से साबित कर दिया कि वो कुँग-फू का मास्टर है। ‘हो सकता है कि कुँग-फू के सारे मास्टर्स मास्क पहन कर फ़ोटोग्राफ़्स प्रिन्ट करते हों और झूठ बोलते हों कि उनकी फ़िल्म- स्टार्स से दोस्ती है ?” मेरे दिमाग में ये ख़याल कौंध गया।

तो ये था किस्सा। क्या ये दुखभरा था या मज़ाहिया ?

ईमानदारी से कहूँ, तो मुझे भी समझ में नहीं आएगा !


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract