आखिरी क्या (लप्रेक)
आखिरी क्या (लप्रेक)
मधुबन था तो खतरनाक, अक्सर बी. एच. यु. के प्रॉक्टर का छापा जोड़ो की तलाश में पड़ता रहता था वहाँ. पर सुकून भी है बहुत वहाँ.
आधुनिक कला के कुछ नमूने पार्क में जगह-जगह लगे हुए थे. बड़े-बड़े दरख़्त और छोटी छोटी फूलदार झाड़ियाँ मिलकर छाँव और आड़ दोनों देते हैं.
वैसे भी इश्क़ में प्रकृति से नजदीकी बढ़ जाती हैं और कला में भी वजन ज्यादा महसूस होता हैं.
आशिक़ इसी आकर्षण में प्रॉक्टर का खतरा उठा कर भी यहाँ आया करते.
बड़े बरगद के नीचे वो उसकी गोद में पड़े हुए और उसकी हथेलियों को अपनी हथेलियों के बराबर रख नापते हुए उसने बोला, "तुम साथ दे पाओगी आखिरी तक?"
"रवि, आखिरी क्या हैं?" उसने पूछा.
"आखिरी वही हैं, जहा तक हम-तुम साथ हैं".
दोनों की अंगुलियाँ अपने आप एक दूसरे में भींच गयी.