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यूनियनबाज़ी

यूनियनबाज़ी

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सेवादास आज अस्पताल में खड़े फूट-फूट कर रो रहे थे और रोते रोते कह रहे थे मैंने तो कभी सपने में भी किसी का बुरा नहीं सोचा फिर आज मुझे क्यों यह दिन देखना पड़ रहा है। तभी उनके मित्र सुयश उन्हें सहारा देते हुए बोले धैर्य रखो कुछ नहीं होगा आपके बेटे को। तभी सेवादास के पास किसी का फोन आता है और वो उनकी बात सुनकर हैरान रह जाते हैं। सुयश के पूछने पर वह बोले जनरल मैनेजर का फोन था। वह बता रहे थे कि जो हमलावर पकड़े गए हैं उन्होंने हमला कराने के लिए हमारे स्टाफ मेंबर सुभाष का नाम लिया है। सेवादास बोले मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी उससे। कई दिन पहले मेरे पास आया था और मुझसे अपने को बचाने की गुहार कर रहा था। दरअसल उसने लाखों रुपयों का घोटाला कर दिया है और उसकी छानबीन हो रही है। वह गिड़गिड़ाने लगा था तो मुझे भी उस पर तरस आ गया यह सोचकर कि अगर इसकी नौकरी चली गई तो इसके बीवी बच्चे सड़क पर आ जाएंगे। मैंने जी.एम. से बात करी कि अगर सुभाष पैसे जमा कराने को तैयार हो जाए तो मामला रफा-दफा कर देना उसकी नौकरी पर कोई आंच मत आने देना। पर वह तो पैसा जमा कराने के लिए भी तैयार ना हुआ और उल्टा मुझसे बद्तमीज़ी से पेश आने लगा और बोला आपके यूनियन में नेता होने का फायदा ही क्या है जब मुसीबत पड़ने पर बचा नहीं सकते। इस से अच्छा है कि घर पर चूड़ियां पहन कर बैठ जाओ। उसकी बात सुनकर मुझे भी ताव आ गया और मैंने उससे कहा एक तो गलत काम करते हो और ऊपर से चाहते हो कि यूनियन गलत काम में तुम्हारा साथ दें यह मुमकिन नहीं है। ऐसा कह कर मैंने उसे डांट कर भगा दिया था। मैंने तो यह सोचा भी नहीं था कि वह मुझसे खुंदक निकालने के लिए मेरे बेटे पर ही जानलेवा हमला करवा देगा।

सेवादास की पत्नी तान्या सारी बातें सुनकर सुयश से बोलीं मैं तो इन्हें समझाते समझाते हार गई कि यूनियनबाज़ी छोड़ दो कोई भलाई नहीं देता, पर जिसका भी काम नहीं होता है वह बद्दुआ ज़रूर देता है। वैसे मैंने तो इन्हें दूसरों के दुःख दर्द में हमेशा ही मदद करते देखा है। अभी कुछ महीनों पहले जब स्टाफ में से मिस्टर योगेश की असमय मृत्यु हो गई थी तो यही सबसे पहले आदमी थे जो अस्पताल पहुंच गए थे और उनके घर वालों की आर्थिक मदद भी की थी।

फिर उनके बेटे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिलाने के लिए दिन रात एक कर दिया था। हेड ऑफिस के कितने चक्कर लगा कर आए। अपना टाइम अपना पैसा सब लगाया और जब तक उसे नौकरी नहीं मिल गई यह चैन से नहीं बैठे। ना जाने ऐसे कितने ही उदाहरण हैं। कितने ही लोगों के ट्रांसफर रुकवाने में और कितने लोगों को उनकी पसंदीदा जगह ट्रांसफर कराने में इन्होंने लोगों का साथ दिया। आजकल तो लोग अपना काम निकलवा कर फिर पूछते भी नहीं। मैं तो कहती हूं अब तो कुछ सबक लो। यूनियन से इस्तीफा दे दो। हमारा छोटा सा तो परिवार है मैं यूनियन बाजी में इस पर कोई आंच नहीं आने देना चाहती ऐसा कहते हुए उसका गला भर आया और आंखों से अश्रु धारा बह निकली।

अपनी बात कहते हुए भी तान्या की नज़र ऑप्रेशन थिएटर की ओर ही थी। तभी ऑप्रेशन थिएटर से उसे डॉक्टर निकलते हुए दिखाई दिए। वह तेज़ी से उनकी ओर दौड़ी। सेवादास एवं सुयश भी तेज़ी से डॉक्टर साहब की तरफ बढ़े। तान्या ने जब प्रश्नवाचक दृष्टि से डॉक्टर साहब की ओर देखा तो वह बोले अब आपका बेटा खतरे से बाहर है। वैसे खून बहुत बह गया था। पता नहीं किस का दिया-लिया काम आ गया। सच में हमारी मेहनत तो अलग बात है पर दुआओं में भी बहुत असर होता है। ऑप्रेशन सफल रहा। अब आप अपने बेटे से मिल सकते हैं। अपने बेटे को सही सलामत देखकर वह सब खुश थे। दुःख की काली रात बीत गई थी और दिन का उजाला उनके लिए शुभ संदेश लेकर आया था।

सेवादास तान्या से बोले क्या कहती हो छोड़ दूं यूनियनबाज़ी तो वो बोली पता नहीं किसकी दुआ काम आ गई। जब आप अपना काम ईमानदारी से एवं निष्पक्ष रूप से करते हो तो किसी एक की वजह से यूनियनबाज़ी छोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। भगवान सब देखता है। गलत काम करने वालों को उनके किये की सज़ा भुगतनी ही पड़ेगी। तान्या की बात सुनकर सेवादास जी ने राहत की सांस ली और तान्या को छेड़ते हुए बोले तुम भी यूनियन जॉइन कर लो अच्छा भाषण दे लेती हो। सेवादास की बात सुनकर सभी खिलखिला कर हंसने लगे। अब तनाव की जगह ठहाकों ने ले ली थी।


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