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Preeti Praveen

Children Drama

1.7  

Preeti Praveen

Children Drama

पलटू राम

पलटू राम

8 mins
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ड्राइंग रूम में प्रखर के ज़ोर-ज़ोर से हँसने की आवाज़ सुनकर लीना को ग़ुस्सा आ गया।वो हाथ का काम छोड़कर तुरंत वहाँ पहुँची।उसने देखा कि प्रखर मैथ्स के सवाल हल करने के बजाय टी.वी में कार्टून प्रोग्राम देख रहा है।सबसे पहले तो उसने टी.वी बंद किया।प्रखर की इस हरकत ने उसे बहुत परेशान कर दिया था।उसने खीजते हुए प्रखर से कहा-

"तुम्हें कुछ याद भी है कि नहीं ? फ़ाइनल एग्ज़ाम की डेट आ चुकी है!"

"मम्मा,परीक्षा में अभी बहुत दिन हैं।" प्रखर से लापरवाही वाला जवाब पाकर उसका ग़ुस्सा और तेज़ हो गया।

"बहुत दिन कहाँ हैं ? सभी सब्जेक्ट्स की तैयारी जो करना है।"

"आप चिंता मत करो,मैं कर लूँगा।"

"देखो प्रखर ! ऐन वक़्त पे मत बोलना मेरी तैयारी नहीं हुई।"

"नहीं बोलूँगा...और पूरी तैयारी भी समय पर कर लूँगा।अच्छा,ये सब छोड़ो ना मम्मा,आप तो ये बताओ कि इस बार हम गर्मी की छुट्टी में कहाँ घूमने जाएँगे ?"

"इस बार हम दादी के सुंदर से गाँव चलेंगे।"

"मम्मा प्लीज़ गाँव नहीं,कोई हिल स्टेशन चलेंगे।

"बेटा,ये क्या बात हुई,तुम्हें मालूम है ना दादी माँ ने ख़ास तौर से कहा है कि इस बार गाँव आ जाना।"

"वहाँ मॉल,अम्यूज़्मेंट पार्क कुछ भी तो नहीं हैं!"

"तो क्या हुआ!इसके अलावा वहाँ बहुत कुछ मज़ेदार है!"

"नाम भी तो बताओ,बहुत क्या?"

"इसके लिए तो तुम्हें वहाँ चलना पड़ेगा।"

"यदि अच्छा नहीं लगा तो एक,दो दिन में ही वापस आजाएँगे?"

"ओके...पक्का प्रोमिस।अब एग्ज़ैम की तैयारी करो।"

लीना की बात मान प्रखर परीक्षा की तैयारी में जुट गया।वो भी घर की साफ़ सफ़ाई करने लगी।सफ़ाई करते हुए उसका ध्यान एक पुरानी फ़ोटो पर पड़ा।उसे देख वो यादों में खो गई।

आज भी उसे वो घटना याद है,जब पहली बार वो गाँव गई थी।खेत देखने जाते समय मुँडेर पर से उसका पैर फिसला और वो गोबर में गिर गई थी।उसे गोबर में छबा देख रमेश काका के बेटे ने ख़ूब खिल्ली उड़ाई थी।तब उसे बहुत बुरा लगा था,लेकिन आज उसे स्वयं पर हँसी आ रही थी।

मम्मा फ़ोन उठाओ !

सहसा प्रखर के चिल्लाने से लीना को ध्यान आया,वाक़ई फ़ोन की घंटी बहुत देर से बज रही है।लीना ने तुरंत रिसीवर उठाया।दूसरी तरफ़ से माँँजी की आवाज़ सुन प्रणाम कर,उसने उनका हाल-चाल पूछा।प्रखर की परीक्षा ख़त्म होते ही गाँव पहुँचने वाली बात भी बताई।

"लीना,किससे बात कर रही हो?" - रवि ने पूछा।

रवि की बातों से बेख़बर लीना फ़ोन पर बात किए जा रही थी।रवि ने जब पास आकर उसे हिलाया तो उसने बताया की माँजी से बात चल रही है।

"सुनो,माँ से पूछ लो यहाँ से कुछ लाना है क्या?"

"माँ,आपके लिए यहाँ से क्या लाऊँ?"

"तुम लोग आ जाओ बस और कुछ नहीं चाहिए।"

कुछ दिनों बाद प्रखर की परीक्षा भी शुरू हो गई।

लीना ने गाँव जाने के लिए ज़रूरी सामान भी पैक कर लिया।प्रखर की परीक्षा ख़त्म होते ही सभी गाँव के लिए निकल पड़े।प्रखर ने अपना खिलौने वाला शोल्डर बैग कंधे पर लटका लिया।ट्रेन में चढ़ते ही उसके खिलौने निकल पड़े।थोड़ी देर अकेले खेलने के बाद उसने लूडो निकाला।पापा को साथ खेलने का आग्रह किया।सूझ-बूझ से खेलते हुए उसने पहले गेम में पापा को हरा दिया।थोड़ी देर बाद बिस्किट का पैकेट भी निपटा दिया।खेलते-खाते नरियार गाँव का स्टेशन आ गया।

प्रखर ने जब नज़र दौड़ाई तो उसे आस-पास बहुत सारे ताँगे दिखे।

"उसने आश्चर्य से पूछ ही लिया-"पापा,क्या हम इससे चलेंगे?"

"हाँ!"

"यहाँ टैक्सी नहीं मिलेगी?"

"एक बार तुम इसमें बैठ गए तो टैक्सी-कार भूल जाओगे।"

पापा ने जितने उत्साह और ख़ुशी से बताया,उसे सुन प्रखर की प्रतिक्रिया निराशाजनक ही रही।

"ओ भैया नरियार गाँव चलोगे?"

रवि की बात सुनते ही मटमैली सी धोती और गले में लाल गमछा लटकाए व्यक्ति ने आगे बढ़ झट से सूटकेस उठा अपने ताँगे में रख लिया।प्रखर को उसने अपने पास आगे बैठा लिया।प्रखर को गाँव अच्छा नहीं लग रहा था।ताँगे वाले ने एक-दो बार प्रखर से बात करना चाहा लेकिन उसने ठीक से जवाब नहीं दिया।स्टेशन से बाहर निकले ही घोड़ा जाने पहचाने रास्ते पर सरपट दौड़ लगाने लगा।प्रखर का मुँह अभी भी फ़ूला था।अचानक रोड के दोनों तरफ़ आम से लदे अनगिनत पेड़ों को देख वो ख़ुशी से चिल्ला उठा-"मम्मा वो देखो कितने सारे आम के पेड़!उसमें कुछ हरे और कुछ पीले रंग के आम लटक रहे हैं"

"प्रखर,पीले आम पक चुके हैं और हरे पकने वाले हैं"

"मम्मी,फिर तो दादी के घर भी आम के पेड़ होंगे?"

"तुम चलोगे तो ख़ुद ही पूछना"

प्रखर को ख़ुश देख रवि और लीना संतुष्ट हुए।

"मम्मी,वो कौन से पेड़ हैं?"

"बेटा,वो लीची के पेड़ हैं"

"जिसका छिलका लाल,अंदर से सफ़ेद और खाने में बहुत मीठा होता है,वही ना?"

"सही समझे हो बेटा!"

ताँगेवाले से जवाब पाकर प्रखर की आँखें चमक उठीं।वो प्रखर को रास्ते में कुआँ,बैलगाड़ी,हल अनाज के भंडारणग्रह जैसी चीज़ों के बारे में भी बताता गया।रास्ते में कई तरह की चिड़ियों और पशुओं के बारे में भी बताता रहा।धीरे-धीरे उन दोनों में दोस्ती भी हो गई।इसी बीच रवि और लीना आपसी बातचीत में व्यस्त हो गए।प्रखर के पिटारे से प्रश्नों की झड़ी बराबर लगी हुई थी।अचानक ताँगा रुका तो सामने आरती की थाली के साथ दादी और अड़ोसी-पड़ोसी स्वागत के लिए तैयार थे।इस प्रकार का स्वागत देख प्रखर सोच में पड़ गया कि शहर में ऐसा क्यों नहीं होता!

"रवि,सफ़र कैसा रहा?"

पापा के बोलने के पहले ही प्रखर बीच में बोल पड़ा-"बहुत अच्छा रहा दादी"

चलो अब स्नान कर खाना खाओ और विश्राम करो...थक गए होगे?"

"दादी,मुझे तो आम खाना है"

"अभी लाती हूँ"

"घर वाला नहीं,पेड़ से तोड़कर खाना है"

"उसके लिए तो बेटा,थोड़े दूर तक पैदल चलना पड़ेगा।अभी थके हो कल चलेंगे"

"प्लीज़ दादी,मुझे तो आज ही चलना है।"

"कहना मानो प्रखर"

लीना ने ग़ुस्से में आँख दिखाते हुए कहा,लेकिन प्रखर का बालहठ दादी ने तुरंत मान लिया।

"अच्छा बाबा आज ही चलेंगे...अब तो ख़ुश हो ना?"

दादी की सहमति पाकर प्रखर ख़ुशी से उछल पड़ा।संभाल के,गिर मत जाना!अब तो प्रखर को पापा के शब्द भी सुनाई नहीं पड़ रहे थे।

दादी के साथ धूल उड़ाते हुए पैदल चलते में उसे ख़ूब आनंद आ रहा था।बड़े-बड़े गन्ने के खेत देख वो सवाल करता।दादी भी उसकी जिज्ञासा को शांत करने का भरपूर प्रयास करतीं।जब उसे पता चला कि गन्ने से शक्कर और गुड़ बनती है तो इस नई जानकारी को पाकर वो मन ही मन दोस्तों को बताने के लिए आतुर हो उठा।फिर उसे ध्यान आया की वो इस समय शहर में नहीं बल्कि दादी के गाँव में है।इसी सोच में खोए हुए वो चला जा रहा था।सहसा अपने प्रिय फल के पेड़ में ढेरों आम लगे देख,उसकी आँखें "फटी की फटी" रह गईं।वो पूरे खेत में यहाँ से वहाँ कूद-कूद कर नीचे गिरे आम बटोरने लगा।पहली बार उसने प्रकृति की सुंदरता को इतने पास से देखा!लीची के बग़ीचे से उसने बहुत सारी कच्ची-पक्की लीची तोड़कर जमा कर ली।

फलों के अलावा उसने बैंगन,भिंडी,टमाटर,मिर्ची लौकी इत्यादि सब्ज़ियों के पेड़ देखे तो घर लेजाने को मचलने लगा।दादी ने उसका कहा मानते हुए सब कुछ रखवा लिया।

"शाम हो गई अब घर चलें"

"दादी थोड़ी देर और रुको ना,अभी मुझे ककड़ी खाना है"

प्रखर घर जाने को बिलकुल तैयार नहीं था,लेकिन कल फिर आने के वादे के साथ ही वो माना।

"दादी ये किसके बाग़ हैं?"

"बेटा ये सारे बाग़ तुम्हारे हैं।"

दादी से यह जान वो आश्चर्य से भर उठा।गाजर खाते और दादी से बतियाते वो घर पहुँचा।

"मम्मा आज मैंने ख़ूब सारे आम,लीची,गन्ना और ककड़ी के रियल में पेड़ देखे।आप और पापा के लिए लाया भी हूँ!"

"बेटा,ककड़ी का पेड़ नहीं बेल होती है"

प्रखर को प्रसन्न देख लीना को अब यक़ीन हो गया की प्रखर गाँव में दस दिन रुक जाएगा।

"मम्मा दादी ने बताया कि अपने बहुत सारे आम,लीची,गन्ने के खेत हैं।और तो और वहाँ मेरी पसंद की भिंडी भी लगी है।मैं कल फिर से वहाँ जाऊँगा।"

हर दिन खेत में पेड़-पौधों के बीच खेलना और फल तोड़कर खाने में उसका समय बीतता था।दिन भर खेलने से उसका व्यायाम भी होता,जिसके कारण रात को वो जल्दी सो जाता था।

"आपने देखा यहाँ प्रखर कितनी जल्दी सोता है और सुबह बिना उठाए जग भी जाता है" लीना ने रवि से कहा।

"हाँ!गाँव में जो सुकून और आनंद है वो शहर में कहाँ"

भगवान का शुक्र है जो प्रखर को यहाँ का माहौल रास आ गया। समय को जैसे पंख लग गए।एक-एक करके दस दिन कैसे बीते पता ही नहीं चला।

"अपना सामान पैक करो प्रखर,शाम को हमें निकलना है"

मम्मी की बात सुन प्रखर उदास हो गया।दादी के घर से उसका जाने का मन ही नहीं था।

"मम्मा,क्या हम कुछ दिन और यहाँ नहीं रुक सकते?"

"क्यों?"

"मुझे यहाँ चारों तरफ़ जो पेड़-पौधे और खेत हैं,वो बहुत अच्छे लगे !"

"ओ पलटू राम तुम तो गाँव आना नहीं चाहते थे?"

"तब मुझे मालूम नहीं था कि दादी का गाँव इतना सुंदर है!आप पापा को बोलो ना कुछ दिन और रुक जाएँ"

"ज़िद नहीं करो बेटा! पापा की छुट्टी ख़त्म हो गई,आज निकलना ही है"

यह सुन प्रखर रुआँसा हो गया।उसे देख दादी समझ गईं,कि प्रखर जाना नहीं चाहता है।उन्होंने रवि से अगले साल फिर से गाँव आने का वादा ले लिया।आज प्रखर बीते दस दिनों की तरह नहीं चहक़ रहा था।उसे उदास देख रवि ने बताया कि पहली बार खेत घूमने जाते समय तुम्हारी मम्मी गिर गईं थीं,और गोबर में हैपी बर्थडे का केक कट गया था।यह सुन प्रखर हंस पड़ा और उसे देख दादी,मम्मा और पापा को भी हँसी आ गई।

दादी को प्रणाम कर प्रखर ताँगे में बैठ गया।धीरे-धीरे हरे-भरे खेत और चारों तरफ़ फैली हरियाली बहुत पीछे छूट गई।लेकिन प्यारी दादी का गाँव उसके मन से ओझल होने का नाम ही नहीं ले रहा था।रास्ते भर वो गन्ना,आम,लीची जैसे पेड़-पौधों के बारे में सोचता रहा।

घर पहुँचते ही उसने मन ही मन संकल्प लिया कि हर साल गरमी की छुट्टी में वो एक पेड़ लगाएगा।जैसे ही ये बात रवि और लीना को पता चली वे प्रसन्नता के साथ आश्वस्त भी हुए।आज उनका बेटा सयाना हो गया है।दादी सही कहती हैं ,गाँव की मिट्टी में जीवन के संस्कार हैं।शहर की भीड़-भाड़ में अब प्रखर गाँव को कभी नहीं बिसरा पाएगा।पर्यावरण संरक्षण के प्रति आज उसके इस नेक कार्य में रवि और लीना भी सहर्ष शामिल हैं।


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